माता वैष्णो के दर्शन -नेकराम Moral Stories in Hindi

दर्शक अपनी-अपनी कुर्सियों पर चिपके बैठे हैं और पर्दा खुलता है,,
साड़ी पहने हुए एक स्त्री जिसका नाम माधुरी है रोटी पकाते हुए अपने पति महेश से कहती है,, सुनो जी,, क्यों ना हम माता वैष्णो के दर्शन करने चले अप्रैल का महीना है बच्चों के स्कूल की छुट्टियां भी पड़ चुकी है तब महेश
टीवी में समाचार देखते हुए अपनी पत्नी माधुरी से कहता है ऑफिस में बहुत काम है मैं ऑफिस से छुट्टी नहीं ले सकता तुम बच्चों को लेकर माता वैष्णो के दरबार चली जाओ मेरा एटीएम साथ लेती जाना ,, सफर में जितने
रूपयों की जरूरत हो एटीएम से निकाल लेना माधुरी अपने 6 साल के बेटे विपुल और 8 साल की बेटी वर्षा को लेकर थैले में कुछ कपड़े और जरूरी सामान रखकर चली जाती है ,,।
महेश ने माधुरी के जाने के बाद तुरंत मोबाइल से अपने बॉस को सूचना दी कि मैं माता वैष्णो के दर्शन करने जा रहा हूं एक सप्ताह की छुट्टी चाहिए महेश को छुट्टी मिल जाती है ,,।
माधुरी,,, कश्मीरी गेट से एक बस पकड़ती है और गाजियाबाद पहुंचती है गाजियाबाद में माधुरी के सास ससुर रहते हैं माधुरी को अचानक रात को 10:00 बजे देख कर उसके सास – ससुर पूछने लगते हैं कैसे आना हुआ,,
सब ठीक तो है ,, तब माधुरी कहती है बहुत दिनों से माता वैष्णो के दर्शन करना चाहती थी वर्षा के पापा ने जाने से इंकार कर दिया कहने लगे ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलेगी ऑफिस में बहुत काम है,,
मैं उन्हें बताने वाली थी कि वर्षा के दादा – दादी को भी माता वैष्णो के दर्शन के लिए साथ ले चलेंगे लेकिन वर्षा के पापा ने मेरी बातों पर बिल्कुल भी ध्यान ही नहीं दिया,,
वर्षा की दादी रामादेवी गुस्से से बोली महेश को ऑफिस से छुट्टी नहीं मिली बीवी बच्चों को अकेले माता वैष्णो के दर्शन के लिए भेज दिया खैर उससे तो मैं बाद में निपटूगी ,,चलो हम सब पहले माता वैष्णो के दर्शन करने चलते हैं
रात की ट्रेन पकड़कर माधुरी अपने सास ससुर और अपने दोनों बच्चों के साथ सुबह माता वैष्णो के दरबार में पहुंच जाती है चढ़ाई शुरू हो चुकी है तभी वर्षा बोली मम्मी उधर देखो मैंने अभी-अभी पापा को वहां देखा था माधुरी ने चलते हुए कहा अगर तेरे पापा को आना होता तो हमारे साथ आते अलग से आने की क्या जरूरत थी तेरा वहम होगा कुछ देर बाद पिपुल बोला मम्मी उधर देखो वहां भीड़ में मैंने पापा को देखा तब माधुरी बोली
तुम्हारा वहम होगा ,,चुपचाप चलो,,
छः दिन बीतने के बाद माधुरी अपने सास ससुर को गाजियाबाद छोड़कर अपने घर आ पहुंची थकान से शरीर थक चुका था सफर में कपड़े मैले हो चुके थे माधुरी ने घर की साफ सफाई की और मैले कपड़ों के ढेर लेकर वाशिंग मशीन में डालते हुए अपनी बेटी वर्षा से बोली जरा पापा के कपड़े भी ले ,,आ ,, हमें घर आए हुए 2 घंटे हो चुके हैं और तेरे पापा अभी तक बिस्तर पर सो रहे हैं
वर्षा ने पापा की पेंट कमीज मम्मी के हाथ में थमा दी फिर वर्षा बोली मम्मी पिछली बार तुमने पापा का 100 का नोट भी पानी में धो दिया था मैं पहले पापा की जेब चेक करती हूं शायद फिर सो का नोट निकल जाए जब जेब टटोली तो उसमें तीन टिकट निकली बर्षा ने मम्मी को टिकट दिखाते हुए कहा मम्मी यह टिकट तो माता वैष्णो की टिकट है इसका मतलब पापा माता वैष्णो के दर्शन करने गए थे मैंने और विपुल ने भी पापा को देखा था तब तुमने हमारी बातों का यकीन नहीं किया था माधुरी ने टिकट को गौर से देखा तो टिकट माता वैष्णो के मंदिर की ही थी,,
माधुरी ने जल्दी से छत पर जाकर मोबाइल से कॉल करके अपनी सास रामादेवी को रोते हुए बताया मम्मी जी तुम फौरन यहा चली आओ आज वर्षा के पापा के साथ मेरा बहुत बड़ा झगड़ा होने वाला है..
