डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -108)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

ठीक दस बजे वे दोनों रिहैबिलिटेशन सेंटर के गेट से अंदर जा चुके हैं।

डौक्टरों की सलाह के मुताबिक नैना को हिमांशु से मिलने आते रहना चाहिए।

उस दिन आशा के विपरीत हिमांशु वहां पहले से ही बैठा हुआ अखबार देख रहा है। जिसकी उम्मीद उन्हें बिल्कुल नहीं थी।

यह उसकी ओर से साकारात्मक पहल थी। ‌जिसे देख कर नैना को राहत मिली है।

प्रारंभिक दिनों में हिमांशु की यातना उससे देखी नहीं जाती थी।

उधर वह ड्रग्स के सहारे के बिना घायल पशु की तरह तड़पता रहता था।

इधर नैना लहरों की तरह बेचैन रहती

हिमांशु को रात- रात भर नींद नहीं आती। नैना के मन के बंद तहखाने में जाने कितनी यादें तड़फड़ाती।

पानी का गिलास पकड़ने में भी हिमांशु के कांपते हाथ देखकर नैना की आंखें छलछला कर भर जातीं।

लेकिन हिमांशु ने अपनी ढृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय दिया।

बीच-बीच में माया से भी बात होती रहती है।

उसे वह हिमांशु के ठीक होने की बात विस्तार से बताती रहती है।

औफिस और रिहर्सल के बिजी शेड्यूल के बीच जब कभी उसे छुट्टी मिलती है हिमांशु से मिलने सेंटर पर जाती है।

सेंटर प्रकृति के हरे- भरे सुरम्य आंगन के बीचो-बीच अवस्थित है। जहां आसमान बिल्कुल नीला और नीचे जीवन के चटक रंगों से सजे हुए उपवन में फूल उसे सात्विक रंग में रंगे हुए नजर आते हैं।

उस जीवनदायिनी वातावरण में हिमांशु को ठीक होते देखकर उसका मन विभोर हो जाता है।

हिमांशु को एकाग्रचित्त हो कर काम करते हुए देख जब कभी शोभित पूछ बैठता है,

” वह देखो, कितना  फ़र्क महसूस हो रहा है ?”

नैना कुछ बोल नहीं पाती सिर्फ़ भावावेग में आंखें भर आती हैं।

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