डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -15)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

” मैं भारी मन और थके कदमों से वापस घर को लौट आई थी।

नैना —  पर मेरे मन में बार- बार यह सवाल कौंध रहा था आगे हिमांशु सर का सामना कैसे करूंगी ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था इस सब से बढ़ कर सर के इस व्यवहार से खुद को उपेक्षित और अपमानित सी महसूस कर रही थी

” क्या सोचा था क्या हो गया? सही और ग़लत के परिणाम से उपर अलग हट कर तमाम तरह के तर्क मन को कोंच कर रख दें रहे थे “

शोभित — सच तो यह है नैना ! शायद हिमांशु तुम्हें दिल से मानता था।

ज़िन्दगी में प्यार बहुत मुश्किल से मिलता है उसपर से भी सच्चा प्यार…  तुम खुशकिस्मत हो सर ने तुम्हें सच्चा प्यार किया था तभी उन्होंने तुम्हें डूबने से बचा लिया।

आख़िर क्यों वह तुम्हारे लिए सब कुछ खुद पर झेल गया?

तुम्हें डूबने से बचाने लिए ही तो!

तुमने अपने बर्ताव से सर के दिल में बहुत पहले ही जगह बना ली थी। लेकिन तुम्हारी इंटर क्लास  की उम्र प्यार जैसे क्लिष्ट  शब्द को समझने के आस-पास भी नहीं थी।

वे तुम्हें प्यार भले ही ना करते हों पर तुम्हारी भावनाओं की कद्र जरूर करते थे।

” हम किसी इंसान को प्यार तो कर सकते हैं पर हमें कौन प्यार करेगा , यह तय नहीं कर पाते हैं  “

नैना को समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे किस तरह अपने ध्यान को बंटाएं ?

विचित्र सी आपाधापी और मानसिक , शारीरिक तनाव के बावजूद भी सहज बनी रहने की कोशिश करती रहती है।

तब दिसंबर की छुट्टियां होने को थीं।

रात को नैना ठीक से सो नहीं पाई। थोड़ी – थोड़ी देर के बाद नींद उचट जाती थी। जिससे जया को भी दिक्कत आ रही थी।

जया उसकी बेचैनी से बेखबर थी। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था ,

” एक तो कुछ पूछने पर बताती नहीं है ? और हारी हुई खिलाड़ी की तरह रात- रात भर जगी रहती है “

वह अपनी चादर ले कर दूसरे  कमरे में सोने चली गई ‌‌‌‌‌थी।

नैना — कमरे में मैं अकेली रह गई।

” शोभित !  तुम तो जानते हो एक बार कुछ पाने की जिद अगर मैं ठान लेती हूं तो उसे पूरा करके ही छोड़ती हूं  “

खुली खिड़की से मटमैला चांद दिख रहा था।

मुझे हिमांशु सर की बेरुखी शिद्दत से याद आ रही थी।

आस- पास गहरी नीरवता छा रही थी।

फिल्म में सुने डाएलाॅग बार- बार  ख्यालों में आ रहे थे  ,

” ऐ मेरे सुहाने सपने ,

अभी मुंह बंद कलियों को खिलने के लिए भंवरे का साथ मिला ही था कि डूबती हुई किरणों ने ने कलियों को प्यासा छोड़  दिया “

नैना ने अपने इस भावोन्माद की प्रकृति थोड़ी भिन्न महसूस की।

उसके उत्साह और जोश के उन्माद  की प्रकृति में दुनिया भर के दुःख दर्द इस भाव तंत्र के तल में रह गये।

हिमांशु सर  से  मिलने और उनके द्वारा हठात अपने शरीर से अलग कर देने से  अब तक जिस  हताशा, घुटन और आक्रोश का जहर वह बूंद- बूंद पीती आ रही है।

वह उस समय न सिर्फ कपूर की तरह उड़ गया, बल्कि एक अनजाने सुख की तरंग से उसकी देह सिहर उठी थी।

संभवतः वह  अपने जीवन की पहली प्रणय- क्रीड़ा से गुजरने को थी।

वह बेचैनी से करवटें बदलती रही।

कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ। बार- बार करवटें बदलने से उसकी स्कर्ट जांघों से ऊपर  चढ़ आई।

उसकी  जांघ का सफ़ेद संगमरमर सा हिस्सा अंधेरे में भी चमक रहा है। उसका जी चाहा इन जांघों पर कोई अपने होंठ रख दें तपते गर्म होंठ।

इस ख्याल से वह सिहर उठी एक कंपनी सी हुई और देह में एक लहर सी उपर से नीचे दौड़ गई।

उसकी बेचैनी लगातार बढ़ रही थी।

कंठ सूखा कुंआ हो गया। आज उसके प्राण निकल जाएंगे  उसने झटके से अपने ब्लाउज के बटन खोल दिए।

उसका सीना धौंकनी की तरह धड़क रहा था।

उसकी  छातियां तीव्रता से उपर और नीचे उठ गिर रही थीं।

हाथ देह पर रेंगने लगी और टांगें स्वत: खुल गई।

मुंह से अस्फुट बोल निकल रहे थे…

” ये आपने मेरे साथ अच्छा नहीं किया सर !

देखना एक दिन मैं आपको पागल बना कर छोड़ूंगी  “

इसी पीड़ा के दंश के साथ आपको दहकता हुआ अंगारा बना कर रहूंगी “।

कुछ क्षणों की जद्दोजहद के बाद वह निढ़ाल सी पड़ी थी।

आगे …

अगला भाग

डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -16)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!