छुटकारा (भाग 2)-  माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : सीमा का बर्ताव धीरे -धीरे बदलने लगा था..वह छोटी-छोटी बातों पर उलझ जाती थी..कभी-कभी वह नन्ही परी पर भी अपनी खीझ निकालने लगी थी.. रमादेवी व घर के अन्य सदस्यों को सीमा के व्यवहार में आए बदलाव से चिन्ता होने लगी थी.. आखिरकार रमादेवी ने सीमा की परेशानी जानने का निर्णय कर लिया था..वह अपने बेटे और बहू को दुखी नहीं देख सकती थी..वह राकेश को अच्छी तरह जानती थी कि वह कोई भी बात अपनी मां से नहीं छुपाता था..वह सीमा के व्यवहार में आए परिवर्तन का पूरा सच जानना चाहती थी।

रात के नौ बज रहे थे.. रमादेवी को अपने कमरे में आता देखकर राकेश बोला। “आओ अम्मा! कुछ लाना है क्या,बता दीजिए मैं कल लेता आऊंगा” रमादेवी राकेश की बात सुनकर उसके पास बैठते हुए बोली। “नहीं बेटा! मुझे कुछ मंगाना नहीं है,मैं तो तुम लोगों को खुश देखकर ही सब कुछ पा जाती हूं,मगर मैं यह महसूस कर रही हूं कि शायद बहूं खुश नहीं हैं?” रमादेवी की बात सुनकर राकेश एकटक उनकी ओर देख रहा था.. सीमा बगल में चुपचाप खड़ी हुई थी।

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ” राकेश रमादेवी को दिलासा देते हुए बोला। “बेटा! मैं भी तुम्हारी मां हूं,भला मैं अपने बच्चों के चेहरे को पढ़ने में कभी भी गलत नहीं हो सकती,जो भी बात है संकोच किए बिना मुझे बताओ ” रमादेवी राकेश और सीमा को दुलारते हुए बोली। सीमा राकेश को रमादेवी से बात करने के लिए आंखों से इशारा कर रही थी।

कुछ देर तक शांत रहने के बाद राकेश ने शहर में एक फ्लैट लेकर वहा रहने और अपनी नौकरी का हवाला देते हुए अपनी समस्या रमादेवी के सामने रख दी। रमादेवी राकेश की बात सुनकर कुछ देर के लिए खामोश हो गई फिर बोली। “बस इतनी सी बात पर तुम परेशान हो बेटा!वहा रहने से कोई तुम्हारा घर थोड़े ही छीन लेगा,मैं जानती हूं कि जिस घर आंगन में हम रहते है वहा से दूर रहने में थोड़ा बहुत दुख तो होता ही है,

बहू तुम परेशान मत हो,हर महीने तुम यहा आकर कुछ दिन तक रहना,जिससे तुम्हें दुख नहीं होगा, राकेश! तुम फ्लैट ले लो बेटा! हम लोग भी वहा आते रहेंगे, तूं चिन्ता मत कर” रमादेवी सीमा की मनोदशा के विपरीत सोचते हुए सीमा को दुलारते हुए बोली। सीमा के चेहरे पर मुस्कान बिखरने लगी थी..अपनी इच्छा की पूर्ति होते हुए देखकर वह रमादेवी के गले से लिपट गई।

एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका था राकेश और सीमा नन्ही परी कस्बे वाले अपने घर में नहीं आएं थे.. राकेश सीमा और नन्ही परी की बातें फोन पर ही सुन कर खुश हो जाती थी रमादेवी..शीला और विकास भी नन्ही परी से मिलने के लिए बेचैन हो रहे थे..रमादेवी ने शहर में राकेश के घर जाकर कुछ दिन रुकने का फैसला कर लिया था.. उसने राकेश को फोन पर दो दिन बाद विकास के साथ उसके घर आने और कुछ दिन रुकने की जानकारी पहले ही दें दी थीं।

सीमा शहर में आकर बहुत खुश थी..एक महीने में ही वह अपनी ससुराल को लगभग भुला चुकी थी..दिन भर राकेश घर पर नहीं रहता था..सीमा को साथ लेकर बाहर जाती थी..सारी खरीददारी करना सहेलियों से मिलना किटी पार्टी करना यह सब उसके लिए आम बात हो गई थी।

