देवी-आराधना – रश्मि स्थापक

कॉलेज से आने के बाद निहारिका अपने काम फटाफट निपटा कर कॉलोनी के गरबा मंडलों मैं घूमने निकल पड़ी। इस बार शहर की नई बसी इन चारों कालोनियों के अपने-अपने पांडाल सजे हुए थे। एक महीने पहले से ही चारों पांडाल वाले जोर-शोर से तैयारियों में लगे हुए थे। कार्यकर्ता कॉलोनी के छोटे-बड़े बच्चे थे जो बड़ी मुस्तैदी से लगे हुए थे।पहली बार हो रहे गरबों के आयोजन में ये भी तय किया गया कि चारों  गरबा मंडलों को उनके प्रदर्शन के अनुसार इनाम दिया जाएगा। हर कोई अपने पांडाल  को सजाने और अच्छे-से-अच्छे  गरबों के प्रदर्शन की  कोशिशों में जुटा हुआ था। चारों तरफ आनंद-ही-आनंद। तीन गरबा मंडलों को देखकर तो  लगा कि उन्होंने जी- जान से तैयारियाँ की हैं, लेकिन जब वह अपनी कॉलोनी के पांडाल में पहुँची तो मन निराश हो गया। सजावट तो वहाँ बहुत अच्छी थी पर … गरबा नृत्य की कोई प्लानिंग ही नहीं थी। छोटी-छोटी लड़कियाँ अपने हाथ में डंडे लेकर मनचाही उछल-कूद कर रही थी।हालांकि सजी-धजी  नन्ही लड़कियाँ मस्त थी और खिल-खिला कर मटक रहीं थी। पर भला ये क्या कांपटीशन देंगे। उसने अपने ही कालोनी के लड़के मनोहर को आवाज़ दी।

“इतनी अच्छी सजावट करने के बाद भी… हमारी कॉलोनी तो पीछे रह जाएगी, तीनों जगह के गरबे देखे ? कितना प्रोफेशनली आयोजन हैं उनका ! तुमने तो गरबे में छोटी-छोटी लड़कियों को रख लिया… उन्हें तो अभी ढंग से करने की समझ ही नहीं है ।”

“दीदी आपका कहना तो ठीक है…पर।”

“पर…पर क्या मनोहर?”

“इन छोटी बच्चियों को कोई गरबे करने नहीं देता है… यह सोच कर कि हमारे गरबे बिगड़ जाएंगे…।”

” हाँ …सो तो है।”

” कुछ सालों पहले मेरी छोटी बहन भी तैयार तो बहुत होती थी…पर या तो उसे करने नहीं  दिया जाता था या एक-दो बार करवा कर  हटा दिया जाता था…. वह बड़ी निराश होकर वापस आ जाती थी… उसकी आँखों के आँसू मुझे अच्छे नहीं लगते थे ।”

“तो इसलिए…?”

“हाँ … तीनों चारों कॉलोनी की छोटी-छोटी बच्चियाँ यहाँ पर खूब मस्ती से गरबे करती हैं… ये सच है दीदी अपन को इनाम तो नहीं मिल पाएगा…पर उन्हें खुश देख उसकी जरूरत ही नहीं लगती।”

निहारिका ने देखा देवी माँ की मुस्कुराती मूर्ति कुछ और जीवंत लग रही थी।

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रश्मि स्थापक

 

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