चरित्रहीन औरतें – मोनिका रघुवंशी : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : हमारे यंहा रविवार की सुबह अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ सुकून भरी होती है सुबह के सात बजे तक आराम से उठो,पति मॉर्निंग वॉक पर निकले और मैं अपनी कड़क चाय की प्याली लेकर बालकनी में अपने नन्हे मुन्हे पौधों को निहार रही थी। तभी एक बड़ा सा ट्रक हमारे घर के सामने आकर रुका, उसके पीछे एक ऑटो भी आया जिसमे दो महिलाएं सवार थी। 

शायद ये हमारे नए पड़ोसी थे, मैं अंदाजा लगा रही थी। दो महिलाएं…. एक टाइट जीन्स टॉप पहने लड़की जिसकी उम्र 22-24 साल लग रही थी दौंड दौंड कर चुस्ती से अपना सामान उतरवा रही थी और वो दूसरी वो अधेड़ महिला जो शायद 45-50 वर्ष की होगी… अंदर करीने से सामान रखवा रही थी।

उनका मस्तमौला स्वभाव और जीवन के प्रति बिंदास नजरिये देख  मोहल्ले की औरतें सोचती इनके घर मे कोई पुरुष नही है इसलिए ही इतना बन संवर कर मोहल्ले के पुरुषों को रिझाती फिरती है। सबने मिलकर उनका नामकरण ही ‘छम्मकछल्लो’ ही रख दिया था।पड़ोसी होने के नाते सब मुझसे उम्मीद लगाये रखती की मैं इनके बारे में सब पता लगाऊं और सच कहूं तो मेरे मन मे भी उत्सुकता जगी लेकिन पूछना मुनासिब नही लगा। खैर मुझे क्या…. अपनी चाय खत्म कर मैं बच्चों को जगाने अंदर चल पड़ी।

10 बजे तक मेरी मेड सुचित्रा आ गयी आते ही बोली पता है आज से मैं आपके बगल वाले घर का काम भी करूंगी।

तुझे पता है उनके घर मे कौन कौन है…अब मैंने पूछ ही लिया।

अभी तो वो दोनो ही है और बर्तन पोछे के अलावा खाना बनाने का काम भी मिला है वंहा..,.. वो जो नई आयी है न छम्मकछल्लो उसने मुझे बुलाकर बोला कि मैं सब जगह का काम खत्म कर ही वंहा आऊं ताकि आराम से गर्मागर्म खाना बना सकूं। सुचित्रा अपनी ही धुन में बोले जा रही थी।

दो महिलाएं है और खाना बनाने के लिये तीसरी महिला चाहिए…अरे दो जनों का खाना तो मैं यूं चुटकियों में बना दूं खैर मुझे क्या…सुचित्रा को बर्तन देकर मैं अपने रोजमर्रा के कामों में लग गयी।

 अभी 4-5 दिन ही हुए थे, दोनो खूब अच्छी तरह से बन ठन कर बाजार जाती, रेस्तरां में कॉफी पीती शॉपिंग करती। कोई न कोई उन्हें ले जाने और छोड़ने आया करता। कभी बिजली बिगड़ जाती तो कोई नया पुरुष उनके घर मे दिखाई पड़ता तो कभी पानी या नल की असुविधा होने पर। यह सब देख मोहल्ले के पुरुषों के अहम को चोट पहुंची और सब की नजर में वे चरित्रहीन बन गयी।

पुरुष सत्तात्मक विचारधारा वाली हमारी सोच ने हम स्त्रियों को आपस मे ही प्रतिद्वंदी सा बना दिया है। न चाहते हुए भी हम एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर बैठती है।बिना रोकटोक बिना बंधन के ये दोनों महिलाएं इतनी खुश रहती थी कि मोहल्ले में चर्चा का विषय बन गयी थी। स्वच्छंद स्वतंत्र और आत्मनिर्भर महिला को हमारा समाज “शक” की निगाह से ही देखता है।

रही सही कसर ये हममें से ही कोई नमक मिर्च लगाकर पूरी कर देती।

एक दिन सुचित्रा बोली क्या बताऊँ दीदी आज छम्मकछल्लो साड़ी वाड़ी पहन बन संवरकर गयी है शायद अपने यार से मिलने…। मुहल्ले की सारी औरतें इकठ्ठा होकर उसके घर गयी है कि इस तरह की बेहूदगी हमारे मोहल्ले में नही चलेगी। यंहा शरीफ औरतें रहती है बच्चे भी यही सब सीखेंगे वगैरह वगैरह…

शोर सुनकर मैं भी बाहर निकली देखा तो सब उनके दरवाजे पे जमीं हुई थी। उस नवयुवती के बारे में जाने क्या कुछ कहे जा रही थी अब अधेड़ सी महिला से नही रहा गया। मामले की गम्भीरता को समझते हुए बोली आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया … वो कोई छम्मकछल्लो नही मेरी बहु है मेरा बेटा कम्पनी की तरफ से तीन साल के लिए विदेश गया हुआ है ये फ्लैट भी हमे उसी कम्पनी की तरफ से मिला हुआ है। मेरे बेटे की कम्पनी की तरफ से ही गाड़ी हमे लेने और छोड़ने आती है और जो पुरुष तुम्हे हमारे घर दिखाई पड़ते है वे नेरे बेटे के दोस्त है और उसी कम्पनी में काम करते हैं।

मैं अपनी बहू के साथ बिल्कुल वैसे ही रहती हूं जैसे अपने बेटे के साथ रहती थी। आज मेरा बेटा कुछ समय के लिए शहर आया हुआ है उसी से मिलने मैंने बहु को भेजा है। जाने क्यों लोगों को खुद से ज्यादा दूसरों की लाइफ में इंट्रेस्ट रहता है। अब अगर आप सबको तसल्ली हो गई हो तो कृपया अपने घर जाएं, और अपनी अपनी घर गृहस्थी संभाले।

सब की सब अपना सा मुंह लेकर चलती बनी।

#शक

मोनिका रघुवंशी

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