सुबह के दस बज रहे थे..राकेश घर से आफिस के लिए निकल चुका था..सीमा रमादेवी और विकास के आने की बात सुनकर खुश नहीं थी.. बल्कि वह सोचकर परेशान थी कि शाम को चार बजे उसकी सास और देवर उसके घर आने वाले थे..राकेश भी जल्दी घर आने की बात कहकर गये थे.. जबकि उसे बारह बजे एक सहेली के घर जाना था..वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी.. क्योंकि वह जानती थी कि उसकी सास और देवर किस स्वाभाव के है..वह उसके और राकेश के बारे में कभी कुछ गलत सोच ही नहीं सकते इसलिए उसने उस दिन कही ना जाने का निर्णय ले लिया था।

बारह बज रहे थे..सीमा किसी सहेली से बात करके बेचैन हो रही थी.. उसने बड़ी रिक्वेस्ट करके उसे एक घंटे के लिए आने के लिए कहा था..परी सो रही थी.. एक घंटे की ही तो बात है यह सोचकर सीमा गार्ड को कुछ देर तक उसके फ्लैट पर नजर रखने के लिए कहकर घर से निकल गई।

नन्ही परी के रोने की आवाज सुनकर गार्ड सीमा के फ्लैट की ओर बढ़ गया..वहा का दृश्य देखकर वह घबड़ा गया उसने तुरंत इसकी सूचना राकेश और सीमा को दी.. और परी को लेकर पास के नर्सिंग होम में पहुंच चुका था..परी नींद से उठकर दरवाज़े के पास गिर गई थी.. दरवाजे का कोना उसके सिर पर लग गया था..

जिससे खून निकल रहा था। सीमा बदहवास गार्ड के बताए हुए नर्सिंग होम पर पहुंची..परी के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी..गार्ड तुरंत परी को नर्सिंग होम ले आया था..परी ठीक थी..परी के सिर पर चोट देखकर सीमा खुद को मुजरिम समझकर गम के सागर में डूबती जा रही थी..उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था..

क्योंकि वह अपनी बेटी को दिलोजान से प्यार करती थी.. हमेशा उसे अपने साथ ले जाती थी..मगर आज उसकी मति कैसे भ्रष्ट हो गई..उसे खुद से नफररत होने लगी थी.. कुछ ही देर में राकेश भी वहा पहुंच गया..परी को देखते ही राकेश ने पहली बार सीमा के साथ गलत तरीके से पेश आया राकेश की बातों का सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया वह चुपचाप खड़ी रही..

उसके मन में उस घर आंगन का ख्याल हिलोरें मार रहा था जहा उसकी नन्ही परी चहकती रहती थी..वहा पर वह पूरी तरह सुरक्षित थी.. एक मच्छर तक उसके आगे नहीं उड़ने देती थी उसकी सास ननद देवर..आज वही परी घायल हो गई सिर्फ उसकी एक भूल से? कुछ ही देर बाद सभी लोग नर्सिंग होम से परी को साथ लेकर घर वापस आ गए।

शाम के पांच बज रहे थे.. रमादेवी और विकास परी के सिर पर चोट देखकर परेशान हो गए थे.राकेश ने रमादेवी से कोई बात न बताकर घर पर फिसलकर गिर जाने की बात बताईं..परी अपनी दादी और चाचा से मिलकर चहक रही थी.. परी को दादी और चाहा के साथ हंसते हुए देखकर आंसू छलकने लगे।

“क्या हुआ बहू, तू यहा खुश नहीं है?” सीमा का उतरा हुआ चेहरा देखकर रमादेवी बोली। सीमा कुछ न बोलकर रमादेवी से लिपटकर रोने लगी। “क्यों रो रही हो बहू कया बात है?यहा ना अच्छा लग रहा हो तो तू अपने घर चल” रमादेवी सीमा को दुलारते हुए बोली। “हा मां जी!अब यहा नही रहेंगे..

हम लोग आज ही चलेंगे आप के साथ अपने उसी हंसते खेलते हुए घर आंगन में..जहा हमारी परी उछलतीं रहें यहा नहीं?” सीमा परी को गोद में उठाते हुए बोली।
राकेश चुपचाप खड़ा सीमा की ओर देख रहा था..वह मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद दें रहा था..अपने परिवार को बिखरने से पहले उसने सीमा को सद्बुद्धि देकर उसने उसके घर आंगन में फिर से खुशियां बिखेर दी थी।

छुटकारा (भाग 1)-  माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi

माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित रचना लखनऊ

 

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