चैरिटी बॉक्स   – उषा भारद्वाज

 सब्जी वाले की आवाज सुनकर गीता बाहर निकली और उसको देखते ही ऐसे बोली, मानो बहुत दिनों से उसका इंतजार था। और यह सच भी था ये सब्जी वाला रोज गीता की कॉलोनी में आता था और सभी उससे सब्जी खरीदते थे। गीता ही नहीं बल्कि अधिकांश घरों को इसका इंतजार था।  

     गीता बहुत नम्र और भावुक ह्रदय की स्वामिनी है। उसके पास पहुंच कर पूछने लगी- “क्या हुआ था भैया ? 1 हफ्ते से  क्यों नहीं आ रहे थे? बड़ी दिक्कत हो रही थी , ऐसे तो रोज ताजी सब्जी आपसे मिल जाती है।”-  गीता ने मानो अपना पूरा दुखड़ा उससे रो दिया। 

वह कराहती आवाज में बोला-  मेरी तबीयत  ठीक नहीं

 थी ।  बहुत बुखार आ रहा है अभी भी ठीक नहीं है। लेकिन घर में अब खाने को कुछ भी नहीं बचा था। तो निकलना  पड़ा। उसकी यह बात सुनकर गीता को बहुत दुख हुआ। 

 सब्जी वाले को  गीता के  इसतरह हाल पूंछने से अपनेपन का अह्सास  हुआ । वो वहीं  सर पर हाथ रखकर बैठ गया।  फिर बोला मैं बहुत दुखी हूं , मेरी बिटिया की शादी तय हो गई थी लेकिन पैसों की कमी के कारण  रुक गई। “

     यह बात सुनकर गीता को उसकी बीमारी का राज पता चल गया । क्योंकि वह बहुत हंसमुख था उम्र तो तकरीबन 55-60 के करीब होगी लेकिन जिस तरह वह गा -गाकर  सब्जी की विशेषता बताता उससे सब्जी लेने वाले भी उसकी तरफ  आकर्षित हो जाते ।  सबको उसका इंतजार रहता था ।

गीता को उससे सहानुभूति हुई, इसलिए वह थोड़ी देर वहां रुक गई और पूछा-” कितने पैसे कम पड़ रहे हैं ?” सब्जी वाले ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा जरूरी बर्तन और कपड़े देने के लिए पैसे नहीं है।”

  गीता ने फिर पूछा – अंदाजा  कितने रुपए की जरूरत है?




 सब्जी वाला गीता की तरफ दयनीय दृष्टि से देखते हुए बोला -” मेम साहब इतनी महंगाई है कि छोटा सा बर्तन भी बहुत महंगा आ रहा है हमारी छोटी लड़की ने जोड़ा था करीबन  आठ- दस हजार रुपए हो तो हमारी बिटिया ब्याह जाएगी । मगर इतने रुपए तो हम कभी इकट्ठा नहीं कर पाएंगे । मेरी पत्नी कई साल पहले गुजर गई मेरी मां बूढ़ी है जो बीमार रहती हैं।  दो बेटियां  एक बेटा है वो अभी छोटा है। इन सब का खर्च उठाने वाला अकेला मैं हूं। क्या क्या करूं कैसे इंतजाम होगा ? यही चिंता खाए जा रही है।”

इतना कहते-कहते सब्जी वाले का गला रुंध गया।

   गीता उसकी बात सुनकर चुप रही। फिर बोली -“भगवान सबकी मदद करता है आपकी भी करेगा ।”

थोड़ी देर बाद वह चला गया।

 गीता के मन में सब्जी वाले की बात चलती रही। उसने अपने पति गौरव से पूरी बात बताई और अपनी इच्छा भी व्यक्त की, कि  वह सब्जी वाले की कुछ मदद करना चाहती हैं। गौरव गीता की बात सुनते ही समझ गया था कि गीता उसकी मदद जरूर करेगी । गीता दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहती है वह चाहे कोई अपना जानने वाला हो या अपरिचित। इसलिए गौरव हमेशा उसका साथ देता है।  आज भी उसने गीता से पूछा – तुम कितना देना चाहती हो गीता ने कहा – देखती हूँ।”

 गौरव ने आश्चर्य से गीता की तरफ देखा  – इतने रुपए ?

गीता समझ गई कि इतने रुपए अचानक बजट से निकालना मुश्किल है। फिर भी वह मुस्कुराते हुए गौरव से बोली – आप बस मुझे मदद की इजाजत दे दो। बाकी इंतजाम मैं कर लूंगी।”




 गौरव ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखते हुए कहा- इसमें इजाजत की क्या बात है ,  हमेशा तुम्हारे साथ  हूं । लेकिन फिर भी सोचना तो है।”

तभी गीता अंदर वाले कमरे में गई और कुछ ही पलों में वहां से आई तो उसके हाथ में एक बॉक्स था।

 गौरव ने पूछा-“यह क्या है ?”

गीता ने कहा -“यही तो है मेरा इंतजाम।”

गौरव ने कहा- मतलब……।”

गीता ने कहा- मतलब ,  यह मेरा चैरिटी बॉक्स है। और मैं इसमें अपनी बचत से कुछ रुपए हर महीने डालती रहती हूं। मुझे पक्का यकीन है कि इसमें आठ- दस हजार तो हो ही गए होंगे । 

गौरव को बहुत आश्चर्य हुआ।  उसने आश्चर्य मिश्रित शब्दों में  पूछा- ” यह चैरिटी बॉक्स का ख्याल तुमको कैसे आया ?

 गीता बड़े रहस्यमयी अंदाज में बोली-  दो साल पहले की बात है। बगल वाली आंटी हैं ना, वह बता रही थीं कि भगवान हमको बहुत कुछ देता है, बहुत कुछ दिया है । तो हमें भी, बहुत नहीं तो, कुछ तो करना चाहिए । इसलिए  हर महीने अपनी सैलरी से कुछ पैसे भगवान के लिए निकालने चाहिए । फिर भगवान के कार्यों में लगा देना चाहिए। इससे पुण्य मिलता है । उनकी यह बात मुझे  समझ में आ गई । तब से हर महीने इस बॉक्स में चार- पांच सौ रुपए जमा कर देती हूं । अब भगवान खुद चलकर तो लेने आएंगे नहीं , शायद इसी रूप में लेना चाह रहे होंगे। तो फिर इसमें हम पीछे क्यों हटें।” 

   इतना कहकर गीता बॉक्स में रखे रुपए गिनने लगी।

 गीता की यह बात सुनकर गौरव को बहुत अच्छा लगा वह बड़े स्नेहिल अंदाज में गीता को देखने लगा । उसके पास शब्द नहीं थे कि गीता से कुछ तर्क कर सके । 

 

उषा भारद्वाज

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