डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -75)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

हिमांशु करीब आधे घंटे बाद नैना के फ्लैट से निकल गया था और रुक नहीं पाया ?

उसने शायद यही मान लिया था नैना ने मुझे रोका नहीं ,

” मुझे उसमें अपने प्रति पहले से अधिक शुष्कता दिखाई दी है “

मैं भी कुछ ज्यादा ही बहस पर उतर आया था और नैना ?

शायद खुद को विवश पा रही थी।

वह शुरू से ही तार्किक नहीं भावुक प्रवृत्ति वाली रही है “

बहरहाल

–नैना …

आज हिमांशु के चले जाने के बाद मेरा मन भी कहीं जाने का नहीं कर रहा है।

उसने औफिस से छुट्टी ले ली।

फ़िलहाल  टैरेस वाले बागीचे में नैना सोच रही है ,

” उम्र तो कुछ खास नहीं गुजरी है मुझ पर किंतु जिंदगी के मुद्दे मुझपर कुछ इस कड़वाहट के साथ हावी हुए हैं।

कि चाहकर भी मैं अपने लिए कुछ नहीं सोच पा रही हूं “

वे हल्के सर्दियों वाले दिन थे।

नैना धूप की गुंजाइश में बाहर टैरेस पर चली आई।

उसकी नजर मुन्नी पर पड़ी जो हिमांशु के आने से बराबर मुझ पर नजर बनाए हुई है।

नैना ने हल्के से उसकी पीठ पर धौल जमा दी।

मुन्नी को अगर गीत गाना आता होता तो इस वक्त वह यकीनन मीठे स्वर में  सगुण के गीत गुनगुनाती रही होती।

मुन्नी उसके घर की पूरी नहीं तो आधी मालकिन जरूर है।

उस दिन उसने खाने में गजब का तड़का लगाया था।

पूरा घर घी की खुशबू में महक रहा था। वैरायटी देख कर तो नैना की पुतलियां फैल गई थीं।

नैना के मन में लगातार द्वंद्व चल रहा है।

आज हिमांशु के साथ बीते पलों को क्या नाम दूं?

रात को बिस्तर पर अकेले पड़े – पड़े नैना,

” हिमांशु का छूना ,एक मर्द के छूने जैसा कितना खास और अलग लगता है ? ऐसा लगता है  मानो एक सागर की तरह वह मुझे तिनके बनाकर उड़ाए लिए जा रहा है “

उसे चले गए हुए कितनी देर हो गये लेकिन अभी भी रोम- रोम में उसका एहसास व्याप्त है।

नैना के मन का द्वंद्व उसे हमेशा अपनी इच्छाओं – भावनाओं का गला घोंटने को उकसाता है। इन दिनों वह खुद को परिवार की इच्छाओं की सीमा में बांध कर देखने लगी है।

अगले दिन सुबह ही सपना के पति देवेन्द्र का फोन आ गया फोन पर मात्र,

” नैना ! अगर पाॅसिबल हो सके तो तुम एकदम से यहां आ जाओ … इट्स एन इमरजेंसी  “

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