हमेशा बड़े ही सही नहीं होते –  मनीषा भरतीया

आनंदी जी स्वभाव से बहुत कड़क लेकिन अंदर से बिल्कुल मोम की तरह नरम| उनकी चाल-ढाल बोलने का अंदाज देखकर ऐसा प्रतीत होता जैसे किसी हवेली की ठकुराइन हो। एक छोटी-सी कोठरी में अपने बहु-बेटे, पोता और दो पोतीयों के साथ रहती थी। बेटा काम बाहर करता था तो महीने में दो बार ही घर आता था। पर फिर भी सोने की बहुत दिक्कत थी। इसलिए आनंदी जी अपनी अजीज सहेली वृंदा के घर में ही डेरा जमाये रहती।

उनके हाथों में भगवान के वस्त्र सिलने का बहुत अच्छा हुनर था। एक से एक लड्डू गोपाल के वस्त्र, गणेश लक्ष्मी के वस्त्र, सिलकर भगवान को पहनाती थी। इतना ही नहीं बिल्डिंग के सभी लोगों को भी भगवान के वस्त्र बना बना कर देती थी। लेकिन बदले में कोई पैसे भी नहीं लेती थी। सभी उनसे बहुत आग्रह करते कि मांजी आप अपना मेहनताना क्यों नहीं लेती? इतना खटती हैं वस्त्र बनाने के पीछे आप!

तो वो यही कहती कि ना बाबा ना, “मैं ठाकुर जी के वस्त्र बनाने की कीमत नहीं लूंगी। नहीं तो ठाकुर जी मेरे लिये सीधे नर्क के द्वार खोल देंगे। और वैसे भी मुझे ठाकुर जी के वस्त्र बनाने में एक अजीब सी खुशी मिलती है।”

आनंदी जी के मन में लालच का भाव बिल्कुल भी नहीं था। वो बहुत धर्म-कर्म वाली औरत थी। वो अपने बेटे बहू के साथ जितना था, उसी में खुश रहती थी। बस चाहती थी, तो इतना कि बेटे का अपना दो कमरे का घर हो जाए। क्योंकि पोता-पोतीयां भी अब बड़े हो रहे थे। तो एक कोठरी में गुजारा अब जरा मुश्किल था।

यूं तो वो अपनी बहू नताशा पर सारा दिन चिल्लाती रहती थी कि तुझे कुछ काम नहीं आता। खाना भी ठीक से नहीं बनाती। पर पड़ोस में हर जगह अपनी बहू की तारीफ करते नहीं थकती थी। मेरी बहू जैसी बहू किसी की नहीं है, उसके जैसी रोटियां कोई और नहीं बना सकता। यहां तक कि वह अपनी बेटीयों के घर भी जाती तो दो रोटी पोटली में बांधकर ले जाती क्योंकि उनका यह मानना था कि बेटियों के घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए।



उनकी बेटियां हर बार उन्हें कहती भी कि मां यह सब क्या है? आप भाभी से रोटियां बनवा कर क्यों लाती हो? अच्छा नहीं लगता। आनंदी जी टालने के लिए कहती मेरी बहू जैसी रोटियां कोई नहीं बना सकता, तुम बहनें भी नहीं! रोटी का तो बहाना बना देती पर चाय का क्या करती? बेटियों के बहुत आग्रह करने पर उन्हें चाय पीनी ही पड़ती। इसलिए लौटते वक्त वह चाय के पैसे बेटी की हाथ में थमा कर चल देती।

शुरुआती दौर में तो बेटियों को भी मां की ये आदत अच्छी नहीं लगती थी। पर धीरे-धीरे उन्हें समझ में आ गया था कि मां नहीं मानेगी तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। नताशा भी उन्हें बहुत समझाती कि माँ जी दीदीयों को बहुत बुरा लगेगा इस तरह आप घर से रोटियां लेकर जायेंगीं तो| तो कहती अब तू मुझे ज्यादा मत सिखा, ये बता कि खाने में क्या बनाया है?

आपके लिए पूड़ी सब्जी और बच्चों के लिए उपमा बनाया है।

फिर से उपमा! उन्हें उपमा से एक अजीब किस्म की चिढ थी। उपमा के नाम से ही उन्हें छींक आती थी। वो अपनी बहू से भी कहती बहू यह भी कोई खाने की चीज है? उपमा कैसे तुम सब खाते हो? अरे पोषण वाला खाना खाया करो। रोटी सब्जी खाया करो, उससे शरीर को पोषण मिलता है।

बच्चों को पसंद है इसीलिए बनाती हूं। मांजी आप भी एक बार खा कर देखिए बहुत स्वादिस्ट होता है| इससे भी उतना ही पोषण मिलता है, जितना कि रोटी सब्जी से|

आनंदी जी कहती तुम्हारा उपमा तुम ही को मुबारक!



कुछ दिन बाद नताशा को जल्दी शॉपिंग के लिए जाना था क्योंकि बच्चों की स्कूल युनीफॉर्म की खरीदारी करनी थी और वह कड़ाही से उपमा निकाल कर फ्रिज में रखना भूल गई। उसे आते आते देर हो गई और दोपहर होने को आई थी। अब आनंदी जी को लगी भूख और वह चौके में गई| चूंकि नताशा आनंदी जी के लिए पूरी बना कर गई थी। लेकिन उस दिन उनका पूरी सब्जी खाने को मन नहीं हो रहा था। सो तलाशने लगी शायद कुछ अच्छा मिल जाए। तभी उनकी नजर गैस के ऊपर रखे उपमा पर पड़ी।

पहले तो हमेशा की तरह उपमा देखकर चिढ हुई लेकिन फिर पता नहीं उनके मन में क्यां आया कि आज खाकर देख ही लिया जाए बहु इतनी बार कहती है कि बहुत स्वादिस्ट होता है| सो उन्होंने उपमा प्लेट में डाला और खाना शुरू किया और खाते ही उसका स्वाद उन्हें वाकई में बहुत अच्छा लगा। वह मन ही मन सोचने लगी बहू सच कहती थी, मैंने उसकी बात कभी सुनी नहीं कि मांजी आप एक बार खा कर देखिए बहुत टेस्टी होता है और पोषण वाला भी|

जैसे ही आनंदी जी खा कर उठी! उनकी बहू बाजार से आ गई। तो नताशा ने देखा कि उपमा गायब था, लेकिन उसने आनंदी जी से कुछ नहीं पूछा| आनंदी जी ने कहा बहु कुछ ढूंढ रही हो क्या? नहीं मांजी बस ऐसे ही! आनंदी जी तो आखिर समझ ही गईं। तब आनंदी जी ने खुद ही कहा बहू तुम ठीक कह रही थी। आज मैंने उपमा खाया, बहुत ही स्वादिस्ट था। और साथ ही साथ पोषण से भरपूर|

एक काम करो अब से तुम हर दो-तीन दिन के अनतराल में मेरे लिए उपमा बना दिया करो!

तो नताशा ने डरते हुए कहा मांजी मैं तो आपके लिए पूड़ी बना कर गई थी क्योंकि आपको उपमा पसंद नहीं है।

अरे बहु डरो मत बेटा, मुझे उपमा बहुत पसंद आया और एक बात आज समझ में आ गया कि कभी-कभी छोटों की बात भी सुन लेनी चाहिए। हमेशा बड़े ही सही नहीं होते।

आशा करती हूं कि आपको मेरी स्वरचित व मौलिक कहानी पसंद आएगी। अगर पसंद आए तो लाइक, कमेंट और शेयर करना मत भूलिये।

आपकी दोस्त

मनीषा भरतीया

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