डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -102)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

ये तुम्हें क्या हो गया हिमांशु ?

ज्ञणांश के लिए मन मीलों पीछे भाग  गया।

तब किसी उत्सव की तरह झूम कर आगे- चलते हुए हिमांशु सर और उनके पीछे मोहसिक्त सी स्कूल के प्रार्थना सभा में हाथ जोड़कर खड़ी आंखें मूंदी हुई किशोरी नैना,

जब कभी कनखियों से आंख खोल कर हिमांशु सर को  देखती  तो उनकी भी प्रेम-पिपासा से भरी आंखें खुद के चेहरे पर टिकी मिलती।

तब सर की निगाहें सुबह की चमकती  धूप सी उसके पूरे शरीर  मे उजास भर जाती।

” उफ़! कितना मुश्किल होता है‌। रात  की घनी अंधेरी में वह  सब देखना जो सुबह की चमकती धूप में देखा है “

उसे घुटन सी महसूस हुई, मुन्नी से दरवाजा बंद करने को कह कर बाहर निकल आई।

सीधी हिमांशु के घर पहुंच गई थी।

कौलवेल बजा दी, रघु बाहर निकला था।

उसे देख और भी हैरान हुई नैना ,

” ये आपकी क्या हालत हो गई रघु ?”

गठरी सी देह, झुकी कमर, चेहरा जैसे झुर्रियों का जंजाल ,  उदास और थकान भरी आंखें ?

नैना को देखते ही आंखें सिकुड़ गई। नैना ने इधर- उधर आंखें घुमाई …  वहां पसरे हुए खालीपन में मनहूसियत तैर रही है।

” काका, हिमांशु ?”

रघु ने उंगलियों से कमरे के बंद दरवाजे की ओर इशारा कर दिया। 

धीमी कदमों से चलती हुई नैना कमरे के सामने जा कर दरवाजा खोल कर अंदर प्रवेश कर गई जहां घुप्प अंधेरा था,

घुसते ही लाइट का बटन ढूंढ़ने की कोशिश में दीवारों पर हाथ फेरते हुए लाइट जला दी …

कमरे की हालत देख नैना … एकबारगी गिरने -गिरने को हो आई।

बिस्तर पर अजीब सी गंध थी।

पलंग के दोनों तरफ दो छोटी -छोटी  टेबल बेतरतीब  सी पड़ी है।

जिसपर दुनिया भर की दवाई देखती हुई वह वापस जाने को मुड़ी ,

” यहां तो कोई नहीं है।

 ना कोई इंसान ना कोई इंसानी आवाज “

तभी एक कोने पर उसकी नजर गई।  इतने देर उस कमरे में रुका हुआ समय उस कोने में आ कर टिक गया।  नैना की सांस उपर की उपर और नीचे की नीचे ही थम गई।

एक जबरदस्त आघात सा लगा। बिस्तर  के एक कोने में  हिमांशु अबोल , अव्यक्त सिर झुकाए बैठा है ।

मुड़ी -तुड़ी कमीज और नीली जींस पहने जैसे हफ्तों  से वही पहने हुए है।

एक हाथ में पन्नी पर कुछ द्रव्य  और दूसरे हाथ में स्ट्रा पकड़े हुए। 

अपने आप में समाधिस्थ दीन- दुनिया से अलग खुद की  दुनिया में विचर रहा हो।

भय, उत्तेजना, रोमांच और विस्मय से नैना को जैसे काठ मार गया । वो जिस अवस्था में खड़ी थी खड़ी रह गई।

उफ़ कहां प्रेम के उन्मुक्त आकाश में उड़ते  वे दो वनपाखी से ,

और कहां यह प्रेम के उच्चतम शिखर पर पहुंच कर बीच में यह  घुटती, चरमराती अनमिट सी रेखा ?

नैना का नन्हा सा दिल चीत्कार कर उठा उसने दोनों हाथ से अपना कलेजा थाम लिया है

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