छुटकारा (भाग 1)-  माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :सीमा की शादी हुए पांच साल बीत चुके थे..उसके पति राकेश प्रतिष्ठित संस्थान में कार्यरत थे..तीन साल की नन्ही बच्ची परी उसके ससुराल में सभी लोगों की आंख का तारा थी। उसकी सास रमादेवी,देवर विकास,ननद शीला,सभी लोग परी के साथ खेलते हुए बच्चे बन जाते थे..सभी लोगों की जान नन्ही परी में कैद रहती थी।

रमादेवी का आलीशान घर जो शहर से कुछ दूरी पर एक कस्बे में स्थित था..उस घर आंगन की सारी खुशियां नन्ही परी के ही इर्द-गिर्द घूमती रहती थी..वह वहा खेलती दौड़ लगाती गिरती पड़ती.. खिलखिला कर हंसती..तो सारा परिवार खुशी से चहकने लगता था..वह उदास होती तो सारा परिवार उदास हो जाता था।

राकेश के पिता का कुछ वर्षों पहले देहांत हो चुका था..वह कस्बे के प्रतिष्ठित व्यापारी थे..उनका सारा व्यवसाय उनका छोटा बेटा विकास ही संभालता था..राकेश प्रतिष्ठित पद पर नौकरी करता था..वह रोजाना अपने कस्बे से शहर तक अपनी गाड़ी से आता जाता था..वह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था..वह उसकी हर इच्छा की पूर्ति करता था..पूरा परिवार खुशियों भरा जीवन व्यतीत कर रहा था।

कुछ महीनों से सीमा कुछ अलग-थलग रहने लगी थी..वह ज्यादातर अपनी पुरानी सहेलियों से बात किया करती रहती थी..उसके मन में अपने घर आंगन के प्रति नकरात्मक सोच उभरने लगी थी..वह सोचती थी कि उसकी सहेलियां शहर में अपनी पसंद की जिन्दगी व्यतीत कर रही है..

और वह बस यहा एक बड़े से घर में कैद होकर रह गई है..जहा उसके किसी प्रकार का बंधेज नहीं था.. फिर भी वह न अकेले सोच पाती थी..न कही अकेले अपने मन मुताबिक कही आ जा सकती है.. कोई न कोई उसके साथ अवश्य होता था.. अपनी सहेलियों के रहन-सहन की बातें सुनकर सीमा के मन में उथल-पुथल होने लगी थी..वह कस्बे में अपने ससुराल का घर आंगन छोड़कर राकेश और परी के साथ शहर में अलग एक नया घर लेकर अपनी ससुराल से छुटकारा पाकर अपनी अलग दुनिया बसाना चाहती थी।

रात के आठ बज रहे थे राकेश घर आ चुका था। नन्ही परी ज्यादातर अपनी दादी रमादेवी के साथ ही रहती थी..वह कमरे में सो गयी थी..कुछ देर तक राकेश और विकास रमादेवी के पास बैठकर बात करते रहे परी को सोया हुआ देखकर राकेश खाना खाकर अपने कमरे में चला गया..कुछ देर बाद सीमा अपने कमरे में पहुंच चुकी थी।

“परी अम्मा के पास सो रही उसे वही रहने दो” सीमा के अंदर आते ही राकेश बोला।”ठीक है मैं उसे कहा लेने जा रही हूं ” सीमा मुंह सिकोड़ते हुए बोली। “क्या बात है सीमा! तुम्हारा चेहरा क्यूं उतरा हुआ है ” राकेश सीमा को गौर से देखते हुए बोला। “आज आपको मेरा उदास चेहरा नजर आ रहा है” सीमा उदास होते हुए बोली।

“सीमा तुम जानती हो मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकता, बताओं क्या बात है?” राकेश परेशान होते हुए बोला। “पहले आप वादा करिए कि मेरी बात को समझेंगे और इंकार नहीं करेंगे ” सीमा राकेश के करीब आकर बोली। “ठीक है मैं वादा करता हूं,अब बताओ ” राकेश मुस्कुराते हुए बोला।

सीमा ने अपने मन की सारी जिज्ञासा और अपनी सहेलियों की ही तरह जीवन जीने की इच्छा राकेश के आगे जाहिर कर दिया। “तुम यह क्या कह रही हो सीमा,में अम्मा और अपने भाई बहन को छोड़कर अलग शहर में रहूं” राकेश हैरान होते हुए बोला। “मैं आपसे रिश्ते नाते तोड़ने के लिए तो नहीं कह रही हूं,हम लोग यहा आते जाते रहेंगे” सीमा मुंह फुलाते हुए बोली। राकेश सीमा की बात सुनकर कुछ देर तक सोचता रहा फिर बोला। “सीमा तुम कुछ भी कहो लेकिन मेरी हिम्मत नहीं है कि मैं अम्मा से अलग रहने की बात कहूं” कहकर राकेश चुपचाप लेट गया।

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छुटकारा (भाग 2)-  माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित रचना लखनऊ

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