डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -101)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

नैना से मेरी दोस्ती ऐसे समय हुई थी।

जब मेरा  ब्रेकअप  ‘माएरा’ से हो गया था। और मैं हताश हो कर टूटने के कगार पर पहुंच कर मिस रोहतगी की शरण में था।

तब नैना की चंचल चितवन एवं मीठी बातों ने ही मुझमें जीवन के साथ जीवन चेतना भी भरी  है। 

तो ऐसे दोस्त की खातिर क्या मुझे सब कुछ बर्दाश्त नहीं कर लेना चाहिए ?

नैना सोच रही …

” तो मुझे क्या ऐसे दोस्त से जिसने गाढ़े समय से उबरने में मेरा साथ दिया है उससे झूठ बोलना चाहिए ?

बिल्कुल नहीं !

मैंने सोचा — धीरे-धीरे सब व्यतीत हो जाएगा बस जैसे चल रहा है चलने देती हूं “

न जाने क्यों मेरी आंखें डबडबा गईं। जिन्हें शोभित से नजरें चुरा कर मैंने छिपा लिया और  उसके साथ घर से रिहर्सल के लिए निकल पड़ी।

लगातार – लगातार रिहर्सल में डूब गए थे हम।

हमें राॅय बाबू और कुसुम से किए गए वाएदों की फिक्र सता रही थी।

हमें चिंता थी।

उनकी बहुप्रतिष्ठित कंपनी की खोई हुई  प्रतिष्ठा और उनसे किए गए करार के मुताबिक उन्हें पैसे वापस करने की।

करीब दस-पंद्रह दिनों बाद,

एक दिन रात में अचानक माया का फोन आया उनकी आवाज़ में व्यग्रता थी ,

” तुमने हिमांशु को पैसे क्यों दिए ? “

हठात इस तरह से प्रश्न पूछे जाने से मैं बौखला गई,

” नहीं देती तो क्या करती ?

आप ही बताइए उसने आपके पैसे छूने तक से इंकार कर दिया है ? “

” और फिर मैंने क्या दिया और क्या नहीं दिया इससे आपको मतलब  ? “

इतना सब एक ही सांस में कहती  हुई मैं थक कर हांफने लगी।

इधर वर्क लोड कुछ ज्यादा ही हो गया है।

” सौरी नैना , मैं यहां बहुत परेशान हूं इसलिए शायद ठीक से कह नहीं पाई।

अभी रघु ने फोन किया है हिमांशु तकरीबन चार – पांच दिनों के बाद आज बेसुध सा घर लौटा है “

” क्या ?”

” मैं बहुत परेशान हूं ,  कहीं ड्रग एडिक्टों के अड्डे पर ना जा बैठा हो।  इकट्ठा पैसा उसके हाथ में आ जाने से यही डर बना रहता है “

मेरे हाथ से फोन छूटने को हुआ।

अभी पिछले हफ़्ते  ही तो हमने साथ मिलकर मधुर…  मधुर वक्त बिताया है।

लेकिन संकोच वश उस मधु रात्रि का उल्लेख माया के सामने नहीं कर पाई।

मैं ने उसे पैसे तो अवश्य दिए थे, पर वे उसके बिजनेस को संभालने के लिए … दूर- दूर तक नहीं सोचा था।

हिमांशु इस हद तक जा सकता है।  इसकी कल्पना तक नहीं की थी

प्रकटत: 

” आप चिंतित ना हों दीदी मैं जा कर देखती हूं”

उसके बाद तुम्हें फोन करूंगी “

” लेकिन उससे मेरा और रघु का नाम तक नहीं लेना नहीं तो तुम्हें भी अपने पास फटकने नहीं देगा “

मैं कुछ बोल नहीं पाई सिर्फ दीर्घ श्वास भर कर रह गई।

इतने वर्षो का साथ रहा है। उसने माया को हिमांशु के लिए कभी इतना  चिंता ग्रस्त  नहीं देखा है

मेरे साथ तो हिमांशु सदैव एक मोहक तरंग में रहता है। उसके इस तरह होश खोने का प्रश्न ही नहीं उठता है।

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