दिव्या ने प्रण किया कि वो बुद्ध बनेगी यदि वो तीनों लोक नाप सकती है तो फिर बुद्ध क्यों नहीं बन सकती माना दादी , बुआ ,मां सबने अपना जीवन यूं ही निछावर कर दिया । पर मैं न किसी की नज़रों से अपने देह को नापने दूंगी न हैवानियत का शिकार बनूंगी। अपने अंदर सत्य की इतनी ऊर्जा पैदा करूंगी कि पास आने वाले की रूह कांप जाएगी।
माना स्त्री की अस्मिता उसके परिवार से हैं यदि घर छोड़कर अपने अस्तित्व की तलाश करती है तो वो बुद्ध की तरह किताबों में पढ़ी नहीं जाती,उपदेशक नहीं बनती , बल्कि चरित्रहीन,कुल्टा अपर बला, आदि नामों से जानी जाती है।
इस पुरूष प्रधान समाज में उसे वृक्ष तक जहां से उसे ज्ञान प्राप्त होगा पहुंचने से पहले तमाम तरह से प्रताड़ित किया जाता है पहले तो उसे बहुतों की नज़रों से नपना होता है फिर उनके शोषण का शिकार होना पड़ता है।
और अगर इन सबसे बचे गई तो घर से भागी और न जाने किन किन नामों से नवाजा जाता है ।
फिर वो भला कब तक और कहा तक अपनी सफाई देती फिरेगी।
और कौन सुनेगा ।
अब मां बताती है बुआ का बाल विवाह हुआ था पति का मुंह भी नहीं देखा, क्षय रोग के चलते वो परलोक सिधार गए और ये विधवा हो गई।
फिर क्या था परिवार वालों ने ऐसे दबा के रखा कि पूछो मत ।
मंदिर तक जाने की अनुमति नहीं दी बेचारी चारों पहर घर में पड़ी रहती डेहरी के बाहर कभी कदम नहीं रखी
उस समय पर्दा प्रथा जो था।
और एक दिन खुद भी देह त्याग दी।
पर थी बड़ी सात्विक कहते हैं मरने के एक घंटे पहले उन्हें भान हो गया था तो अंत में वो अपने पति की तस्वीर देखना चाहती थी।
सो ससुराल से मंगाई गई थी और देखते ही आंखे मूंद ली उसके बाद वक्त बदला।उसी घर में मां बेवा हुई तो उसके चार बच्चे थे।
उस वक्त सती प्रथा का चलन था तो धतूरा भांग पिला कर अर्थी के साथ साथ ले जाया गया और बाबू जी के साथ उन्हें भी लिटाकर जौहर क्या दिया गया।पर मैंने खाना कि आगे ऐसा नहीं होने दूंगी। क्योंकि आज की युवा पीढ़ी कुछ अलग ही।
यदि बुद्ध घर छोड़कर ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं तो स्त्री क्यों नहीं और उसने पढ़ाई लिखाई की करके नौकरी भी की साथ ही अपनी पसंद की शादी भी की।
पर पारीवारिक जीवन उसको रास न आया और वो सब छोड़कर रात के अंधेरे में निकल गई।
बिना किसी को बताए और कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामान,पैसा रुपया लिए।
मतलब कोई उसे खोज न सके इसके लिए कोई चिह्न पास नहीं रखी और पहुंच गई वहां जहां साधना और तप के माध्यम से आत्मा से परमात्मा का साक्षात्कार है
पता तप चला जब उसने देह त्याग दिया।
उसके पहले उसने एक पन्ने पर लिखा- मैं आज की बुद्ध हूं। स्त्री भी बुद्ध बन सकती है बस दृढ़ संकल्पी हो ।
स्वरचित
आरज़ू