डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -103)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

अच्छा है कि उसने अपना सिर नीचे झुका रखा है।

वरना मेरे चेहरे पर फैले वितृष्णा के भाव  जो उस वक्त साफ- साफ मेरे चेहरे पर फ़ैली हुई थी उसे पढ़ लेता।

माया के फोन आने के बाद से ही  मन तरह-तरह की आशंकाओं से घिरा हुआ था।

पर सच से सामना इस तरह और इन परिस्थितियों में करना पड़ेगा।

नैना की धड़कनें रुकने को हो आईं , कनपटी तड़कने लगीं।

एक मन हुआ कि पलट कर वापिस चली जाए।

हेरोइन के बारे में  मैंने सुना अवश्य है।

पर मेरी कल्पना ने आजतक इसे दवा की गोलियों जैसे गटक लेने जैसी किसी चीज के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश की  है।

ये कागज में ,  पन्नी ,  स्ट्रा यह सब अचंभित कर देने  वाला था।

लेकिन अभी इस तरह घुटनों पर सिर रखकर आंखें मूंदे बेसुध से पड़े हुए ,

” अरे  … ये … क्या  है ?  हिमांशु! ” मैं हताश हो कर चीख पड़ी।

” कौन ? ” भारी नशे से बोझिल आवाज।

अधमुंदी आंखों से मुझे देख ,

” तो तुमने  भी आज मुझे देख ही लिया,

” तुम्हें खबर किसने दी ? “

आवाज में सकपकाहट और आत्मग्लानि दोनों के मिले- जुले भाव …

” और क्या  करता ?  “

उसने अपनी सफाई  देते हुए में बिजनेस पार्टनर को गाली देनी शुरु कर दी,

” उस साले ने मेरे साथ बिजनेस करने से इन्कार कर दिया कहता था,

तुम्हारे साथ कुछ भी करने से बेहतर पैसे को गंगा में बहा देना है,

” तुम ही बताओ मैं इतना गया- गुजरा हूं?”

फिर एक से बढ़कर एक चुनिंदा गालियां, वह धाराप्रवाह बकता  रहा।

मै ने  कानों  पर हाथ रख लिए। हिमांशु सर के सहज ,  सुसंस्कृत, सुसंस्कारों की बलि  एक -एक कर चढ़ती रही।

” अच्छा  किया तुमने यहां आ कर, वरना  मैं  ग्लानि वश आ नहीं पाता तुमसे मिलने  “

” उफ़ ! मुझे आज यहां नहीं आना चाहिए था। मैंने अच्छा नहीं किया यहां आ कर ,

कितना यातनापूर्ण है इस सत्य से परिचित होना”

नैना ने कहना चाहा पर कह नहीं सकी।

हिमांशु की  प्रेमिल  आंखों में  जहां प्रेम की गंगा बहती थी आज धुंआ ही धुंआ फैला था। उसने घुटनों में मुंह छिपा लिया था और धीरे-धीरे सुबकने लगा।

उसकी सारी देह पत्ते की तरह कांप रही है। जिस बलशाली देह के नीचे मैंने सुरक्षा महसूस की है। वह देह पत्ते की तरह कांप रही थी।

ओह वह  वातावरण, वो महान्  समय और पवित्र क्षण  सब शेष हो गया … कुछ भी नहीं बचा … ।

बिलख पड़ी नैना…

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