बाबुल बादल प्रेम का हम पर बरसा आई – लतिका श्रीवास्तव

#पितृ दिवस पर मन के भाव

इस बार कोई कहानी नहीं सीधे सीधे शब्दों में अपने श्रद्धेय पिता के बारे में अपने मन के ही भाव व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूं

 

मेरे पापा मम्मी उस विशाल वट वृक्ष की भांति हैं जिनकी अविरल अगाध स्नेहिल शीतल छाया और सुदृढ़ आधार ने हम सबको भी सुदृढ़ शीतल छांव वाले बरगदो में बदल दिया है

  “जिस वक्त जो काम करो सौ फीसदी मन लगा कर करो, परंतु पढ़ाई में कभी कोई समझौता नहीं … ऐसी हर गतिविधि त्याज्य है जिससे पढ़ाई में बाधा पहुंच रही हो……एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज है,मेरे पापा के ये कुछ सेट वाक्य है,यही कह कर वो हमेशा हम सब को हिम्मत नही हारने देते हैं,खुद भी अमल करते है बहुत साल पहले उन्हें अचानक हार्ट अटैक पड़ा मैं कॉलेज में थी,पूरा परिवार स्तब्ध…. भाई छोटे थे,सबकी हालत खराब ..पापा ने हिम्मत नही हारी डॉक्टर ने इतनी कठिन दिनचर्या संयमित खान पान के साथ अंतिम चेतावनी देते हुए बताई पापा ने बहुत शांति से ये कहते हुए एक दिन मरना तो है ही अभी मेरे बच्चे अपने पैरो पर खड़े हो जाएं इसलिए ये सारे परहेज उनके लिए करने की कोशिश करने में क्या हर्ज है कहते हुए करते रहे और ईश्वर कृपा से स्वस्थ हो गए….अभी भी कोरोना पीड़ित होने पर भी या हम में किसी के किसी बड़े ऑपरेशन या बीमारी या अन्य संकट के समय समस्या या बीमारी की ही बातें कर कर के परेशान होने के बजाय जो भी सुलभ हो वो समाधान ढूंढ कर तत्काल कोशिश करने पर ही जोर देते हैं और मैने अजमाया है ये कारगर भी हुआ है

सिद्धांतवादी इतने कि एक बार गायन की खुली प्रतिस्पर्धा के लिए जज बनाए गए ….पूरा शहर भाग ले रहा था,मैने भी भाग लिया और मैं प्रथम भी आ गई सबका तो नही पर कुछ लोग होते हैं ना पक्षपात का आरोप लगाने वाले कि अरे अब पापा ही जज थे तो पांचों उंगली घी में ही रहेगी ना….खुदाई किए तो पता चला मुझको तो मेरे पापा ने एक भी नंबर ही नही दिए थे….। पापा हमेशा कहते है अपनी काबिलियत इतनी बढ़ाओ कि तुमको अपनी तारीफ अपने मुंह से नही करनी पड़े सारी दुनिया तुम्हारी तारीफ करने पर विवश हो जाए….हर विधा में भाग लो ये मुझसे नहीं बनता या नहीं कर पाऊंगी ऐसे वाक्य उनके गुस्से के लिए काफी थे…वैसे सख्त मिजाज़ तो थे बचपन में तो मैं बहुत डरती थी, शाम को जैसे ही उनके घर आने का टाइम होता था जल्दी से अपनी किताबे खोल कर बैठ जाती थी,उन्हे बच्चे पढ़ाई ही करते हुए ही दिखना चाहिए कोई और काम नहीं।


 

अद्भुत वक्तृत्व शैली के धनी पापा के विद्यार्थी उनके काल खंड में सांस लेना भूल कर केंद्रित रहते थे,विभिन्न प्रकार की सामाजिक ऐतिहासिक पौराणिक कहानियां और प्रेरक संस्मरण घटनाएं उनकी ज़ुबानी हम मंत्र मुग्ध होकर सुनते थे अभी सुनते हैं। अपने बच्चों हम सब के लिए कुछ करने से पहले उनके लिए उनके विद्यालय या पड़ोस के बच्चे रहते थे,पता नही वो कैसे हर व्यक्ति हर बच्चे की छुपी प्रतिभा को जामवंत सरीखे पहचान जाते हैं और फिर उसे उसकी सफलतम ऊंचाइयों तक पहुंचा कर ही मानते हैं।

