डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -107)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

अगले दिन प्रातः ही विनोद भाई के साथ पिता आए थे।

आते ही वे गौर से नैना  को देखकर ,

” सुना है हिमांशु को डाक्टर के यहां ऐडमिट  करवाई हो। आखिर उसे हुआ क्या है ?”

वे अब तक अंधेरे में हैं।

पिता के सामने झूठ नहीं बोल पाई।

बचपन से ही  ,

” ‘सत्य’  की गिनती ‘मानसतीर्थ’ ‌में करती आई है ।

गहरी सांस ली और ,

” वह ड्रग्स लेने लगा है “

पिता के क्रोध का पारा धीरे-धीरे चढ़ने लगा है।

” नैना, क्या तुम्भी ? तुमने भी तो कहीं उसके संसर्ग में ?

” मैं ने आपको बहुत मानसिक कष्ट दिए हैं।

मैं भ्रष्ट और लक्ष्य विमूढ़ हो सकती हूं पर कुलटा और दुराचारिणी नहीं  “

अंतिम वाक्य कहती  हुई उसकी जुबान लड़खड़ा  गई थी। पिता  को जबाव देते वक्त इस बार पहली दफा अपराधिनी सी महसूस कर रही हूं “

पिता बहुत विक्षुब्ध दिखे थे। माथे पर अनमिट बल खिंचे हैं।

मन मसोस कर कह उठे ,

” अगर आज तुमने सबकी बात मान कर समय पर विवाह कर लिया होता तो तुम्हारा भी भरा-पुरा घर होता “

नैना कट कर रह गई थी,

मन ही मन …” सबके सुख की परिभाषा अलग-अलग होती है ” 

लेकिन यह कर अपने ही घर में खड़े पिता का अपमान करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी।

नैना पिता की प्रतिक्रिया पर  खिन्न है।

इस समय वह खिन्नता वश ही सोच रही है ,

“दुखद है, यह वाकई बहुत दुखद।

मनुष्य की जिंदगी बेशकीमती है और इस तरह एक ठीक होने को आतुर इंसान के लिए इतने नाकारात्मक भाव  कहां  तक सही है ?

नैना  पिता की प्रतिक्रिया पर  खिन्न है।

इस समय वह खिन्नता वश ही सोच रही है ,

” यह वाकई बहुत दुखद है।

मनुष्य की जिंदगी बेशकीमती है और इस तरह एक ठीक होने को आतुर इंसान के लिए इतने नाकारात्मक भाव  कहां  तक सही है ?

सुनकर  अधीर हुआ शोभित ने बेचैनी में उंगलियां चटकाई।

और  खुद को संभाल कर ,

” पिता का ये रवैया ?

वाकई दुःख की बात है … पर वे पिता हैं उनका चिंतित होना स्वाभाविक है।    परवाह करना उनका पितृधर्म है “

“शायद तुम ठीक कह रहे हो?” नैना ने नम आंखों से कहा।

“अब चलो, आज सेंटर पर हमें समय पर पहुंच जाना चाहिए “

आगे …

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