दायित्व – मनीषा सिंह : Moral stories in hindi

“बेटा बहुत दूर है हॉस्पिटल ।काफी भीड़ और ट्रैफिक वाली जगह भी है  गाड़ी चलनी मुश्किल हो जाएगी।

 इसलिए हम मोटरसाइकिल से ही चलते हैं जल्दी निकल जाएंगे ।

सुरेंद्र जी अपने बेटे जतिन से कहा 

“नहीं बाबूजी आप इतने बीमार हैं! मोटरसाइकिल आपके लिए सही नहीं रहेगा और बाहर गर्मी भी काफी है।

 हम ड्राइवर रख लेंगे फिर हमें दिक्कत नहीं होगी ।

जतिन अपने बाबूजी को समझाते हुए बोला ।

अपने पिता की ख्वाहिश को पूरी करने के लिए जतिन ने अभी अभी नई  गाड़ी खरीदी थीं । 

वह अभी गाड़ी भी सही से ड्राइव करना नहीं जानता था ।

 गाड़ी खरीदने के कुछ महीने बाद ही सुरेंद्र जी को कैंसर डिटेक्ट हो गया , वह भी लास्ट स्टेज वाली  ।

पिताजी ने बड़े शौक से गाड़ी खरीदवाई  थी।

Short Moral Story In Hindi

 लेकिन किस को पता था कि हालात ऐसे भी हो जाएंगे कि इस गाड़ी से हॉस्पिटल के चक्कर लगने लगेंगे।

 जतिन दो भाई और एक बहन था जतिन की मां जो बड़े रहिस खानदानी घर से थीं ।

  सुरेंद्र जी अपनी पत्नी को काफी इज्जत और मान देते थे घर के सारे काम के लिए नौकर रखे थे रामा जी को उन्होंने कभी किसी तरह का बोझ नहीं डाला।

और सुरेंद्र जी को भी लगता कि रामा जी को ,इन सब पचरो  की आदत नहीं है, सो अलग ही रखा ।

बेटे -बेटी की शादी से लेकर पोते – पोती की परवरिश तक, सारा दायित्व सुरेंद्र जी ने  बखूबी निभाई।  

रामा जी इन सब झंझटों से दूर ही रहना पसंद करती थीं।

 दोनों बेटे अच्छी सरकारी नौकरी में थें और बेटी भी बड़े घर में ब्याही गई थी।

 उनकी गृहस्थी की गाड़ी अच्छी तरह से चल रही थी कि अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।

 कैंसर डिटक्ट होने के बाद सुरेंद्र जी का हेल्थ दिन पर दिन डिटोरियट होते जा रहा था।

  कीमोथेरेपी की वजह  से उनकी भूख प्यास भी खत्म होने लगी थी।

सुरेंद्र जी के पोते और पोतियां दिन- रात अपने दादाजी की सेवा में लगी रहती थीं ।उनकी बहूएं को भी ,अब विशेष ख्याल रखना पड़ता था। 

समय से नाश्ता, खाना, दवाइयां तथा उनके हाइजीन का भी बराबर ध्यान रखना होता । 

धीरे-धीरे जब यह खबर रिश्तेदारों तक पहुंची तब मिलने वालों का सुरेंद्र जी के घर , तांता लगने लगा।

 परिवार के सदस्य , पहले से इस बीमारी की वजह से दुखी थे, अब अतिथि सत्कार से परेशान हो उठे।

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 इन सब चक्कर में सुरेंद्र जी ठीक से अपनी दिनचर्या भी फॉलो नहीं कर पा रहे थे ।

रामा जी दिन भर लोगों से अपने लिए ,सहानुभूति बटोरने के चक्कर में लगी रहतीं ।

उन्हें अपने पति की सेवा से ज्यादा, अपने लिए सहानुभूति इकट्ठा करना ज़रूरी था। 

अब भी अनजान बन पहले जैसा, व्यवहार पति और परिवार वालों के साथ  किया करती  ।

सुरेंद्र जी किसी मदद के लिए या दवाई के लिए पत्नी को बुलाते तो  वह बहूएं या पोते- पोतियों पर फेक देती ।

