डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -74)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

” तुम्हें रंगमंच की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री होने की बधाई ।”

नैना चौंकी ,

“कैसे मालूम हुआ ? “

पिछले हफ्ते माया से बात हुई थी।

” दीदी  कैसी हैं ?”

वहीं अकेलेपन का दुखड़ा , मैं साथ रखने को तैयार हूं पर नहीं  उन्हें तो वही जिद है।

“पहले खुद और नैना के लिए कुछ साॅलिड करके दिखाओ तब ही आऊंगी। दुःख भरी खबर यह है पिता नहीं रहे।

वैसे तो सदा से उनका रहना ना रहना दोनों ही हमारे लिए एक साथ था फिर भी …  “

कहते हुए गला भर आया था हिमांशु का।

” एक  मित्र के साथ बहुत बड़े प्रोजेक्ट पर बात चल रही है । सब कुछ उसकी सफलता – असफलता पर निर्भर करता है “

हिमांशु की आवाज़ बदल गई साथ ही चेहरे के भाव भी।

उस एक क्षण में वह नैना को अपरिचित सा लगा।

वो आशंका से कांप गई।

” जया दी कैसी हैं ? “

” अच्छी है , वे लोग दूसरे बच्चे का प्लान कर रहे हैं “

” ओहृ … एक ही काफी नहीं था ! “

नैना मुस्कुराई ।

” गर्मियां आने वाली हैं, उसमें क्या  प्रोग्राम है मेरा मतलब हमारी भावी ज़िंदगी से है ? तब तक माया भी शायद तब तक वापस लौट आए “

” अभी  ? इतनी जल्दी “

इस बार नैना ने नज़रें नहीं चुराईं …

” अभी तो ‘ डायमंड थिएटर’ से  दो वर्षो का अनुबंध किया है ” 

हिमांशु हस्की आवाज में ,

” उस शोभित के साथ ? “

जैसे जोर से चिकोटी काट ली है।

बांहों में सिमटी नैना को जकड़न सी महसूस हुई उसने खुद को अलग  कर लिया,

” क्या हो गया है तुम्हें ?  स्वर में उलझन और खेद के भाव भरे हुए थे। जिससे उबर कर उसने झटके से जवाब दिया।

“शायद ठीक  से सुना नहीं तुमने ‘ डायमंड थिएटर’ के साथ “

यह हिमांशु के साथ नैना की पहली मत भिन्नता थी।

” मुझे ?

नहीं हां लेकिन जबसे तुम्हारी जोड़ी शोभित के साथ हिट हुई है । तुम्हें जरूर कुछ हो गया है “

” हिमांशु ! “

बुरा नहीं लगा नैना को, वक्त ने उसे सयाना बना दिया है।

सिर्फ आहत भाव से उसे देखती रही।

वह सोफे पर बैठ गया  था।

और सिगरेट निकाल खाली कर के उसमें चरस भरने लगा।

आजकल वह चरस की पुड़िया जेब में रख कर चलने लगा है।

अतीत की परछाई का कोई अंश नहीं था उसके चेहरे पर।

थोड़ी देर बाद कुछ झिझकते हुए फिर कहा उसने ,

” एक बात पूछूं”

दिल धड़का नैना का उसे लगा शायद वो फिर परंपरागत प्रेमी की तरह यादों के वंदनवार खोलेगा और पूछेगा ,

“क्या तुम खुश हो ?

कल्पना में बर्षों पहले की तस्वीर तैर गई , दोनों के बीच चुप्पी पसरी है। हिमांशु उठ खड़ा हुआ,

” चल रहा हूं, फिर आऊंगा “

बस में वापस लौटते वक्त हिमांशु अवसाद से भरा था।

उसके आस- पास ऐसा कितना कुछ घटित हो रहा है जिसपर उसका वश नहीं चलता।

” संकुचित और दमघोंटू वातावरण में भी लोगों की जिंदगी बदल रही है पर मेरी … ?  “

शायद नैना और शोभित …  नये घर में  … एक आशंका मन में व्याप्त हो रही है। अगले ही पल उन निर्मूल आशंकाओं को झटक अन्तर्मन से आवाज़ आई ,

”  नहीं -नहीं बिल्कुल नहीं ऐसा नहीं होगा ” 

उसकी ठंडी सांस निकल आई।

आगे …

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