रुप गर्विता – सुनीता मिश्रा

सौमित्र से मेरी मुलाकात मेरी कम्पनी मे हुई।मै रिसेप्स्निस्ट थी वहाँ,उसने मैनेजर की पोस्ट पर जौइन किया था।

दुबला पतला शरीर,काली बेल बाटम पर डार्क नीली पूरी आस्तीन की कमीज।मै मन ही मन हँसी।मैनेजर साहेब का ड्रेस सेंस ,माशा अल्लाह।

मै बहुत खूबसूरत,ये मेरा आइना ही नही,लोग भी बोलते थे।बहरहाल मैने उसकी जोइनिंग रिपोर्ट ली ,रजिस्टर की,और आगे बढ़ा दी।

सब कुछ रूटीन मे चल रहा था,सिवा इसके की जब भी वो मेरी सीट के पास से गुजरता ,पल भर को ठिठक कर मुझे देखता जरुर।इस तरह उसका देखना जाने क्यो मुझे अच्छा लगता था।इसका मतलब ये नहीं की मै उसे पसंद करने लगी ।

मुझे अपने रूप ,अपने बहु आयामी व्यक्तित्व पर घमंड था।

जैसा की हर जवान लड़की के परिवार को, उसके विवाह की चिंता होती है।मेरी माँ और भाई, मेरे विवाह का ज़िक्र करने लगे।पर बात जमती नहीं ।जिसे मै पसंद करती उसके रेट बहुत हाई रहते।और अपने से कमतर मुझे जँचता  नहीं ।


इधर मैं जब भी कोई फ़ाईल लेकर सौमित्र के चेंबर में जाती तो लौटते समय दरवाजे पर रुक, पलट कर देखती तो उसे अपनी तरफ देखता पाती,नज़रे मिलते ही वो नज़रे झुका लेता।नज़रो की इस लुका छिपी का पूरा मज़ा मै लेती।

नौकरी के साथ साथ मै मनोविज्ञान विषय मे बतौर प्राइवेट स्टूडेंट  पी जी ,भी  कर रही थी।

एक दिन  व्यक्तित्व परीक्षण  फ़ार्म मैने उसे फिल करने के लिये दिया,कहा”सर ,मुझे दस लोगो से इसे फिल करवाकर अपने प्रोफेसर को सब्मिट करना है आप मेरी हैल्प करेंगे”उसने खुशी खुशी फॉर्म ले लिया।

उस दिन मैने नीली साड़ी पहिनी थी।मै जानती थी नीला रंग मुझ पर बहुत फबता है।दूसरे दिन फ़ाईल के साथ प्यून व्यक्तित्व टेस्ट फॉर्म भी ले आया जो उसने फिल कर दिया था।

बहुत से प्रश्नों  के साथ एक प्रश्न था ।आपका पसंदीदा रंग ?उत्तर था–नीला रंग।दूसरा प्रश्न-आपकी हाबी?उत्तर था–रेडियो पर आपकी वार्ता सुनना।(बता दूँ आपको, मै रेडियोआर्टिस्ट भी थी)।

ऐसे ही कई उत्तर गवाह थे की सौमित्र आकर्षित है मेरी तरफ।धीरे धीरे मैने गौर किया की उसका ड्रेस सेंस भी बेहतर होता जा रहा था ।चेहरे मे सौम्यता झलकती ।

कुछ तो है, जो उसके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाता है।पर मेरी टक्कर का नहीं है।

मेरा रुप घमंड फिर हावी हो गया मुझ पर।

एक दिन लंच टाईम पर कंपनी की कंटीन मे फ्रेंड्स से गप्पबाजी के दौरान एक सहेली ने कहा”यार स्नेहा,तू सौमित्र सर से शादी क्यों नही करती,सजातीय भी है,और तुझ पर मरता भी है”।

रुप के साथ साथ ईश्वर ने मुझे जुबान भी कटारी की धार सी दी है।जो चोट केवल मुझे ही नही,दूसरे का दिल भी चाक करती है,मैने उस दिन जाना ।


सहेली की सलाह पर मेरे अहंकारी नाग ने फिर फन फैला लिया”मै और सौमित्र से शादी?उस लँगूर से”जोर से हँसी मै।

सौमित्र पन्द्रह दिन का अवकाश ले अपने घर गए।

मै नहीं जानती की मुझे उसका इन्तजार क्यों रहता,आँखें- बाहर गेट पर लगी रहती।कहीं मै उससे—-नही–नही।शायद हाँ——

सौमित्र आये जैसे गर्म हवा ,ठंडे झोकों मे तब्दील हुई हो।मेरे समीप आकर उसने मेरी टेबिल पर एक कार्ड रखा।

“क्या है”मैने पूछा-

जवाब मिला”मेरी शादी का कार्ड”।

शादी का कार्ड नही एक भारी शिला खंड मेरे हृदय पर आकर गिरी।सौमित्र का एक एक शब्द तीर की तरह छेद गया मन को।बस मन के घुमड़ते बादल घनघोर बरस पड़े आँखो से।सौमित्र हतप्रभ-“मैने सुना था आप मुझे पसंद नहीं करती”।

क्या कहती मै।मेरा रुपगर्व ही मुझे उजाड़ गया ।

“एक बार तो कहा होता।बहुत देर कर दी आपने स्नेहा”।—-

अनवरत बरसते बादलो ने कह दिया आज हार गई रूप गर्विता—-स्नेहा ।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!