ऊँचा खानदान – रश्मि सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : शिवेश-आज मैं तुम्हारे कहे अनुसार फिर जा रहा हूँ, पर अगर उन्होंने अबकी बार भी कुछ व्यंग कसा तो अच्छे सुनाकर आयुँगा।

रीमा (शिवेश की पत्नी)-आप तो हमेशा ताव में रहते हो, लड़की वाले हो थोड़ा संयम रखा करो। आज के जमाने में रोहित जैसा लड़का मिलना मुश्किल है, और मैंने तो ठान लिया है अपनी मानवी की शादी वही करूँगी।

शिवेश लड़के वालों के घर पहुँचता है। बातचीत का सिलसिला जारी होता है।

राकेश (रोहित के पिता जी)-देखिए हमें आपकी लड़की तो अच्छी लगी है, पर फिर भी आप अपनी बिटिया का ब्याह हमारे खानदान में ना कर पाएँगे।

शिवेश (मानवी के पिता)-ऐसा क्यों कह रहे है आप।

राकेश (रोहित के पिता जी)-देखिए हम यहाँ जरूर साधारण तरीक़े से रहते है पर गाँव घर में हमारी बहुत पहुँच है। आप एक बार गाँव में हमारे बारे में पूछिए तब आपको लगेगा कि हम क्या है, आप हमारी बराबरी नहीं कर पाएँगे।

शिवेश (मानवी के पिता)-मानता हूँ आप हमसे पैसा शोहरत में ऊँचे हो पर हमारी भी समाज में इज़्ज़त और मान सम्मान है तो हम आपके मान सम्मान में भी कमी नहीं आने देंगे।

राकेश (रोहित के पिता जी)-आप तिलक ज़ोर दार करिएगा क्योंकि उसमे पूरा गाँव शामिल होगा, और दूसरे कार्यक्रम तो शहर में होने है।

शिवेश (मानवी के पिता)-आप निश्चिंत रहिए। आपको शिकायत का मौक़ा नहीं मिलेगा।

ये कह शिवेश जी अलविदा लेते है और सगाई की तैयारी  में लग जाते है। दूसरी तरफ़ राकेश जी के मन में कही ना कही डर है कि सब ठीक से हो पाएगा कि नहीं, समाज में कोई कुछ कह ना पाए।

आज मानवी और रोहित की सगाई है, कोरोना की वजह से सीमित लोगों का ही आना हो पाया। लड़के वाले सगाई के लिए वेन्यू पर पहुँचते है, वहाँ लिफ्ट के पास ही अपने बेटे और मानवी का नाम देख खुश हो जाते है और गेस्ट हाउस पहुँचते है। वहाँ की व्यवस्था देख राकेश जी मन ही मन खुश होते है कि शुरुआत तो बहुत अच्छी है, अब आगे भी सब ऐसे ही रहे।

दोनों परिवारों के आशीर्वाद के साथ सगाई का कार्यक्रम सुसंपन्न हो जाता हैं। लड़के और लड़की वाले दोनों कार्यक्रम की बढ़ाई करते नहीं थक रहे।

शिवेश जी ने सगाई पर इतना खर्च कर दिया है कि उन्हें अब आगे के कार्यक्रमों के लिये समय चाहिये पर तिलक तो 15 दिन बाद का निश्चित हुआ है। ये सब सोच शिवेश और उनकी पत्नी बहुत परेशान है। मानवी ये सब जानकर रोहित को कॉल करती है।

मानवी-सुनिए आप लोग ये रिश्ता कैंसिल कर दीजिए क्योंकि आपके पापा की डिमांड को पूरा करने के लिए अब पापा के पास पैसे नहीं है।

रोहित-तुम्हें कुछ ग़लतफ़हमी है मानवी। पापा ऐसी कोई डिमांड नहीं कर सकते क्योंकि मैं इन सबके बिल्कुल ख़िलाफ़ हूँ। मैं पापा से बात करता हूँ।

रोहित फ़ोन काटते ही शिवेश जी के पास जाता है और पूछता है-पापा आपने मानवी के पापा से कोई डिमांड की है क्या ?

राकेश (रोहित के पापा)-बेटा मैंने कोई माँग नहीं की है बस ये कहा था कि आप समाज में हमारे स्तर का ध्यान रखते हुए सब व्यवस्था करवाइयेगा।

रोहित-पापा ये अप्रत्यक्ष रूप से दहेज माँग है। हम क्यों ना ऐसा करे कि उनसे 10 लाख का एक फ़र्ज़ी चेक ले लें और सबको बता देंगे कि की हमने सिर्फ़ कैश लिया है और मानवी के पापा से कैश ना ले वो बस शादी की व्यवस्था करें।

राकेश जी-कर तो सकते है पर बेटा तुम सरकारी नौकरी में हो तो लड़की वालों का थोड़ा बहुत देना तो बनता है ना। वैसे भी तुम जानते हो कितने बड़े बड़े घर के रिश्ते तुम्हारे लिए आये थे और हमने सबको किनारे कर इनके लिए हामी भरी।

रोहित-पापा हमारे लिए प्राथमिकता लड़की होनी चाहिए जो हमारे घर की एकता बनाये रखें बड़ों का आदर करें। और बात रही बड़े घर कि लड़की से शादी की। अगर आज मान सम्मान के लिए आप मेरी किसी बड़े घर की लड़की से शादी कर दें और कल को वो घर की सुख शांति भंग कर दे तब यही मान सम्मान दाँव पर लग जाएगा।  इसलिए हमें ये बाहरी आडंबर और समाज के लिये अपनी ख़ुशियों पर ग्रहण नहीं लगाना है।

राकेश (रोहित के पापा)-बात तो सही कही तूने। मैं शिवेश जी से अभी बात करता हूँ वो वैसे ही सब इतना अच्छे से कर रहे है और मैंने बेवजह ही उनपर दबाव डाल दिया।

रोहित खुश होकर मानवी को बताने के लिए कॉल करने लगता है।

हमारे समाज में कहते है कि लड़का और लड़की का शादी से पहले बात करना रिश्तों में बड़ी समस्याएँ पैदा कर देता है पर यहाँ रोहित और मानवी की बातचीत और सूझ-बुझ से रिश्ते को एक नया आयाम मिल गया और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीति पर एक प्रहार।

आदरणीय पाठकों,

कहा जाता है कि शिक्षा उन्नयन की ओर ले जाती है परंतु आजकल समाज में शिक्षा को दहेज के तराज़ू में तौला जाता है। एक तरफ़ लड़के वालों की सोच होती है कि लड़का जितना पढ़ा-लिखा होगा दहेज की माँग उतनी ही की जाएगी।दूसरी तरफ़ लड़की वाले सोचते है बिटिया पढ़-लिखकर सरकारी नौकरी पा लेगी तो दहेज कम हो जाएगा। ये तो सरासर शिक्षा का पतन हुआ। शिक्षा का अर्थ तो समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करना है।अतः मैं इस रचना द्वारा ये संदेश देना चाहती हूँ कि शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य समाज की सोच को आधुनिक और सकारात्मक बनाना होना चाहिए।

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

नवाबों की नगरी (लखनऊ)

और तिलक तो हमें गईयहाँ रिश्ता क्यों ले आए।

लड़के वाले के -आप हमारे यहाँ रिश्ता तो ले आए, पर शायद हमारे खानदान में शादी ना कर पाएँगे।

 

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