डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -7)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

चर्चा एक और आशिक की …

‘ रोहित ‘  नैना की की सहेली निभा का पड़ोसी था।

‘ निभा ‘  ने  एक दिन उससे कहा ,

” रोहित तुम्हें बहुत चाहता है “

” हां!  सच में क्या ? ” यह पहली दफा था। जब नैना ने अपने लिए भाया मीडिया ऐसी बातें सुनी थीं।

जिसे सुनकर उसे बहुत खुश हो जाना चाहिए था। परन्तु उसे ऐसा कुछ नहीं  हुआ।

वरन् उसे लगा ,

 ” यह क्या बात हुई  ?

मैंने तो ऐसा अभी कुछ सोचा भी नहीं है। यह तो अचानक से टपक जाने जैसा है “

” क्या प्रेम ऐसे ही बिना तैयारी के कर लिया जाना चाहिए ? “

उसके दिल से आवाज आई,

” प्रेम ! परिपक्व सी उम्र में किए जाने और जिसे करने से पहले खूब सोच विचार कर लेना चाहिए “

तब उसने उलट कर निभा से पूछ लिया,

” तुम्हें पसंद है वह मोटे होंठों वाला रोहित ?  “

निभा झेंप गई।

फिर उस छोटी सी उम्र वाली  नैना ने नहीं चाहा था।

” कि निभा दोबारा उससे रोहित की बातें करें “

— जया

का व्यवहार  बिल्कुल अलग है। 

मां के साथ लगी रहने वाली जया उम्र से पहले ही जिम्मेदारी और  अनुशासन में बंधी हुई है।

जया भारतीय परंपरा में बड़ी बेटी के कंधों पर इज्जत, मान-मर्यादा और शान की पोटली बांधने वाले मां- बाप की उम्मीदों का शिकार है।

भाई और मां -बाबा के और भी कितने  मानदंड हैं। जिसपर उसे खड़ा उतरना होता है।

कुछ दहलीज थी जिसके उस पार उतरना जया के लिए कठिन है।

उदाहरण के लिए एक दिन …जया किचेन में  चाय बना रही थी । अचानक उसे लगा खिड़की के बाहर से उसे कोई घूर रहा है।

वह भी बाहर देखने लगी है। तब तक पीछे से मां आ गई ,

” किसे देख रही है जया ? वहां कौन है ?

मां ने पूछा तो जया एकदम से सकपका गई।

” कोई भी तो नहीं मां।  बाहर कहां देख रही हूं मैं ? मैं तो चाय बना रही हूं “

यह तो भला हो  कि इसी बीच वहां नैना आ गई।

” अरे मां ! आप इतना घबड़ा क्यों जाती है ?वहां बाहर मैं खड़ी थी।  दी मुझे ही तो देख रही थी “

बोल जया को आंख मार कर मुस्कुरा दी।

सुनकर  जया की जान में जान आई।

” तू भी ना जया,  पागल है बिल्कुल  कुछ ना भी करे तो डर जाती है।

इस तरह जैसे कि कितना बड़ा गुनाह किया है “

कहती हुई मां किचन से निकल गई थीं।

जया ने क्या शौक और सपने पाल रखे हैं यह जया जाने ?

पर नैना!

वह तो अपने सपने से रूबरू हो चुकी है।

उसे लिखने का शौक है और यह शौक उसे कब ? किस तरह ? और  कहां लगा यह वह नहीं जानती।

एक दिन यों ही छत पर बैठी हुई काॅपी के पिछले पन्नें पर आड़ा – तिरछा कुछ खींचते हुए दो चार लाख दिया बस एक छोटी सी कविता बन गई।

उसे पहली बार खुद पर रश्क हो आया कि वह भी लय भरे शब्दों में कुछ सोच सकती है।

बस उसके बाद से अब कभी भी जब दिमाग के तार झनझनाते हैं।

या दिल का शार्ट सर्किट उड़ता है। तो काॅपी के दर्जनों पन्ने रंग  खूबसूरत  कविताओं और शायरियों से रंग जाते हैं।

समय के साथ- साथ  उसके पिता को यह एहसास हो गया है कि नैना बाकी सबों  से भिन्न  है।

खैर!

जया और नैना एक ही पलंग पर और एक ही रजाई में एक दूसरे से चिपक कर सोती हैं।

उस दिन देर रात तक शाम में किचेन वाली बात पर आपस में बतियाती वे दोनों ..  हंसते- हंसते गाढ़ी नींद में चली गई थीं।

बाहर चौकीदार के लाठी की ठक- ठक की आवाज आती रही।

सुबह साढ़े पांच बजे जब अलार्म की आवाज से नैना की नींद टूटी। वह झट से पलंग पर से उठ कर खड़ी हो गई।

जबकि जया रजाई में ही कसमसा कर रह गई है,

” क्या हुआ ? इतनी जल्दी इस ठंड में बर्फ की तरह जम जाएगी “

” कुछ नहीं हुआ  , पर अगर और देर रजाई में रही तो मुझे देर हो जाएगी “

कहती हुई बाथरूम की तरफ बढ़ गई।

इस वक्त उसका ध्यान उस कार्ड पर था जो उसके स्कूल बैग में पड़े किताबों के बीच  उसके मासूम अरमानों को समेटे हुए पड़ा हुआ है।

अगला भागhttps://www.betiyan.in/darling-kab-milogi-part-8/

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