डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -100)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

उस दिन भी ,

” जिस दिन नैना के दिए ने उसका सब कुछ ले लिया था “

मैं नैना के घर सुबह में गया था।

आज हमारा एक साथ रिहर्सल में जाना तय हुआ था।  वहां हिमांशु को चाय पीते देख और उन दोनों के  हाव- भाव देख कर एक नजर में सारी बात समझ में आ गई थी।

ओहृ !

नैना की दोस्ती को सबसे पवित्र और निरापद  मान कर निभाता चला आया हूं।  पर आखिर उसने भी अपना रंग दिखा ही दिया।

हिमांशु को ले कर नैना से कभी कोई स्पष्ट बात नहीं कर सका, क्योंकि उन दोनों के पुराने संबंध है।

फिर यह सोच कर कि ,

” अक्सर जो चीज जैसी दिखती है। वैसी होती नहीं है,  मैं ने इस पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास नहीं किया है”

सिर्फ संदेह के आधार पर मैं नैना की नजरों में खुद को गिराने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।

जो भी हो यद्यपि कि मन जलते हुए वन की तरह सुलग रहा था।

पर उपर से मेरे ठंडे , शांत एवं संतुलित भाव ने नैना  पर कहीं से भी दोस्ती में  दरार पड़ने जैसे भाव को नहीं दर्शाया।

” हम तीनों क्या मज़े से एक दूसरे को कितना कुछ दे-ले रहे थे ।

क्या जरुरत थी उसे अच्छे – भले इस राह पर बुलडोजर चलाने की ? “

खैर… जो होना था हो चुका।

नैना , शायद मेरे इस कूल व्यवहार को सह नहीं पा रही थी और ना ही मेरी  तरह कूल रह पा रही है

उसके चेहरे पर एक आहत भरा मलाल पसरा हुआ है।

मैं ने धीरे से उससे पूछा ,

” तुम ठीक तो हो ना ? 

इस बार कड़ी रिहर्सल करनी पड़ेगी  बाहर – बाहर  कितने जगहों से थिएटर कंपनी आ रही है इस बार कंपीटीशन बहुत टफ होगी “

“हां ! “

समझ रही हूं, तुम चलो मैं अभी तैयार हो कर आ रही हूं “

” नहीं साथ ही निकलेंगे तुम रेडी हो मैं इंतज़ार कर लूंगा “

मुझे पता था हिमांशु 

मेरी बातें भी सुन रहा था। लेकिन मुंह खोलने से डर रहा है।

पांच मिनट बाद अंदर से आवाज आई ,

” नाटकों का संसार बेमानी है”

हिमांशु हर बार की तरह नैना को कह रहा था,

” बस इस बार मेरा बिज़नेस चल निकलने दो “

और नैना,

” तुम्हें तो ‘बेमानी आदतों’ को खूब समझना चाहिए “

नैना काॅफी बना कर ले आई थी। मैंने लगातार दिल में उठने वाले हाहाकार से बेचैन हो कर ध्यान से उसे देखा।

फिर मन ही मन,

” सच तो यह है,  कि आदतों की दुनिया तो तुम्हारी भी है नैना,

बल्कि अगर कड़वा कहूं तो,

तुम आज भी उसी आदतों की दुनिया में जी रही हो। वरना जीवन को सही ढ़र्रे  पर लाने  के लिए एक दो धक्के ही काफी होते हैं “

लेकिन  प्रकटत:  मुस्कान के साथ उसे धीरे-धीरे कप में काॅफी ढ़ालते हुए देखता और सोचता रहा ,

”  महज राॅय बाबू के साथ हुए अनुबंध के अलावे हम दोनों के बीच में वैसा काॅमन और कुछ है भी तो नहीं ,

” जो मेरा नहीं है उसकी फिक्र ही क्या ? 

कितना कुछ है , उसका जिक्र ही क्या ? “

काॅफी कप में डाल कर नैना ने सोफे से सिर टिका दिया।  चेहरे पर हल्के  से असमंजस के भाव  उभरे ,

वह मेरे लिए शायद एक अपराध बोध सा महसूस कर रही है।

जिसे महसूस कर मैंने,

” मेरी ओर से  बेफिक्र रहो मेरे मन में तुम्हारे लिए किसी प्रकार की दुर्भावना नहीं है।

बस अचानक से मिले आघात से थोड़ा लड़खड़ा गया हूं “

मेरी इस स्वीकारोक्ति से यद्पि दूरी थोड़ी कम हुई थी पर हम दोनों के बीच संकोच भरा तनाव बना रहा।

धीरे-धीरे हम एक दूसरे में कम दखल देने लगे थे।

नैना कभी मुझसे कुछ व्यक्तिगत सवाल पूछ भी लेती थी। पर मैं उसे कभी नहीं कुछ कह पाता हूं।

अगला भाग

डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -101)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!