डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -6)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

अचानक उसकी सहज बाल सुलभ दिनचर्या में एक तीखा मोड़ आने लगा था। उन दोनों बहनों के स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क है।

नैना सयानी होने को आई है पर उसका रवैया बड़ा ही उलझा रहता है।

लेकिन उसके स्वभाव में कुछ खूबियां भी हैं जो उस उम्र की लड़कियों में थोड़ी कम ही होती हैं।

बिना कुछ बोले खुद को सिर्फ भाव के जरिए जाहिर किया जा सकता है। किस तरह शब्दों के जादू से मन की किताब पर ढ़ेरों किस्से कहानियां लिखीं जा सकती हैं यह उसे बखूबी पता है।

उसकी मन की उड़ान को छू पाना इतना आसान नहीं है किसी के लिए भी नहीं। ना मां- बाबा के और ना ही दी- भाई के लिए।

उनके घर से थोड़ी ही दूर पर एक सिनेमा हाॅल पड़ता था।

वे दोनों घर और विनोद भाई से छुपते – छिपाते  उसमें चल रहे रोमांटिक सिनेमा के शो देख आतीं।

इसके पहले उसके जीवन में जहां अभूतपूर्व शांति थी वहीं अब  प्यार – मुहब्बत -इश्क आदि-आदि जैसे नये- नये शब्दों के  इजाद हुए थे।

फिल्में देखना और उसके तद्नुसार शीशे के सामने खड़े होकर तरह- तरह के फिल्मी लटके- झटके वाले हाव- भाव वाले व्यवहार की नकल करना नैना के नये और सबसे प्रिय शौक  बन चुके थे।

जिसमें अक्सर तो नहीं पर कभी-कभी जिद कर के वो जया को भी शामिल होने को मजबूर कर देती।

खुद हीरोइन बन जाती और जया को बना देती है चाॅकलेटी हीरो।

 फिर एक से बढ़ कर एक रसीले अंदाज में आंखें मटकाती, अंग हिलाती  कूल्हे मटकाती नृत्य करती है कि मत पूछिए ?

उसकी इन जान लेने वाली अदाओं के सामने जया को फिल्म की  हीरोइन भी फीकी लगती।

वह  बढ़- बढ़ कर उसकी बलाएं लेती हुई उसे  बांहों में भर लेती।

फिर जून निकला और बरसात की फुहारों ने सब तरफ हरियाली ला दी स्कूल खुल गये थे।

नैना की लम्बी छुट्टियों के बाद स्कूल का पहला दिन चारों ओर हल्ला-गुल्ला , शोर -शराबा नैना को फिल्मों का नया खुमार चढ़ा हुआ।

उन्हीं दिनों उसका सामना किसी नये आशिक से हुआ था। शायद बीस से पच्चीस के बीच रहा होगा।  बेहतरीन छवि , कांपती हुई आवाज।

उसके पास एक नीले रंग की साइकिल थी। जिस पर सवार वो रोज सुबह और शाम को छुट्टी के समय उसी स्कूल के सामने खड़ा रहता जहां नैना पढ़ती थी ।

जब वो पहले से खड़ी  बस की तरफ अपनी झूमती हुई चाल से चल कर  बढ़ती तो वह सांवले रंग वाला  आशिक भी उसके पीछे हो लिया  करता और बस के साथ- साथ कभी आगे तो कभी पीछे उसकी खिड़की वाली सीट के  बगल में साइकल पर चलता।

कभी मुस्कुराता, कभी होंठ गोल करता  तो कभी आहें भरता उसे बुरा तो नहीं लगता पर साफ- साफ कहें तो अच्छा भी नहीं लगता।

एक दिन उसने जब दीदी को यह समस्या बताई तो जया ने कहा ,

” कितना सुंदर है ? “

जया ने उसके लिए स्मार्ट शब्द का प्रयोग नहीं किया था ।

इसकी वजह शायद उसका साइकिल पर सवार होना था।  क्योंकि उन्हें शायद तब उसका साइकिल पर सवार होना बेहद स्वाभाविक लगा है।

बहरहाल,

नैना उसके इर्द गिर्द होने और मीठी फ़ब्तियो  से लुभा जाती असमंजस वाली स्थिति में भी पड़ जाया करती।

उसकी दीवानगी में नैना प्रेम जैसा कोई आकर्षण नहीं पाती।

तो क्या अगर वह साइकिल छोड़ किसी और तरह से आता तो नैना के चेहरे पर मुस्कराहट ला पाता ?

और नैना के मन में अपने प्रति राजकुमार वाली फीलिंग दे पाता ?

आह! यह टीन एज और हमारी नायिका नैना सरीखी टीन एजर्स की अल्हड़ सोच।

आगे …

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