डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -67)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

सीढ़ियों पर पांव रख कर अंदर आने वाला वह व्यक्ति दर असल हमारे घर का बहुत पुराना नौकर ‘धानी’ था।

जिसकी छवि धूमिल तो हो गई थी। अभी मेरे मन में थोड़ी बहुत अंकित थी। इतने बर्षों बाद भी उसके शक्ल-सूरत में कोई विशेष फर्क नहीं आया था।

उसके साथ एक आदमी और था।

जिसने मुझे बाद में बताया, कि मेरे पिता उन दोनों को मेरे वापस लौट आने की आस में नित्य बिना नागा स्टेशन भेजा करते हैं।

खैर …

मैं तो उनकी नजर बचा कर वहां से निकल जाना चाहता था , पर धानी ने मुझे देख लिया था और ना सिर्फ देख लिया था बल्कि पहचान कर ऊंची आवाज़ में ,

” हेम ! हेम बाबू ! ”  कह कर पुकार उठा।

मन में आया पुकार को सुनी-अनसुनी करके आगे बढ़ जाऊं।

लेकिन यह अप्रिय हो जाता और फिर उसी क्षण मन में एक अदम्य इच्छा और कौतूहल जाग उठी। अतः अपने स्थान पर ही पांव जमाये जहां खड़ा था वहीं खड़ा रहा।

वो तेज कदम बढ़ाता हुआ मेरे पास आ पहुंचा।

– — राम- राम , हेम बाबू!

फिर परम स्नेह से मेरी पीठ पर हाथ रख कर पूछा ,

” हेम बाबू , आखिर आप आ ही गए , बाबूजी की करुण पुकार आपको खींच कर ले आई,

” मर्माहत हुआ मैं ,

मेरी बात छोड़िए पहले यह बताइए पिता कैसे हैं ?”

” आप इतने वर्षो तक कहां रहे , हेम बाबू ? बड़े बाबू आपकी वजह से बहुत परेशान रहते हैं ।

हर घड़ी आपको याद करते रहते हैं “

” खास कर जब से आपकी मां का देहांत हुआ है तब से आपके लिए उनकी बेचैनी और बढ़ गई है “

सुनकर मुझे अजीब सी सांत्वना मिली क्यों  ?  मैं स्वयं नहीं समझ पा रहा हूं।

आगे मैं ने सुना मुलाजिम कह रहा है ,

” उनकी सेहत दिन पर दिन गिरती जा रही है हर समय आपको याद करते रहते हैं और कहते हैं,

— बबुआ का मुंह अगर मरने के पहले देख पाता तो चैन से मर पाता पर अब इस जन्म में उससे मिलने की कोई उम्मीद नहीं बची है  “

” बबुआ बहुत अच्छे दिल का है।

 लेकिन उतने ही कच्चे दिल का भी है। मैं ने उसकी मां को सताया है।

वह इस बात को गांठ में बांध कर रखे हुए होगा। मुझे शक ही नहीं पूरा विश्वास है कि वह मुझे कभी क्षमा नहीं करेगा “

यह सुनकर मेरी आंखें डबडबा गई। मैंने देखा धानी की आंखें भी भर आई हैं।

लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आ रहा था,

कि वो  नाटकों में खेले जाने वाले पार्ट का रटा- रटाया वाक्य बोल रहा है ?या सीधी सच्ची बात कह रहा है ?

यद्यपि उसके मुंह पर सच्चाई के भाव थे।

फिर  स्मृति  में मां और माया का रुंधा हुआ चेहरा तैर गया  मां हमेशा कहा करती थीं,

” तुम्हारे पिता निहायत देहाती किस्म के और बातचीत में ठेठ  उज्जड रूढ़ स्वाभाव वाले इन्सान  हैं “

मैं स्वगत ही ,

” कहीं नहीं जाऊंगा। मुझे जरूरी काम से कहीं और जाना है। ट्रेन छूट गई तो मेरा बहुत नुक़सान हो जाएगा ”  कहता हुआ आगे बढ़ आया।

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