डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -66)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

पिछले कुछ दिनों से मैं ने एक अति गोपनीय बात अपनी मां और माया से छिपाकर रखी है।

या यों समझिए मेरी हिम्मत ही कभी नहीं पड़ी उन दोनों के सामने उस गोपनीय तथ्य को खोलने की।

खोल कर बताता भी क्या और क्यों ?

मैं जानता था वे दोनों कभी पिता की इस प्यार भरी हरकत को रेलिश नहीं करेंगी और महज भर्त्सना के नाम पर उल्टा- सीधा प्रलाप करेंगी लिहाजा  मैं चुप लगा जाता…

पिता द्वारा मेरे नाम भेजी गईं उन  चिट्ठियों में जिनमें अगाध करुणा भरी रहती थी,

उन चिट्ठियों में मेरे लिए कितने प्राण स्पर्शी ममत्व भरे रहते, एक- एक शब्द में कितनी मार्मिक वेदना टीस मारती।

मैं उनका इकलौता पुत्र था।

और वे पत्र महज पत्र न हो कर एक पिता की ममता के अत्यंत विकल  आवेदन-पत्र थे। जिनमें एक बार  उनकी मृत्यु होने से पहले मिल लेने की कातर प्राथना की गई रहती।

एवं पिछली सब गलतफहमियों को दूर करके सिर्फ उनसे आशीर्वाद ले लेने की मिन्नतें की जाती थीं।

उन पत्रों को पढ़कर मेरे अंदर करुणा का आवेग दिन पर दिन बढ़ता गया था और उनसे सिर्फ एक बार मिलकर उनके थके हुए सीने पर सिर रख कर रोने के इच्छा कितनी बलवती होती गई थी इसे सिर्फ मैं जानता हूं।

लेकिन मां को उनके प्रति बिल्कुल लापरवाह और निश्चित देखता तो उनसे कुछ कहने से खुद को मजबूर पाता था।

मेरी मां बहुत मजबूत या कुछ अर्थों में अपनी शिक्षा का दंभ भरने वाली एक  खुद्दार महिला थीं।

अपनी बात की अवहेलना और दूसरे की सुनना उन्हें बेहद नागवार गुजरती।  धीरे-धीरे मैं उनसे कटता हुआ अंधेरों में घिरता चला जा रहा था।

अब उनके मरने के पश्चात मैं अधिक स्वच्छंद हो कर अपनी मनमानी करने में जुट गया।

बहरहाल ,

माया के चेन्नई चले जाने के दो- तीन दिनों के उपरांत एक रात मैं अन्यमनस्क हो कर स्टेशन जा पहुंचा और वहां से गांव वाले घर जाने वाली गाड़ी पकड़ ली।

अगले दिन सुबह-सुबह ही मैं अपने पैतृक गृह स्टेशन पहुंच गया था।

जहां पहुंच ट्रेन से उतर कर प्लेट फार्म के भीतर कांपते हुए पांव रख कुछ समय यों ही इधर- उधर देखता रहा।

उस दिन शनिवार था, और आसपास के इलाकों में रहने वाले आफिसों के इम्प्लॉइज वीक एंड में घर जाने की हड़बड़ी में स्टेशन पर भीड़ लगाए हुए थे।

घोर आश्चर्य !

वहां पहुंच कर एकबारगी मेरा मन पिता की निपट निसहाय अवस्था की बात एकदम से भूल गया था, जैसे यह मेरे पूर्वजन्म की बात हो और इस जन्म में मेरा उनसे कोई संबंध ही नहीं हो।

मैं फिर से वापसी के लिए टिकट कटाने को ध्यान में रख कर टिकट घर की ओर बढ़ा।

लगभग पांच-छह कदम ही आगे बढ़ा था,

कि अचानक एक परिचित  से चेहरे वाले व्यक्ति को बाहर की सीढ़ियों से ऊपर प्लेट फार्म की तरफ आते देख कर ठिठक कर रुक गया।

आगे …

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