बहू तुम ये योगा की क्लास लगा रही हो क्या जरूरत है फिजूल खर्ची की और फिर अभी तुम्हारे बच्चे छोटे है उन्हे कैसे जाओगी छोड़ कर आशी की सास डांटती हुई बोली
आशी बोली मांजी इसमें फिजूल खर्ची क्या हमारे शरीर के लिए योगा सेहतमंद होता है घर पर नियमित हो नही पाता और बच्चे उस समय स्कूल चले जाएंगे
मांजी बोली ये सब आजकल के फालतू चोचले है हमें तो पति और बच्चों के काम से ही फुर्सर्त नहीं मिलती थी औरतों की जिंदगी की अहमियत दूसरों के लिए जीने मैं ही होती है हमने तो यही सुना है और किया भी है हमेशा अपनों की खुशी के बारे मैं ही सोचा कभी सोच भी लिया तो स्वार्थी
ही समझा जाता था आजकल तो बस अपने बारे मैं पहले सोचती है
आशी बोली लेकिन मांजी अपने बारे मैं सोचना गुनाह तो नही है आखिर हमारी अपनी भी तो कोई अहमियत है अपने आपको खुश रखना स्वस्थ रखना ये हमारी जिम्मेदारी है यदि हम खुद को ही खुश या स्वस्थ नही रखेंगे तो घर और सदस्यों को कैसे खुश रखेंगे
हम यही सोच कर अपने को नजरंदाज करके बस परिवार के लिए जीते है फिर बही थकान या घुटन हमें चिड़चिड़ा बना देती है जो हम फिर परिवार पर उतारते है अभी कुछ दिनों से मेरे साथ भी ऐसा हो रहा था तो मेरी सहेली ने सलाह दी इसलिए मैने क्लास लगाई है
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सास मन ही मन सोच रही की बहु कह तो सही रही है आज उन्हे अहसास हुआ कि ऐसा इसलिए होता है वो भी ससुराल और बच्चों की सेवा मैं इतना थक जाती थी की कभी बच्चे अपनी बात बताने के लिए उनके पास आते तो वो काम के कारण उनको डांट देती गुस्से मै बोलती मुझे नही है वक्त तुम्हारी फालतू बातें सुनने का। पति कभी कहते की कभी खुद को भी देख लिया करो थोड़ा सज संवर कर रहा करो तो गुस्से मै बोल देती काम कौन करेगा उन्होंने यही सीखा था की घर के काम से औरत की पूछ होती है इस कारण पति और बच्चे दूर ही रहते और ये उनकी आदत मै शामिल हो गया था इस बात का उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया समय के साथ जिम्मेदारी थोड़ी कम हुई पर रिश्तों मैं नजदीकी नहीं आ पाई काश उस समय किसी ने समझाया होता की अपनी अहमियत समझना भी जरूरी है ..
क्या हुआ मांजी मैं जल्दी आ जाया करूंगी आशी बोली
नही बहू तू सही कह रही है अपने को खुश रखना सबसे पहले जरूरी है जब हम खुद की अहमियत
समझेंगे तभी दूसरे हमारी और हम उनकी तू कल से चली जाना ।
आशी अब पहले से खुश थी एक नई स्फूर्ति आ गई थी उसमें मांजी भी अब अपनी अहमियत समझ गई थी वो भी किट्टी और भजन मंडली मैं शामिल हो गई कल तक जिसे फालतू औरतों के काम समझती थी
स्वरचित
अंजना ठाकुर