रामादेवी वर्षा के दादा के साथ बस पकड़कर गाजियाबाद से तुरंत दिल्ली आ गई,,
माधुरी ने तीन टिकट अपनी सास रामादेवी को दिखाते हुए कहा मम्मी जी वर्षा के पापा के पास यह तीन टिकट कहां से आई ,, यह तीन टिकट देखकर मेरा दिमाग खराब हो गया है वर्षा की दादी आग बबूला होते हुए बोली,, महेश अभी कहां पर है ,, तब माधुरी ने सिसकते हुए कहा ,,उन्हें मैंने कमरे में बंद कर दिया है ,, और दरवाजे का बाहर से ताला लगा दिया है ताकि वह कहीं भाग ना सके मैंने आप लोगों को इसलिए बुलवाया है कि दूध का
दूध पानी का पानी होना चाहिए,,
रामादेवी ने अपनी बहू माधुरी से चाबी लेकर ताला खोला तो महेश कमरे के भीतर सर पर हाथ रखकर बैठा हुआ था,,
रामादेवी महेश के पास बैठते हुए बोली तू माता वैष्णो के मंदिर गया था ,,, सच बता,,,
,, हां गया था मां,,,महेश ने धीरे से कहा ,,
रामादेवी ने फिर पूछा तो तू हमारे साथ क्यों नहीं गया ,,
महेश ने फिर धीरे से कहा ,,मां मेरी मजबूरी थी,,
रामादेवी ने फिर पूछा ,, तेरे साथ दो लोग और कौन थे तेरी जेब से तीन टिकट मिली है,, घर में तुझें इतनी सुंदर माधुरी जैसी बीवी मिली है कहीं तू किसी और स्त्री के चक्कर में तो नहीं पड़ गया,,
मां तुम मुझपर शक कर रही हो ,, मैं ऐसे घिनौने काम क्यों करूंगा,,
तभी महेश का मोबाइल बजने लगा तो रामादेवी ने कॉल उठाया तो महेश के बॉस की आवाज आई,, महेश तुमने माता वैष्णो जाने के लिए छुट्टी मांगी थी 6 दिन पूरे हो चुके हैं अब ऑफिस कब से आ रहे हो ,,, ,,जवाब दो,,
रामादेवी ने मोबाइल महेश को पकड़ा दिया तब महेश बोला कल से ऑफिस आ जाऊंगा माता वैष्णो की चढ़ाई चढ़कर थक गया हूं इसलिए घर पर आराम कर रहा हूं ,,ठीक है ,, इतना कहकर बॉस ने फोन काट दिया,,
तब माधुरी रोते हुए बोली मैंने अपने मम्मी – पापा भाई,और मामा जी को भी फोन करके बुला लिया है आते ही होंगे आज फैसला होकर रहेगा,,
2 घंटे बाद घर में रिश्तेदारों का ढेर लग गया माधुरी ने पड़ोस की महिलाओं को भी बुलवा लिया,,
सभी ने पूछा महेश तुम चुप क्यों हो माता वैष्णो के दर्शन के लिए तुम्हारे साथ दो लोग और कौन थे ,,
तभी महेश के घर के बाहर एक कार रुकी उसमें से दो बुजुर्ग एक बूढ़ा और एक बुढ़िया पड़ोसी से पूछने लगे महेश का घर कौन सा है एक बच्चे ने बता दिया माताजी सामने वाला फ्लैट महेश अंकल का ही है,,
वह बूढ़ा और बुढ़िया कमरे के भीतर आए तो वहां महेश को सब रिश्तेदारों ने घेर रखा था बुढ़िया महेश के पास आकर बैठते हुए बोली
आज से 25 साल पहले मैंने एक पुत्र को जन्म दिया था उसका नाम अभिषेक रखा उसके बाद हमारी कोई संतान न हुई हमने अपने बेटे अभिषेक को खूब पढ़ाया लिखाया उसे डॉक्टर बना दिया डॉक्टर बनने के बाद वह
विदेश चला गया वहीं उसने एक विदेशी लड़की से शादी कर ली हम घर में अकेले रह गए बेटा विदेश से पैसे भेजता रहा मगर मन दुखी था बुढ़ापे में औलाद करीब ना हो तो कलेजा फटता है रातों को नींद नहीं आती,, उसे हमने कई बार इंडिया आने को कहा मगर वह ना आया,,
हम बूढ़े खिड़की से सड़क पर आते जाते लोगों को देखा करते थे उसी में हमारा समय कट जाता था सामने एक ऑफिस था उस ऑफिस की खिड़की से एक नौजवान हमें रोज देखा करता था एक दिन वह हमारे घर आया और उसने बताया मेरा नाम महेश है मैं सामने वाले ऑफिस में काम करता हूं आप दोनों को रोज खिड़की से देखता हूं आप लोगों का उदास चेहरा रहता है ,, आखिर बात क्या है,,
