डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -63)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

काॅलवेल पर उंगली रखने के पहले नैना ने नजर घुमाई … कोई नहीं था  सिवाय खालीपन के ,

” कहां चले गये सब  ” सोचती हुई उंगलियों पर दबाव  बढ़ाया।

घर के रखरखाव रखने वाले रघु ने दरवाजा खोला और एक ओर हो गया ,

” माया और हिमांशु  ? “

” माया बिटिया तो पिछले हफ्ते  अपने ‘एन जी ओ ‘ के  काम से चेन्नई चली गई  है ,

बता रही थीं उन्हें  वहां दो -चार महीने लग जाएंगे  “

” हिमांशु, वो कहां चला गया ?” 

नैना बेसब्र हो उठी।

” पहले अंदर आओ बिटिया बैठो , फिर सारी बात बतलाता हूं “

उतावली हुई जा रही नैना, 

पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठ आंखों में प्रश्नों के अंबार लिए रघु को देख रही है।

” हिमांशु बेटा … कुछ दिनों  से परेशान  रहा करते तथा किसी बात से माया बिटिया से नाराज़ भी चल रहे थे ,

दोनों में बातचीत कुछ दिनों से बंद थी “

” माया बिटिया उन्हें कितनी दफा तुमसे बात करने की सलाह देतीं।  पर उन्होंने माया की कभी सुनी है  क्या  जो इस बार सुनते ? “

एक दिन गांव वाले घर से खबर आई ,

”  पिता अपने अंतिम दिनों में हैं।  तो वो माया के मना करने के बाद भी गांव वाले घर अर्थात बाबा के पास चले गए “

नैना सोच में डूबी हुई ,

” मेरे लिए कुछ कह कर नहीं गये ?”

अचानक रघु को जैसे कुछ याद आया वो अंदर गया।

यही कोई पांचेक मिनट के बाद वो दुबारा हाथ में एक लिफाफा थामें हुए आया। जिसे नैना को पकड़ाते हुए ,

” इसे माया ने तुम्हें दे देने को कहा था “

नैना लिफ़ाफ़ा ले बाहर आ कर अपने औफिस के  लिए निकल गई। वापसी  में हिमांशु का चेहरा आंखों के सामने तैर रहा था।

औफिस पहुंच कर उसने जतन से बैग में रखे लिफाफे को निकाला और पढ़ने बैठ गई।

” यह तुम्हें लिखा मेरा पहला ख़त है नैना।

इसकी भी जरूरत नहीं पड़ती अगर उस दिन तुम मुझे औफिस में मिल जाती।

मेरा चेन्नई जाना जरूरी था एवं हिमांशु बिखरा हुआ सा लग रहा था। 

मेरे और उसके बीच हमारे पिता को लेकर कब दरार पड़ी पता ही नहीं चला।

वह बचपन से ही  मां- पिताजी के  टूटते संबंधों को लेकर सेंसिटिव रहा है।

लेकिन अब तो कभी इधर- कभी उधर फिर बार- बार किसी भी स्थिति से संतुष्ट नहीं रहने के कारण अब वो मेरे लिए अजनबी बनता जा रहा है।

उसका दिन- दिन भर गायब रहना और फोन करके पूछने पर हर बार एक ही उत्तर ,

” आप मेरी चिंता ना किया करें “

इस तरह उसका एक तरफा होते चले जाने  वाला व्यवहार मेरी समझ से बाहर और उसके प्रति ढ़ेर सारी शंकाओं को जगाने वाला था।

एक दिन मैं उसे बिना बताए उसके औफिस पहुंच गयी।

वहां जो उसकी हालत देखी,

” मैं ने तुम्हें कितनी बार फोन किया ”  न चाहते हुए भी मेरी आवाज तीखी हो आई थी।

उसकी आंखें लाल हो रखी थीं। मैं समझ गई थी कि इसने दिन में ही मुन्नक्का ले रखा है।

हैंगर पर उसकी दो कमीजें और एक जींस टंगी थी।

हम दोनों  के बीच एक ठंडे तनाव का अनुभव कर रही थी मैं ।

फिर भी उसकी कमीज की पौकेट सर्च की

जानती हो नैना  ?

मैंने इस ड्रग के चक्कर में  आसमान पर चढ़े लोगों को भी नाली के कीड़े में  बदलते हुए देखा है।

मेरे एन-जी- ओ में ऐसे ही लोग आते हैं। और खुद मेरे घर में मेरा ही हिमांशु पतन के गर्त में डूबने को तैयार ?

” इससे निजात पाने के लिए मैं ने लोगों के ऐसे दर्दनाक संघर्ष देखें हैं।  कि अगर उस सब को तुम्हें बताने बैठूं तो तुम्हारी रातों की नींद उड़ जाए “

को पढ़ते हुए नैना आवेग से भर उठी…

” वैसे मेरा हिमांशु बहुत सामर्थ्य वान है।  बस थोड़ा सा जिद्दी और कट्टर है “

उसे कभी तुम समझा पाओ तो मुझे भी बताना।

मेरे पीछे कोई नहीं है।

पर मुझे संतोष है उसके पीछे  तुम हो  “

तुम्हारी माया…

पत्र को मोड़  कर नैना ने अपने बैग के हवाले किया। पिछले कुछ सालों में निरंतर संघर्ष  करती हुई नैना,

इस बात से भली- भांति परिचित हो चुकी है।

” स्वप्न हो या वास्तविकता दोनों के लिए ही जरूरी है  ‘ ठोस जमीन ‘ जिसपर पैर टिका कर मजबूती से खड़ा हुआ जा सके “

फ़िलहाल उसे अपने  पैरों के नीचे उसी ठोस जमीन की तलाश है।

अगला भाग

डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -64)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!