ईमानदार इतने कि जिस विद्यालय में प्राचार्य थे या बाद में जिला शिक्षा अधिकारी भी बने तब वहां का कोई भी सामान घर नहीं आएगा ,वहां का कोई भी नौकर घर आकर घर के काम नही करेगा कभी मुसीबत में अगर करवाना ही पड जाए तो पारिश्रमिक देकर।तबादले ,नियुक्ति,वेतन विसंगति इत्यादि मामले एक सादे आवेदन से ही हर जरूरत मंद के कर देते थे….उनका मानना है अलग से कही जाकर दान पुण्य करने या आश्रम में जाकर रहने से बेहतर है जब भी मौका मिले जरूरत मंद की मदद करो ,अपने सेवा काल में ही अपने सरकारी कार्य पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से कर लो ,जितना हो सके भला कर दो, और बदले में बिना किसी पुरस्कार की उम्मीद किए….ऊपर की कमाई के घोर विरोधी थे इसके  बारे में स्पष्ट सिद्धांत थे पापा के कि ” जितना किस्मत में है उतना धन तुम्हे मिलेगा ही कोई रोक नहीं सकता, अपना काम ईमानदारी से करते रहो और अगर किस्मत में धन मिलना नही है तो गलत तरीके से कमाया हुआ सारा धन ऐसे निकल जायेगा कि तुम रोक नहीं सकते  इसलिए अपने पुरुषार्थ और सदनीयत पर भरोसा रखो।”

धार्मिक इतने हैं कि करीब करीब पूरी रामायण कंठस्थ है,हम  घर के तीन चार लोग मिल कर ही अखंड रामायण कर लेते हैं जब भी कोई सुखद घटना घर में घटित होती है पर बिना पंडित जी आदि ताम झाम के….उनका मानना है बेटा  “भाती भगवान को है भक्तों की भावना मानिए तो शंकर हैं कंकर हैं अन्यथा….भावना शुद्ध हो तो स्नान अगरबत्ती फल फूल आदि कोई मायने नहीं रखते…. बहुत पूजा मतलब प्रार्थनाएं करते रहते हैं,नमामि शमिशान प्रार्थना और गौरी वंदना जय जय गिरुबार…. तो हमारे घर के हर संकट का रामबान इलाज है आधार  है…..बचपन में हमारे घर में एक अधेड़ महिला बर्तन झाड़ू का काम करती थी वो कुख्यात टोनही के नाम से जानी जाती थी कॉलोनी में सभी उसको हटाने की सलाह देते रहते थे पर पापा का मानना था अगर गलत प्रवृत्ति और गलत इरादों का अस्तित्व है तो सद प्रवृत्ति और नेक इरादो का भी है ईश्वर के प्रति गहरी आस्था और विश्वास हर जादू मंत्र का अचूक अस्त्र  है,उन्होंने कभी भी उस बाई को काम से नहीं हटाया और वो  पापा की पूजा पाठ से बहुत डरती थी।….इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इंग्लिश में एम ए मेरे पापा सभी विषयों में दक्षता रखते है,अक्सर हमारे घर बौद्धिक परचर्चाएं हुआ करती हैं वो कहते है God is in heaven everything is alright with the world  ईश्वर पर उनकी इतनी आस्था और उनके जीवन में निरंतर मिलने वाली सफलतम घटनाओं से मैं अभिभूत रहती हूं और उन्हें ही अपने जीवन का आदर्श मान कर अनुसरण करने की कोशिश करती हूं।

