डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -14)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

नैना —

मैं सांस रोके हुए खड़ी थी।

हिमांशु ने पीछे से मेरे हाथों को अपने हाथों में भरते हुए पूरे जोर से पकड़ लिया। और जोर से जकड़ते हुए कहा ,

” अभी  अपने हाथ मत खोलना

” हम्म “

फिर अगले ही पल मैं सर की मजबूत बाहों में थी ।मेरा शरीर और जेहन  मानों हवा में तैर रहे थे।

कमरे के अंदर वक्त ठहर गया था। रोशनी थोड़ी कम हो चली थी। दोनों के बांह इस तरह आपस में जुड़े हुए हैं मानों कभी खुले ही नहीं थे।

नैना का शरीर सिमटने लगा था , और जज्बात  शायद अपनी सीमा को लांघने को तैयार थे …

हिमांशु के सांसों की गरमी अपनी गर्दन पर पीछे से महसूस कर पा रही नैना हिमांशु के हाथों से सरकती हुई जमीन पर आ खड़ी हुई थी।

पर उमंगें उसकी अभी भी आसमान में थीं।

वह बिजली सी तड़प कर हिमांशु के सीने से लग गई … हिमांशु की हालत उससे भी बुरी हो रही थी।

यह सिर्फ नैना का वहम नहीं है ,  वह हिमांशु के लिए सिर्फ एक छात्रा तो नहीं थी बल्कि उससे अधिक वह प्रिय छात्रा थी।

इस वक्त वो उसके घर में उसके साथ अकेली गर्दन पर या दिल पर चोट खाई हुई उसके बांहों में खड़ी है।

उसकी मर्जी से।

साथियों!

अगर प्रेम की समस्त परिभाषाओं के मतलब निकाले जाएं तो संक्षेप में कहा जा सकता है ,

” तो यह वह तरल पदार्थ के  समान है जिसे जिस भी पात्र में रखा जाए वह उसी का आकार ले  कर खुद को परिभाषित कर लेता है  ,

इसलिए शायद  प्रेम  को कभी पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं  किया जा सका है “

आज हिमांशु खुद महसूस कर रहा है कि ,

” समझ की सीमा हो सकती है सम्बन्ध की नहीं”

यों कि उसने कितनी दफा कोशिश की है।

नैना को लेकर उसकी समझ  क्या है इस पर बार- बार विचार करे ।

पर यह बार- बार उसे प्याज छीलने जैसा लगा है।

आज नैना पूर्ण रूप से पिघल कर उसके रोम- – रोम से प्रवेश कर चुकी है।

प्रेम के उत्साह ने उसके अपने अंदर की मिठास को बढ़ा दिया है।

लेकिन अगले ही क्षण  दिमाग सजग हो उठा।

नैना जैसे ही कसमसाई और उसके और नज़दीक आने को जैसे ही उसने अपना  चेहरा उपर किया, हिमांशु ने जज्बात की लगाम अपने हाथ में ले ली …

नैना को एकदम से अपने से अलग कर दिया,

रफ़्तार इतनी तेज थी कि उसे रोक पाना  मुश्किल था ,

पर नैना के लिए यही  मुनासिब था।

उसे दूर धकेल कर हिमांशु ने पहले  खुद को काबू किया ,

” नैना  अभी घर जाओ ,  बहुत देर हो गई …

और हां सुनो …  नहीं कुछ नहीं अभी कुछ नहीं” 

” सर ! प्लीज़ मैं, नैना कुछ समझ नहीं पा रही थी।

ये बड़ा अजीब था उसके लिए।

जैसे रेगिस्तान में में प्यास से तड़पते इंसान को समंदर लिखा कर उसे मृग मरीचिका में डूबने को छोड़ दिया गया है।

नैना —

जानते हो शोभित ,

” तब मेरी उम्र इतनी कम थी कि सही और ग़लत के फैसलों से मैं कोसों दूर थी …

चीजों को  तोलने का पैमाना बस ये था कि मुझे क्या करके ख़ुशी मिल रही है  और किस बात से तकलीफ  हो रही है।

भले ही यह खुशी दो पल की हो और उससे मिलने वाली तकलीफ लंबे समय की “

अगला भाग

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