” जीवन- चक्र चलता रहता है।” मां के गंगालाभ पर दुःखी पिता बोले थे,
” दुःख के कांटे उगते हैं। फिर उल्लास के अंकुर फूटने लगते हैं। एक ज्योति का बुझना और दूसरी का उभरना यही जीवन का नियम है “
” लेकिन तुम कितनी चुप- चुप हो गई हो विवाह कब करोगी ?
हल्की मुस्कान के साथ ,
” मैं तो लंबी दौड़ का घोड़ा हूं बाबूजी”
पिता कुछ कहने वाले थे पर फिर बड़े शहर में रहने वाली आधूनिका पुत्री के सामने चुप हो गए।
घर पर करीब हफ्ते भर बिताने के बाद नैना वापस दिल्ली लौटी थी।
” नमस्ते नैना! नमस्ते मिसेज अरोड़ा!”
” क्षमा करें ! आपको इतनी सुबह कष्ट दिया “
क्षमा कैसी ? आओ-आओ कहती हुई गेट के ताले खोल चुकी हैं।
” धन्य भाग्य आज सुबह – सुबह तुम्हारे दर्शन हुए, घर पर सब कैसे हैं ? “
“ठीक है, अगर जरुरत पड़ी तो अगले कुछ दिनों बाद अनुराधा को यहां बुला लूंगी “
” नैना , अंकल पूछ रहे थे टी वी पर तुम्हारा ड्रामा अब आएगा ? “
” अगले महीने “
सीढ़ी चढ़ते समय दिल की धड़कन तेज हो ही जाती है सो उसकी भी हुई।
वो चढ़ भी तो फटाफट गई थी । जैसे उपर दरवाजा खुलते ही कोई खजाना मिलने को है।
धीरे- धीरे उसकी चाल सुस्त हो गई।
जब वह छत पर पहुंची तो ठंडी हवा ने पसीजे हुए बदन पर फुरफुरी सी ला दी।
” नैना ! तुम ठीक तो हो ?”
नैना के होश पलक झपकने भर को गुम रहे
वह अपनी उस बरसाती के एकांत में जिंदगी में घटती जा रही चमत्कार बोध से आलोड़ित होती रही।
अपना ही स्वर सुनाई दे रहा है ,
” इतने दिनों तक कहां रही नैना ?
शोभित इंतजार में होगा उसके साथ नाटक की कमिटमेंट की बरबस याद आई और सपना ने भी तो फिर दुबारा आने को कहा था “
नीचे से मिसेज अरोड़ा ने केटली में चाय बना कर भिजवा दिया है।
जिसे वह बिस्तर पर ही उलटी पड़ी हुई कप में ढ़ाल रही है।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -58)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi