चित्कार – रीता मिश्रा तिवारी

आज श्यामा की शादी बड़े धुमधाम से जमींदार सूरज सिंह के बेटे बैंक अधिकारी कृष्णा सिंह से संपन्न हो गया। 

दूध सी रंगत की चांद सी सुंदर श्यामा कृष्णा के नजरों से एक पल के लिए भी ओझल होती तो परेशान हो जाता पागलों की तरह प्यार जो करता था।

पत्नि के जाने के बाद उदास बुझे बुझे रहने वाले जमींदार साहब भी बेटे के सुखद वैवाहिक संबंध से बहुत खुश रहने लगे थे। 

श्यामा ससुर को पिता के समान ही आदर,सम्मान करती । हाथों हाथ उनके सारे काम खुशी खुशी करती थी। जमींदार साहब भी बहु की तारीफ करते थकते नहीं थे।

कृष्णा प्रतिदिन गांव नौगछिया से भागलपुर बैंक आना जाना करता था। 

वक्त ,मौसम,दिन साल के बदलते ही जमींदार साहब के आंगन में एक फूल सी खुबसुरत बेटी की किलकारी गूंजने लगी। जमींदार साहब का वक्त पोती के साथ खेलने में बीतता।

एक दिन सुबह जमींदार साहब पोती को लेकर बैठक में खिला रहे थे कि तभी “राम राम चाचा कैसन हो? बड़ी सुंदर बच्चा है..ई केकरा बच्चा है?”

“अरे अरुण बिटवा आओ बैठो कब आए ? कतना दिन का छुट्टी पर आए हो ? हां ई..हमरी पोती है परी..कृष्णा की बेटी। “

“हमरा हियां बदली हो गया है..कल राते को आए हैं। चाचा! ओकरा (उसका) व्याह कर दियो और हमरा कोनो खबर नहीं। “


“ओ कृष्णा के बच्चे बाहर निकल बे,कहां बीबी के पल्लू में छुपा है। साले शादी कर लिया और हमें बुलाया तक नहीं।”

कहता हुआ वो आंगन में आ गया। सामने श्यामा को देख ठिठक गया। मुंह खुले के खुले तालू से चिपक कर रह गए। पलकें झपकना भूल गई,मानो सांप सूंघ गया हो।

“वो तो बैंक चले गए। आप कौन ?”

” बहू ई कृष्णा का लंगोटिया यार अरुण..दरोगा है। बदली होकर यहीं आ गया है । ” 

“ओ.. अच्छा! बैठिए हम अभी चाय नाश्ता लाते हैं।”

कहकर श्यामा रसोई में चली गई..पर अरुण की आंखे उसकी बलखाती बेलें जैसी लंबी चोटी को अपलक देखता रहा और मन ने कहानियां बुनना शुरू किया।

अब उसका आना जाना लगा रहता था । आने का कोई समय नहीं कभी भी आ जाता था।

कहते हैं न वक्त बीतने में देर नहीं लगती तो  बढ़ते समय के साथ साथ बिटिया परी भी चार साल की हो गई और स्कूल जाने लगी।

एक दिन दोपहर को श्यामा घर पर अकेली थी। तभी अरुण आ गया और सीधा ऊपर जा कृष्णा के कमरे में घुस गया जहां श्यामा बेघोर सोई थी।

वो एक टक उसे निहार तो महीनों से रहा था। उसकी सुंदरता बैचैन कर रातों की नींद हराम कर चुका था।

कहते हैं भगवान औरतों को विशेष सेंस दिया है जिससे वो चाहे किसी भी अवस्था में रहे , ये अहसास हो जाता है की कोई उसे घूर रहा है। ये एहसास होते ही श्यामा उठ बैठी।


वो उसके पास ही बिस्तर पर बैठा था।

“आप इस वक्त यहां मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं ? आपको कुछ चाहिए था ?”

“उसने मुस्कुराते हुए कहा…हां चाहिए न तुम….।”

अगर किसी से कुछ कहा तो..हर खुबसुरत चीज़ मेरी कमज़ोरी है…परी भी बहुत सुंदर है…”कहता हुआ कमरे से निकल गया।

श्यामा की आत्मा चीत्कार करती रही , उसके करतूत सबको बताना चाहती थी,आँखें सबकुछ जला कर भस्म कर देना चाहती थी।गांव के परिवेश में पली..पढ़ी लिखी तो थी, मगर परिवार की मान सम्मान, प्रतिष्ठा उसे आवाज़ उठाने से रोक रही थी । उससे बड़ी बात अब उसे बेजुबान बेटी परी की चिंता थी, जिसने उसके होठों पर ताला लगा दिया।

परी अब बारह साल की हो गई थी। केशरी दूधिया रंग,तीखे कजरारे बोलते नैन नक्श, लंबी सुराहीदार गर्दन काले घुंघराले बाल जिसे एक पोनी बना कर रखती।

अरुण वैसे आता जैसे कुछ हुआ ही नहीं । अब वो आता तो परी के लिए कुछ लेकर आता। इसी बीच कृष्णा का तबादला पटना हो गया। बैंक की नौकरी छुट्टी कम मिलती थी।

परी की दुहाई देकर एक दिन फिर उसने श्यामा को तार तार कर दिया….! 

