छोटी सोच –  सविता गोयल  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : राधीका कोई पंद्रह साल की थी जब उसके पिता जी परिवार सहित गाँव छोड़ कर शहर में आ बसे थे। उसकी शादी भी शहर में ही एक बडे़ घराने में हो गई। लेकिन आज भी वो खुद को गाँव से जुड़ा हुआ महसूस करती थी। जब दस साल बाद राधिका को फिर से गाँव जाने का मौका मिला। उसके चाचा जी के लड़के कि शादी थी। वो बहुत खुश थी। लेकिन उसे बहुत अकेलापन महसूस हो रहा था। उसके पति सुधीर उसके साथ नहीं आए थे।

सुधीर को पता नही क्यों गाँव और गाँव वालों से नफरत सी थी।अनमनी सी राधिका की नजरें शायद किसी को ढूंढ रही थी। तभी उसे किसी ने पुकारा “राधी…,, ये जानी पहचानी सी आवाज सुनकर राधिका के चेहरे पर जैसे खुशी की लहर दौड़ गई। ये रघु था, गाँव के जमिंदार का बेटा।

बहुत रूतबा था इसके पिता का आस पास के सभी गाँव में । राधिका का कोई सगा भाई नहीं था इसलिए रघु उसे अपनी छोटी बहन की तरह चाहता था। हर रक्षाबंधन पर वो राधिका से राखी बंधवाता था। जब राधिका का परिवार गाँव छोड़कर आ रहा था तो रघु बहुत रोया था। 

आज जब रघु ने स्नेह से राधिका के सर पर हाथ रखा तो राधिका का ह्रदय गदगद हो गया ।उसे लगा जैसे इतने सालों से वो जिस बड़े भाई के स्नेह से वंचित थी ,वो आज उसे मिल गया।रघु बोलता जा रहा था,” कितनी बड़ी हो गई है रि तूं, कितने सालों बाद देखा है तुझे। काका से कितनी बार तेरा पता पूछा लेकिन वो बताते हि नहीं।

चल अब मुझे अपना पता दे। इस बार रक्षाबंधन पर जरुर आऊंगा तुझसे राखी बंधवाने।,, हाँ भईया जरूर “राधिका ने बड़े उल्लास से कहा। ,,दोनों ने ढेर सारी बातें करीं। 

उसने अपना पता दे तो दिया लेकिन वो मन ही मन सोंच रही थी कि क्या पता सुधीर को रघु का घर आना पसंद आएगा भी या नहीं। राखी के दिन राधिका का मन बहोत बेचैन था। उसकी नजरें बार बार दरवाजे पर जाकर टिक जातीं ।करीब चार बजे रघु आया । हाथ में दो थैले लिए हुए।कुर्ता पायजामा पहने हुए, अपनी बड़ी बड़ी मुछों को ताव देते हुए।

सुधीर ने सवालिया निगाहों से राधिका को देखा। राधिका ने हिचकिचाते हुए उनका परिचय करवाया। सुधीर बस औपचारिक रूप से बातचीत करके वहाँ से चला गया। रघु ने बड़े प्रेम से राखी बंधवाई और सगुन के साथ ढेर सारा सामान दिया ,जो वो अपने गाँव से लेकर आया था।

भुट्टे, गुड़, अपने बाग के फल वगैरह। राधिका को पता था कि यहाँ इन चीजों कि यहाँ कोई कदर नहीं है ,फिर भी रघु के निस्वार्थ प्रेम से लाए गए सामान को उसने सहर्ष स्वीकार किया। सुधीर ने जब ये सब सामान देखा तो नाक मुंह सिकोड़ते हुए राधिका से कहा, “तुम भी पता नही कैसे कैसे लोगों से रिश्ता रखती हो।

कौन खाएगा ये सब। सुबह कामवाली आए तो दे देना उसे।,,राधिका को बुरा तो बहुत लगा लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। वो जानती थी जहाँ आजकल सगे रिश्ते ही बोझ कि तरह निभाए जाते हैं ,वहां इन मुंहबोले रिश्तों की कद्र कौन करेगा। 

अब रघु जब भी किसी काम से शहर आता राधिका से मिलने आ जाता। सुधीर को उसका घर आना बिलकुल न भाता था। लेकिन वो राधिका की खुशी के लिए साफ साफ मना भी नहीं करता था। 

एक बार सुधीर अपने बाॅस के साथ किसी मीटिंग के लिए जा रहा था। यही कोई छ:सात लोग थे। रास्ता रघु के गाँव से होकर गुजरता था। वापसी में रास्ते में तुफान के कारण उनकी गाड़ी खराब हो गई। शाम भी हो गई थी इसलिए और कोई साधन मिलने की भी गुंजाइश नही थी। बहुत देर होने पर राधिका का फोन सुधीर के पास आया।

सारा मामला जानकर उसने रघु के पास फोन कर दिया। खबर मिलते ही रघु अपना ट्रेक्टर ले कर पहुंच गया उनकी मदद के लिए। वो उन सबको अपने साथ अपने घर ले आया। रघु की इतनी बड़ी हवेली और नौकर -चाकर देखकर सुधीर दंग रह गया। रघु ने उनकी खूब आवभगत की। ताजा दूध, दही, घी खाकर सुधीर के बाॅस  तो जैसे निहाल हो गए।

रात भर आराम करने के बाद सभी लोगों को उसने अपने खेत और बागों की सैर कराई। उसने उनकी गाड़ी कि मरम्मत भी करवा दी। जाते समय रघु ने सभी को अपने बाग के फल और गुड़ भेंट स्वरूप दिया। सुधीर के बाॅस तो रघु की तारीफ करते नहीं थक रहे थे।

  सुधीर रह रहकर खुद  की छोटी सोच पर शर्मिंदा हो रहा की उसने आज तक जिस आदमी से सीधे मुंह बात भी नहीं की वही रघु आज उसकी इतनी मदद कर रहा है। सिर्फ रहन सहन और स्टेटस देखकर ही रघु की नियत का अंदाज़ा लगाकर उसने ठीक नहीं किया। 

रास्ते में जाते समय सुधीर ने रघु का दिया गुड़ चखा। न जाने क्यों आज उसे ये गुड़ बहुत मीठा लग रहा था।शायद गाँव के लोगों के लिए उसके मन में जो कडवाहट थी, वो अब कम हो गई थी।      

  सविता गोयल 🙏     #शर्मिंदा

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