जीने की कला – आभा अदीब राज़दान

” दादा जी आप क्यों बाज़ार चले गए , आप को रात में तेज़ ज्वर था और घुंटनों में भी इतना दर्द रहता है ,मुझे बहुत चिंता होती है आपकी । लेकिन आप कभी भी मेरी बात नहीं सुनते हैं ।” पोतबहू विनती बोली ।

” बहू मैं बिलकुल ठीक हूँ न अब मुझे बुख़ार है और पैरों में दर्द भी छू मंतर हो गया है । अच्छा यह सब छोड़ो देखो तो मैं तुम सब के लिए गरम गरम जलेबी लाया हूँ । जल्दी से प्लेट में निकालो और खाओ नहीं तो फिर ठंडी हो जाएगी ।” दादा जी विनती की बात गरम जलेबी में ही टाल गए ।

सारा घर दादा जी का बहुत सम्मान करता है और दादा जी भी सभी पर अपना स्नेह लुटाते हैं । पोते करन की पत्नि विनती उनकी पोत बहू उनकी सबसे लाड़ली है । वह तो उनका हर तरह से एक बच्चे की तरह पूरा ध्यान रखती है । विनती को दादा जी का खुशमिज़ाज होना बहुत पसंद है , न कभी वह बुजुर्ग बन कर इमोशनल ब्लैक मेल करते हैं और न ही कभी अपना कोई भी कष्ट ही कहते हैं ।

दादा जी बरामदे में जाकर अपनी ईजी चेयर पर बैठने लगे तो घुटना मोड़ने में कुछ तकलीफ़ हुई और उनके मुँह से हल्की सी कराह निकली ।

“अब देखिए न इतना दर्द है लेकिन आप कभी कुछ भी नहीं बताते हैं ।” विनती बोली ।

अरे बहू कुछ नहीं यह सब तो बुढ़ापे के मेवे हैं । ” कह कर दादा जी मुस्कुरा दिए । विनती अंदर कमरे में जाकर करन से बोली,

” अभी तेल में अजवाइन लहसुन पका कर ला रही हूँ दादा जी के घुटनों पर मल दीजिए । और हाँ आप उनको बहला कर ज़रूर मल ही दीजिएगा, स्वयं तो वह अपना दर्द कभी नहीं बताएंगे ।

करन, पत्नी के स्वर में दादा जी के लिए इतनी चिंता देख कर मुस्कुरा दिया । वह मन ही मन सोंचने लगा कि लोग तो ज़रा ज़रा सी बात में अपनी शारीरिक पीड़ा कहते ही रहते हैं और हमारे दादा जी तो मुस्कुरा कर ही अपने सारे कष्ट छिपा लेते हैं ।

पाँच दस मिनटों में विनती तेल की कटोरी भी ले आई ।

“ जाइए पहले जाकर दादा जी को तेल मल दीजिए, हाँ अभी थोड़ा गर्म है । बस ज़रा सी देर में सहने वाला हो जाएगा ।” उसने पति से कहा ।

करन दादा जी के पास गया । वह चुपचाप अपने ही हाथों से अपना पैर दबा रहे थे । पोते को अपने पास आता देख कर बोले,

“ करन बेटा कुछ काम था क्या ।”

“ बस आपके पास बैठने का जी कर रहा था दादा जी ।” वह बोला ।

अब करन दादा जी के पैरों के पास ही आलथी पालथी मार कर बैठ गया था । हल्के हाथों से वह धीमे धीमे गुनगुना तेल मलने लगा था । दादा जी अब कुछ भी बोले नहीं, अति स्नेह से अपनी बूढ़ी आँखों से वह पोते को निहार रहे थे । इस पल उनके ह्रदय से बच्चों के लिए ढेरों आशीर्वाद निकल रहे थे ।

आभा अदीब राज़दान

लखनऊ

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