श्यामा अंदर ही अंदर घुलती जाती कमज़ोर हो शरीर पीला पर गया। चेहरा मलिन हो गया।

जमींदार साहब को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बहू को क्या हुआ है । बेटे को बुलाकर बहू को डॉक्टर से दिखाने और परी आठवीं कक्षा में है गांव में बढ़िया पढाई नहीं होती है तो बहू बेटी को अपने साथ रखने का हुकुम दिया।

सबके मनुहार से जमींदार साहब भी शहर आ गए।

श्यामा भी अब खुश रहने लगी । चेहरे पर पहले की तरह निखार आ गया ।पर अपराध बोध पीछा न छोड़ रहा था । वो आए दिन पूजा हवन , व्रत त्योहार कुछ भी बहाना बना कृष्णा से दूरी बनाए रखती। खुद को उसके लायक नहीं समझती थी।

एक शांति थी जो उसके आंखों में झलकती थी । एक डर था जो निकल गया था। पर आत्मा चीत्कार करती , लाचार गूंगी बनी खुश रहने के प्रयास में सफल हो गई।


पर कहते हैं न जब बुरा वक्त आता है तो आसानी से पीछा नहीं छोड़ता। कहावत है “कहां जाय छो नेपाल साथे

जयथोन कपार (कहां जाते हो नेपाल साथ नसीब भी जायेगा)

एक दिन स्कूल से आते परी को अरूण मिल गया और घर आ गया ।

“परी तो सचमुच की परी है । वो तो तेरे से भी कई गुणा खुबसूरत है । फुरसत में भगवान ने गढ़ा है उसे “

कहते हुए कुटिल मुस्कान लिए होठों पर जीभ फेरने लगा।

“अरूण ! मेरी बेटी की तरफ देखा न तो तेरी आंखें निकाल दूंगी। अपनी गंदी जुवान से उसका नाम भी मत लेना । एक भी बेलब्ज बोला न तो जुबान काट कर हथेली पर रख दूंगी और हां एक बात कान खोल कर सुन ले अब चुप नहीं रहूंगी सबको चीख चीख कर बताऊंगी।”

“अच्छा… हा हा हा क्या बताएगी.. जा बता दें बता दें । एक बार परी को याद कर लेना। हूं…बच्ची थी..बच्ची के साथ..ना ना..।मेरे ख्याल से शायद अब चौदह पंद्रह की हो गई है”।

बेचारी श्यामा इसकी कुदृष्टि बेटी पर पड़ चुकी है । यह सोचकर एक बार फिर बेजुबान बेटी की गूंगी मां बन गई।

एक दिन स्कूल से आते समय रास्ते में एक सफ़ेद कार परी को उठा ले गया। कमरे में कोई नहीं था सिवाय शराब की बोतल और सिगरेट देख उसे माजरा समझ आ गया।

परी ने होशियारी की और मोबाइल फोन ऑन कर सामने टेबल पर फूलदान के पास रख दिया।

अरूण को देख उसकी आँखें चौड़ी हो गई.. खुद को संभालते हुए इशारों में पूछा…उसपर तो हवस का शैतान सवार था भूखे भेड़िए की तरह उसे दबोच लिया।

वो चीत्कार उठी ” बचाओ बचाओ ” वो घबरा कर उसके मुंह बंद कर दिया…।

बेटी की हालत देख कर ” परी ! ये क्या हालत बनाया है ?” वो चुप सुनी आंखों से मां को देख रही थी “क्या हुआ बेटा ? कुछ तो बोलो ? ले पानी पी अब बता हुआ क्या ? कोई एक्सिडेंट हुआ क्या ? परी बता न बेटा “

वो गला फरकार चीत्कार कर उठी “मांआआआ…वो…वो अ…रु…ण अं..कल…। चीत्कार सुन जमींदार साहब कमरे से बाहर आए।


खुश हो कर बोले””अरे परी बेटा बोलने लगी””।

बेटी को गले लगाकर “अरूउउउण ! मैं तुझे छोडूंगी नहीं अब तुझे मुझसे कोई नहीं बचा सकता।” 

जमींदार साहब पूछते रहे…

बेटी का हाथ पकड़ा और सीधा पुलिस स्टेशन पहुंच कर शिकायत दर्ज करवाई।

इसके बाबजूद अपनी बेशर्मी से बाज नहीं आया कहा सबूत क्या है की मैं ही अपराधी हूं।”

गुनाह करते उसे ये भी होश नहीं रहा की पीड़िता चिल्ला रही थी।

कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई , व्यान में श्यामा ने अपने साथ हुए शोषण को कह सुनाया कैसे वो उसे ब्लैकमेल करता था

“मैं सब कुछ सहती रही लेकिन फिर भी इस दरिंदे ने मेरी बेजुबान बेटी को…।” ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं। तभी तो इस राक्षस को सजा दिलवाने के लिए उन्होंने मेरी बेटी की आवाज दी। बहुत बहुत धन्यवाद भोले नाथ।

परी ने अपने बयान में सब बताया और वो सबूत जो मोबाइल में कैद थे जज के सुपुर्द कर दिया। 

जज ने बीस साल की सजा सुनाते हुए अरुण को कारागृह भेज दिया।

नोट: कहानी और पात्र बिल्कुल काल्पनिक है। रोचकता के लिए शहर का नाम मात्र दिया गया है । इससे शहर या पात्र का कोई लेना देना नहीं है।

पूर्णतः मौलिक स्वरचित

रीता मिश्रा तिवारी

भागलपुर बिहार

१७.६.२०२२

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