हर रिश्ते में एक दायित्व होता है, जिसे निभाना सभी को पड़ता है चाहे पति-पत्नी का ही रिश्ता क्यों  न हो ।

 बच्चे तो अपनी दायित्व को अच्छी तरह से निभा रहे थे ।

पर रामा जी अभी भी अपनी दायित्व से पीछे भाग रही थी ।

इधर कई दिनों से  सुरेंद्र जी की तबीयत बिगड़ती जा रही थी।

” अब लगता है मैं ज्यादा दिन नहीं बेचूंगा मैं कई दिनों से अच्छा महसूस भी नहीं कर रहा हूं। 

“बेटा मेरी मौत के बाद तुम अपनी “मां का ख्याल  जरूर रखना” अब वह तुम सबके भरोसे ही तो रह पाएगी। 

 सुरेंद्र जी, जतिन से बोले।

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 “नहीं बाबूजी आप ठीक हो जायेंगे।

“आप टेंशन ना ले ।

 जतिन ने अपने पिताजी को समझाते हुए बोला।

पत्नी रामा जी, जो बगल में बैठी मूंगफली खा रही थी झट से बोल पड़ी,

” अरे आप तो खामखा चिंता कर रहे हो !

आप ठीक हो जाओगे ,याद है ना, आपको अभी कुछ साल पहले “एक ज्योतिष बाबा ने कहा था कि, आपको मरने के लिए अनुष्ठान करना होगा।

 “कुछ नहीं होगा आपको देखना!

 पत्नी की इस तरह की मूर्खतापूर्ण   बातें सुन ,सुरेंद्र जी मन ही मन झल्ला उठे ।

 फिर भी रामाजी के लिए उनके मन में दया  थी।

एक सुबह अचानक सुरेंद्र जी की तबीयत बिगड़ती गई ।

उनका आखिरी वक्त आ गया था। संयोग से सभी बच्चें, उनके पास थे।

 सिर्फ रामाजी, जो अभी-अभी स्नान ध्यान और नाश्ता करके सुरेंद्र जी के साथ वाले कमरे में विश्राम कर रही थीं, नहीं थी। 

तभी बच्चों ने जोर-जोर से आवाज लगाई ।

“दादी मां! दादी मां !, दादा जी आपको बुला रहे हैं जल्दी चलिए ।

पर रामा जी अभी यह कह टाल गईं कि अभी-अभी तो मैं विश्राम के लिए आई हूं ।

“कह दे अपने दादाजी को, कुछ देर बाद आती हूं ।” कह पीठ बाई  तरफ  बदल ली।

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 “सभी परिवार वाले पास खड़े थे , लेकिन अंतिम समय में पत्नी को न देखकर  उनकी आंखें विचलित हो  उठी। 

सुरेंद्र जी मानो पत्नी को परिवार के झुंड में खोज रहे हो ,पर जब  प्राण निकलता है तब आदमी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं होता । 

 अगले ही समय उनकी आंखें  रामा जी को ढूंढते स्थिर हो गई।

  चेहरा  एक ओर लुढ़क गया।

 सुरेंद्र जी के मरने के बाद रोने चिल्लाने की आवाज से रामा जी दौड़ते हुए पति के कमरे में आईं। तब तक देर हो चुकी थी वह अचंभित होकर देखती रही। मानो जैसे “सांप सूंघ गया हो “

 एक प्यार करने वाला पति, जो  इस दुनिया और उनको छोड़ के जा चुका था उनके “अंतिम विदाई” का दायित्व  भी वह सही से नहीं निभा पाईं ।

धन्यवाद।

मनीषा सिंह।

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