धिक्कार – संगीता त्रिपाठी   : Moral stories in hindi

माता -पिता के जीवन में बच्चे हिस्सा नहीं बल्कि जीवन होते है लेकिन बच्चों के जीवन में माता -पिता हिस्सा होते है।राम बाबू और यशोदा जी को एक बेटा और दो बेटियाँ थी। बेटा कैलाश छोटा था, दोनों लड़कियों की समयनुसार शादी कर राम बाबू और यशोदा जी गंगा नहा लिये। बेटा कैलाश पढ़ रहा था, मेघावी था तो विदेश में स्कॉलरशिप मिल गई आगे की पढ़ाई के लिये…। राम बाबू ने विदेश जाने का विरोध किया पर माँ की ममता ने बेटे का मलिन मुख देख, बेटे का साथ दिया।

       राम बाबू ने माँ -बेटे से हार मान ली, कैलाश विदेश चला गया, पढ़ने के बाद कैलाश को वहीं अच्छी नौकरी मिल गई, राम बाबू यशोदा से झगड़ते “मैंने कहा था वो पढ़ने जा रहा पर देखना लौटेगा नहीं “यशोदा जी सुनती पर जवाब न देती, बेटे ने वहाँ नौकरी कर ली तो उसके वापस आने की आशा क्षीण हो गई, जो अक्सर उनको विचलित कर जाती, फिर भी वो माँ है तो सोचती बच्चा जहाँ रहे खुश रहे हमारा क्या..??जिंदगी बीत ही जायेगी।

       कुछ समय बाद कैलाश ने यशोदा जी को बताया उसे अपने साथ काम करने वाली वसु बहुत पसंद है उसी से शादी करना चाहता है, एक बार फिर यशोदा जी बेटे के लिये राम बाबू के सामने जा खड़ी हुई।

वसु और कैलाश की शादी हो गई,अब कैलाश के साथ वसु भी चली गई, घर का आंगन सूना हो गया।

    समय बीता , कैलाश भी दो बच्चों का पिता बन गया, हर साल भारत आता, माता -पिता को साथ ले जाने की जिद करता, पर राम बाबू इंकार कर देते।

कुछ दिनों से राम बाबू बुझे से रहते..।

  “क्या बात है, आजकल आप चुप रहने लगे “यशोदा जी ने पूछा।

   “कोई खास बात नहीं है, पर आजकल जिंदगी बेकार लगने लगी, कैलाश भी वहीं जा कर बस गया और हम यहाँ अकेले रह गये “

  “अरे कोई बात नहीं, कैलाश एक दिन वापस आ जायेगा “यशोदा जी ने राम बाबू को हौंसला दिया.,

  लेकिन एक दिन अचानक राम बाबू सोये तो सोते रह गये… कैलाश को पता चला, सपरिवार आया पर जाने वाला तो चला गया, मौका ही नहीं दिया, कुछ करने या कहने का । माँ को अपने पास ले जाने की जिद की, पर यशोदा जी ने इंकार कर दिया।पति के गम में यशोदा जी बीमार रहने लगी। यशोदा जी पहली वाली माँ नहीं रह गई, अकेलेपन ने उन्हें भी खोखला कर दिया 

      चिंतित कैलाश अमेरिका लौटा पर बेचैन था, पिता के जाने के बाद समझ में आया उसने क्या खोया…, क्यों पैसों की चमक में रिश्तों की दमक खो दिया , समय तो चला गया तमाम पैसे रहने के बाद भी कहाँ ख़रीदा पाया उन पैसों से पिता को, उनके साथ को…!!एक शूल कैलाश के मन में चुभने लगा।मन धिक्काराने लगा।

भारत वापस लौटने का संकल्प ले लिया, एक रिश्ता खो कर दूसरे की अहमियत जानी।

    पर सत्रह साल अमेरिका में रहने के बाद लौटना आसान नहीं था। वसु जो भारतीय होते हुये भी अब पश्चिमी सभ्यता में ढल गई थी,अपनी आजादी खोने को तैयार नहीं थी। दो किशोरवय बच्चे जिन्होंने विदेशी धरती पर ऑंखें खोली। भारत उन्हें अच्छा तो लगता था पर वे असुविधाओं में रहने को नहीं सोच पा रहे थे..।

     एक सुबह चाय पीते कैलाश ने वसु को बताया, शाम की फ्लाइट से वे भारत जा रहे है। “पर कैलाश अचानक…?? कल ही तो मॉम से बात हुई थी वे ठीक लग रही थी “हैरानी से वसु बोली।

      “वसु वे ठीक नहीं है, ठीक होने का नाटक कर रही है, अब उन्हें हमारी जरूरत है, मैंने नासमझी में पिता को खो दिया पर अब माँ को नहीं खोऊँगा, वे यहाँ आने को तैयार नहीं है, अपनी जड़ों को छोड़ना नहीं चाहती, फिर हम क्यों अपनी जड़ो को छोड़ रहे है, मै अब ज्यादा समय माँ को दूंगा, मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही…, पिता को खोने के बाद मैं ये सत्य जान गया,जो कर्मो का फसल मैं आज बोऊँगा, वहीं कल मुझे भी मिलेगा….तुम सोच लो फिर अपना निर्णय बता देना “कैलाश ने वसु के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा, वसु की ऑंखें भर आई।

    कैलाश बैग उठा बाहर निकल गया, वसु देखती रही, समझ गई अब जिद से काम नहीं चलेगा। कैलाश के जाने के बाद वसु को बच्चे संभालना मुश्किल हो गया। किशोरवय बच्चों की अपनी समस्याएं, उनको माता -पिता दोनों की जरूरत होती है।कैलाश जी आते -जाते रहे, वसु और बच्चों का मन नहीं बना पाये लौटने का, हार कर लौट आये पर प्रयास करते रहे..।

         एक सुबह कैलाश यशोदा जी को मॉर्निंग वाक करा कर ले आये तो घर में कुछ चहल -पहल लगी, जब तक वे कुछ समझते दोनों बच्चे भाग कर कैलाश जी के गले लग गये..। आँसुओं से धुँधली आँखों में सामने पिता का अक्स उभर आया मानो कह रहे “समझ में आया “।सामने वसु दौड़ कर यशोदा जी के गले लग गई “माँ अकेलापन क्या होता है, मै समझ गई, अब कोई अकेला नहीं रहेगा, हम सब साथ रहेंगे।

        कैलाश अब ज्यादा ताकतवर हो गये परिवार का साथ मिल गया, लौटने का संकल्प पूरा हुआ आसानी से नहीं, तीन साल लग गये थे। खैर जब जागो तभी सवेरा…।

      कैलाश जी ने नई कंपनी खोली थी, वसु यशोदा जी की देखभाल मन से करती, बच्चे दादी के संग नित नये अनुभव को कहानी के रूप में सुनते, रिश्तों को जानने -समझने लगे…। एक दिन बेटे ने कैलाश जी से पूछा भारत में इतने रिश्ते, अपनों का प्यार छोड़ कर आपने विदेश में रहने को क्यों सोचा “।

    मुस्कुरा कर कैलाश जी बोले “मै चमक और दमक में खो गया था, अब घर लौट आया हूँ “कैलाश ही नहीं वसु भी बच्चों में आये परिवर्तन से आश्चर्यचकित थे… ऐसा ही होता अपनों का प्यार और साथ, सामने वाले को बदलने पर मजबूर कर देता। यशोदा जी भी अब बच्चों के साथ व्यस्त हो गई, जीवन को दिशा मिल गई…।

                            —संगीता त्रिपाठी 

       #धिक्कार

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