डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -90)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

सोफे पर ही थकी नैना को नींद आ गई थी। मुन्नी ने भी उसे चैन से सोता हुआ देख कर नहीं जगाया है।

अगली सुबह नौ बजे,

” सुकुमारी, मुबारक हो! ” से नैना की आंख खुली।

देखा सामने रोहन कुमार खड़े मुस्कुरा रहे हैं। हड़बड़ाहट में उठ कर पूछी,

” अरे आप! आप कब आए ? और ये खबर आप तक भी पहुंच चुकी है “

” बिल्कुल! साली साहिबा ” रोहन कुमार खूब खुश लग रहे थे ।

उनके पीछे झांकने की कोशिश करती हुई नैना,

” जया नही आई ? “

” नहीं ,  कुछ जरूरी काम आ गया इसलिए उसे रुक जाना पड़ा।

तुम्हें मालूम है ?

विनोद और अनुराधा आने वाले हैं। मैं ने सुना है अनुराधा की  दिली इच्छा यहां रहकर ही कुछ काम-धंधा जमाने का है। “

” अच्छी बात है,  मैंने ही उससे कहा था,

छोटी जगह से ज्यादा अच्छा तो यहां रहकर कुछ नया करने में है। उसके आने से मुझको भी कंपनी मिल जाएगी “

अच्छा आप बैठिए, मैं अभी रेडी हो कर आती हूं।

शोभित आने को होगा आप उससे भी मिल लीजिए ।

हमारे नये नाटक का रिहर्सल शुरू होने वाला है”

दिन के सवा दस बजे रहे हैं। जब दरवाजा  पर कौलवेल की आवाज आई ।

नैना के दरवाजा खोलने पर सामने शोभित खड़ा दिखा।

“तुमने कहा था तुम तैयार मिलोगी लेकिन तुम तो अभी स्लीपिंग गाउन में ही हो ।

अगर और नींद आ रही हो तो हम स्टूडियो में ही मिलते हैं ” शोभित ने मजाकिया लहजे में।

” डोंट भी सिली !

शोभित अंदर आओ रोहन कुमार हमें बधाई देने आए हैं उनसे मिलो मैं अभी रेडी हो कर आती हूं “

इधर मुन्नी ने तरह- तरह की खाने की चीजों से टेबल भर दिया है।

तथा काॅफी बनाने की तैयारी कर रही है।

इतने देर में नैना भी फ्रेश हो कर उनके बीच आ गई है।

ब्रेकफास्ट के बाद रोहन कुमार जाने के लिए उठ खड़े हुए थे।

” अब तुमलोग अपना काम संभालो “

कह कर फिर मिलने का वाएदा कर के वापस हो लिए ।

शोभित इत्मीनान से सोफे पर बैठ गया।

” जब हम समझते हैं।  लुढ़के हुए घड़े का सारा पानी बह गया तब भी उसके तलछठ में थोड़ा पानी बचता है ” 

इस समय शोभित की स्थिति ऐसी ही है।

इन्हीं भावनाओं के वश में वह नैना से ,

” मैं तुम्हारा सदैव आभारी रहूंगा।

मेरे कैरियर की भटकती हुई नाव को तुमने नया प्रकाश स्तंभ दिया है”

नैना ‌ने उसके हाथ पर हाथ रख दिया है।

यह स्पर्श उनके पारस्परिक समझदारी की गहनता पर मानों मुहर लगाती सी है।

तभी दरवाजे की घंटी बजी

शोभित ने उठ कर दरवाजा खोला।  हिमांशु का स्वर था ,

” नैना है घर में ?”

नैना चौंक उठी  माया के साथ रात में हुई तमाम बातें स्मरण हो आईं उसने

शोभित को कहते हुए सुना,

” हां! आईए “

नैना उठ कर खड़ी हो गई ,

आओ हिमांशु बैठो, बगल में रखे सोफे की ओर इशारा करते हुए।  लेकिन हिमांशु ने नीचे कालीन पर बैठने को ज्यादा अहमियत देते हुए सोफे से आगे बढ़ गया।

वो सोफे से आगे बढ़कर नीचे बिछी क़ालीन पर दीवार से टिक आराम से बैठ गया है।

आगे …

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