आपका करोड़ों का मकान है घर में नौकर चाकर भी है तब हमने महेश को सारी बात बताई तो महेश बोला आप लोग मुझे अपना बेटा ही मानिए कभी किसी चीज की जरूरत हो तो ,,निसंकोच कह देना महेश ऑफिस के लंच समय में हमारे साथ ही खाना खा लेता था रोज बातें होती थी और हमारी उदासी धीरे-धीरे छू मंतर हो गई महेश में हमें अपना बेटा अभिषेक दिखाई देने लगा एक दिन हमने महेश से कहा हमें माता वैष्णो के दर्शन करने
हैं क्या तुम हमें माता वैष्णो के दर्शन के लिए समय निकाल सकोगे तब महेश कहने लगा माता का बुलावा आएगा तो रास्ते अपने आप ही खुल जाएंगे अगले दिन ही महेश खुशी-खुशी दौड़ा आया और बोला मैंने माता वैष्णो की तीन टिकट खरीद ली है आज ही आप लोगों को चलना होगा मैंने अपने बॉस से 6 दिन की छुट्टी भी मांग ली है,,
मैं अपनी पत्नी माधुरी और बच्चों को इस बात का जिक्र नहीं करूंगा ताकि आप लोगों का समाज में सम्मान बना रहे वरना यह समाज वाले आपको ताने देते रहेंगे कहेंगे कैसी औलाद पैदा की है अपने बूढ़े मां-बाप के लिए विदेश से भी नहीं आ सकता ऐसी औलाद का क्या फायदा जो बुढ़ापे में माता-पिता की सेवा न कर सके,,
डॉक्टर का फर्ज है मरीजों को जीवन देना उन्हें स्वस्थ रखना लेकिन साल दो साल में अपने बूढ़े मां-बाप से मिलने तो आ ही सकता है,,
हमने कई बार अभिषेक से कॉल के दौरान कहा कि हमें माता वैष्णो के दर्शन करवा लाओ लेकिन वह हर बार टाल देता था ऐसी स्थिति में हमें महेश से अपने दिल की बात कहनी पड़ी इतना कहकर वह बूढ़ी माता की
आंखों से आंसुओं की मोटी मोटी बूंदें टपक पड़ी,,
तब रामादेवी ने उस माता के आंसू पोंछते हुए कहा बेटे की जुदाई एक मां ही समझ सकती है आजकल के पढ़े लिखे डॉक्टर विदेश में नौकरी करने में खुद पर गर्व महसूस करते हैं हिंदुस्तान में हजारों अस्पताल हैं इस देश
को भी तो काबिल डॉक्टरों की जरूरत है फिर लोग ना जाने क्यों विदेश में जाकर अपनी शान समझते हैं,,
तभी एक डॉक्टर के कपड़े पहने नौजवान एक विदेशी महिला के साथ महेश के कमरे में आता है और अपने बूढ़ी मां और बूढ़े पिता के पैर छूकर कहता है ,, मां,, घर की नौकरानी से पता चला कि आप लोग महेश के घर
आए हो तो पूछते पूछते यहां तक पहुंचे हैं आपका सपना था कि आप लोग माता वैष्णो के दर्शन करना चाहते हैं इसलिए मैं चार टिकट खरीद कर लाया हूं ,, उसने टिकट दिखाते हुए कहा ,,
एक पल के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया,,
जब अभिषेक को पता चला कि उसके माता-पिता ,, माता वैष्णो के दर्शन करके आ चुके हैं तब अभिषेक ने महेश को गले लगाते हुए कहा समाज की सेवा करते-करते कभी-कभी हम अपनों को भी भूल जाते हैं
परिवार भी तो समाज का एक हिस्सा है विदेश में नौकरी की लालच ने मुझे अपनों से दूर कर दिया ,, इस देश की मिट्टी से दूर कर दिया,,
उस देश से दूर हो गया जो मेरी जन्म भूमि थी जहां मैंने डॉक्टरी की शिक्षा प्राप्त की पढ़ाई लिखाई कि मुझसे भूल हुई है मैं कसम खाता हूं आज के बाद में विदेश नहीं जाऊंगा क्योंकि
इस देश को भी काबिल डॉक्टरों की और मां-बाप को बुढ़ापे में बेटों की जरूरत है,,।
,,, इसी के साथ ही पर्दा गिरता है ….✍️✍️
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना

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