शिक्षा और ज्ञान हमेशा बढाते रहना चाहिए ,और अच्छी पुस्तकें सबसे अच्छी दोस्त हैं जो हर समय हर स्थान पर साथ देती ही है….उनका दृढ़ विश्वास है …मुझे याद है बचपन से ही वो हिंदी और अंग्रेजी दोनों की उत्कृष्ट किताबें घर लाते थे,प्रेमचंद शेक्सपियर,वृंदावन लाल वर्मा, जेन ऑस्टिन ,विवेकानंद,आदि ढेरों लेखकों की किताबो के साथ ही मैने अपनी स्कूल की पढ़ाई के समय ही हिंदी का प्रथम उपन्यास चंद्रकांता संतति देवकी नंदन खत्री द्वारा लिखित पढ़ लिया था,आज भी वो मॉडर्न टेक्नोलॉजी से घुले मिले है लैपटॉप और किंडल में किताबे पढ़ते हैं,नवीनतम ज्ञान की खोज दृढ़ता उत्साह और लगन से करना मैने उन्हीं से सीखा।


हां सबसे महत्वपूर्ण बात तो अभी शेष है कि मेरी मम्मी जिनके बिना तो पापा का व्यक्तित्व पूर्ण ही नही है, सही अर्थों में उनकी अर्धांगिनी हैं उनकी पूरी इज्जत ,परिवार में समाज में सभी के बीच करवाना पूरा ख्याल रखना मेरे पापा का अभिष्ठ कार्य है,और घर में सबका ख्याल रखना दुलार करना घर के वातावरण को सदैव प्रेमपूर्ण,खुशदिल,प्रपंच और खुराफात वाली बातो से दूर रख प्रेरक उत्साही बनाए रखना मेरी विदुषी मम्मी का प्रिय शगल है,हमेशा हर घटना और हर व्यक्ति को सकारात्मक दृष्टिकोण से देख कर वो स्वयं को भी और साथ में हम सभी को सुखी और संतुष्ट रखते हैं,सच में एक आदर्श माता पिता मुझे मिले है।

  जानते हैं,तीन साल पहले अचानक दिन दहाड़े मेरे सूने घर में भयानक चोरी हो गई और दुर्भाग्य से उसी समय लाकर रखे मेरी शादी के सारे जेवर , काफी रुपए,मेरा गोल्ड मेडल बहुत कुछ चोरी हो गया हम सब दहशत में भी थे और इतना नुकसान असहनीय लग रहा था, उस समय मोबाइल पर मैं पापा से बताते बताते रोने लगी तो पापा ने मजे से कहा “अरे बेटा जो सामान चोरी हुआ विशेष रूप से तेरे जेवर और गहने वो तो तू पहनती ही नही थी,उनके चोरी जाने से तेरा कोई काम रुका क्या??? नहीं ना फिर कैसी परेशानी! अभी तेरा गैस चूल्हा ओवन या टीवी चोरी हो जाता तो तुरंत लेना पड़ता तब बड़ी परेशानी हो जाती है ना!!”…सच में उनकी बात सुनकर उस समय हंसी भी आ गई और जी एकदम हल्का हो गया बोले जेवर और रुपए तो फिर आ जायेंगे, तेरी कोई बड़ी मुसीबत ईश्वर ने इस चोरी के रूप में टाल दी है ,धैर्य और भरोसा रख।इतने सकारात्मक हैं मेरे पापा।

अब आप ये कहेंगे कितना बखान करोगी अपने पापा का तो भई सुनहरा मौका मिला है इस बार जिंदगी में पहली बार इस विद्वत मंच के माध्यम से अपने पापा के बारे में सोच कर लिखने और आप सब स्नेही जनो के साथ साझा करने का तो हम भी क्यों चूके! बखान करने की तो मत कहिए अपने पापा के बारे में इतना कुछ है कि इतने सब के बाद भी प्रतीत हो रहा है असली बाते बची रह गई और फिर मेरे पापा जो मेरे आदर्श है मेरा गर्व है उनके बारे मैं उनकी बेटी नहीं बताएगी तो फिर कौन बताएगा!!है कि नहीं।। पापा मम्मी   का आशीर्वाद भरा हाथ यूं ही मेरे और मेरे बच्चो के सिर पर रहे   उनके सुखी स्वस्थ जीवन के लिए ईश्वर और आप सभी के आशीर्वाद और शुभकामनाओ की आकांक्षा के साथ पितृ दिवस की कोटिश: बधाई

 

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