डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -5)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

नैना के पिता  जिला सचिवालय में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी थे।

कानपुर की संकरी , उबड़खाबड़ और खुली नालियों वाली गली में उनका पुश्तैनी पक्के का मकान था।

उनकी अपनी दो बेटियां हैं जिनमें बड़ी बेटी 

१) ‌‌’ जया ‘ 

थोड़ी सांवली और तीखे नाक नक्शे वाली वह घर के कामकाज में मां की सहायता कर दिया करती ।

२) ‘  नैना ‘ , लंबी – छरहरी बड़ी -बड़ी आंखों वाली जिसके बचपन में सब उसे   ‘चकरी ‘ कह कर बुलाते थे। वो इसलिए कि वह जब दो- तीन हफ्तों की ही थी तभी से पूरे बिस्तर पर घूम – घूम कर सोया करती।

चलते समय उसकी चड्डी फिसलती रहती थी ,

और जिसे अपनी बहती हुई नाक फ्राक से पोछने में कोई परहेज  नहीं रहता।

वो शुरू से बड़ी बहन जया की अपेक्षा चंचल और चिंतनशील थी।

मां उसे बचपन से ही भली भांति समझती हैं।

वह यह कि,

” नैना के  सन्दर्भ में  सब कुछ  उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है “

जिसकी बारीक सोच और तर्कशीलता  के लिए उनके मन में कौतुक भरा स्नेह भरा हुआ है।

३) जबकि पिता उसे लेकर हरदम विचलित रहा करते हैं।

४ ) ‌‌ भाई  विनोद, यों तो ताऊ जी के बेटे हैं पर मां- बाबा ने कभी फर्क नहीं जाना। उनकी  व्यवहार बुद्धि अति चौकन्नी है।

वो सहज बात चीत के दौरान बहनों की मानसिक अवस्था से परिचित होते हुए उनपर प्रौपर निगरानी रखने का प्रयास करता है।

इस समय  परिवार में जया की शादी का मुद्दा मुखर है।

दान- दहेज के लिए परिवार के पास विशेष पैसे हैं नहीं, पिता साधारण नौकरी में हैं।

जया शुरू से ही मां के साथ घर के कामों में मदद करने में जुटी रहने के कारण ज्यादा तो नहीं पर सेकेंड डिवीजन से बी.ए पास कर  किसी तरह  बी. एड की डिग्री भी ले ली है।

लेकिन पैसों  के अभाव में जहां भी उसके शादी की बात चलती है। वहीं असफलता हाथ आती देख  घर के माहौल में  तनाव ‌घुलने लगा है।

पिता ने मंगल का व्रत रखना शुरू कर दिया है  और मां ने शुक्रवार का व्रत।

जिस सब को देख जया भी एक अदद दूल्हे के लिए बेताव हो उठी है।

उसे  अपने चेहरे को चमकदार बनाने की कोशिश में जुटी देख।

एवं किसी के द्वारा खुद को पसंद किए जाने वास्ते रोज शाम को मंदिर में जा शिवलिंग पकड़ घंटों बैठी रहती पा कर नैना को उसके और करीब ला दिया है।

वो अक्सर दीदी को टोक देती है ,

” दीदी दूल्हे को पाने की इतनी बेताबी ? “

” नहीं रे , मां- बाबा की परेशानी दूर करना ही इसकी वजह है “

जया मायूस सी हंसी हंस कर कर उसे टालने की कोशिश करती है।

तब नैना के बेइंतहा गुस्से का ठीकरा बाबा के सिर फूटता दबी जुबान से,

” जब निभाने की औकात नहीं थी, तो पैदा क्यों किया जरूरत क्या थी ?

” क्या कहती है नैना ? “

” हां ठीक ही तो कह रही हूं परिवार नियोजन भी कर सकते थे जिसके इतने सारे तरीके हैं कोई भी अपना लेते। “

जया  घबरा कर में उसके मुंह पर हाथ रख देती।

” चुप- चुप , नैना तुम भी ना !

कुछ भी कहती चली जाती हो  ऐसा नहीं कहते,  कुछ भी हो आखिर वे हमारे पिता है ंं “

” हुंह … लानत है “

नैना जया की अच्छाई पर और चिढ़ जाती “

इसी तरह चिढ़ती-चिढ़ाती जया, नैना और विनोद भाई उम्र की सीढ़ियां दर सीढ़ियां चढ़ते चले जा रहे थे।

नैना की किशोरावस्था शुरू हो गई है।

यह उसके जीवन के सबसे संकट के दिन थे। जब उसके शरीर के अंग और कटाव मुखर और मांसल हो रहे थे।

उसकी ब्रा का साइज़ दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था।

और नन्हा सा दिल बात – बात पर बल्लियों उछलने लगता था। वह स्कूल में थी।

“टीन एजर  नैना  “

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