‘फैसला’ – पूनम वर्मा

विमला अपने कमरे में बिस्तर पर लेटे हुए छत को एकटक निहार रही थी । कमरे में हल्की रौशनी थी पर उसका भविष्य बिल्कुल अंधेरे में था । आज पति को गुजरे तेरह दिन बीत चुके थे । श्राद्धकर्म समाप्त हो चुका था । तीनों बेटे अपने परिवार के साथ बैठक में कुछ मशविरा कर रहे थे । शायद आज उसके भविष्य का फैसला सुनाया जाने वाला था ।

फैसला ! बचपन से तो लोगों के फैसले पर ही जीती आई है वो । बचपन में एक भी कदम अपनी मर्ज़ी से नहीं उठा सकती थी । कॉलेज में पढ़ना चाहती थी लेकिन पिता के फैसले के अनुसार सोलह वर्ष में ही उसे शादी कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना पड़ा था ।

नया घर , नया जीवन मिला और ये बदलाव उसे अच्छा भी लगने लगा था । अपने सिकुड़े-सिमटे पंख को खोल कर फड़फड़ाने की कोशिश करने लगी । पर  पंख जब टकराने और टूटने लगे तब उसे एक आभासी पिंजरे का अहसास हुआ ।  यह पिंजरा था पति की मर्ज़ी का ।

कपड़े पहनने, श्रृंगार करने, कहीं आने-जाने से लेकर बच्चे पैदा करने पर भी पति की मर्ज़ी की मोहताज थी । इन तीन बेटों के लिए उसने कई बेटियों की आहुति दी थी । परिवार में चार पुरुषों के बीच अकेली महिला थी सबका आदेशपालन के लिए । पिता के पुरुषत्व का प्रभाव बेटों पर भरपूर पड़ा ।

बच्चे बड़े हो गए और दूर होते गए ।  तीनों की शादी के बाद तो आना-जाना भी कम हो गया । जीवन के सुख-दुख चुपचाप सहती गई । धीरे-धीरे ज़िंदगी की रफ्तार धीमी होने लगी । पति बीमार रहने लगे । पिंजरा कमज़ोर हो चुका था लेकिन अब पंख भी तो टूट चुके थे ।  आज पिंजरा टूट कर बिखर चुका था और विमला अपने जीर्ण-शीर्ण पंख लिए बिस्तर पर निढाल पड़ी थी ।



तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी । विमला बिस्तर से अपने-आप को समेटते हुए खड़ी होने की कोशिश करने लगी । तीनों बेटे और बहू कमरे में आ गए । बड़े बेटे ने कहा,

“माँ ! अब हमलोग ज़्यादा दिन तक तो यहाँ नहीं रह सकते इसलिए हमने फैसला किया है कि…”

“फैसला ! कैसा फैसला ?”

“यही कि अब आपका यहाँ अकेले रहना ठीक नहीं है । हम इस मकान को बेचकर तीनों बराबर बाँट लेंगे और आपको हर एक के पास चार-चार महीने रहना होगा । आपका पेंशन उसी को मिलेगा जिसके पास आप रहोगी ।” बड़े बेटे ने अपना फैसला सुना दिया ।

इस फैसले ने मानो विमला को झकझोर दिया । वह कटे पेड़ की भांति धम्म से बिस्तर पर गिर पड़ी । थोड़ी देर शांत बैठी रही ।

तभी बड़े बेटे ने कहा, ” माँ ! अपना सामान पैक कर लो । फैसले के मुताबिक पहले आपको मेरे पास रहना है ।”

अब विमला को न रहा गया । वह चीख पड़ी । अब नहीं मानूँगी मैं किसी का फैसला !  चले जाओ सब यहाँ से ! कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगी ।

पूनम वर्मा,

राँची, झारखण्ड ।

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