बहुत दिन हो गये…- गुरविंदर टूटेजा

    अनामिका जी बहुत बड़े बंगलें में वो अकेली रहती थी…एक बेटा है जो विदेश में नौकरी करता है और वही अपनी पत्नी व दो बच्चों के वही का हो गया है…जब गया तो बोला जरूर था साथ चलने का पर अनामिका जी ने इंनकार कर दिया…उन्होनें कहा उनका जो है यही है मैं यही रहूंगी..!!!!

    रह तो गयी थी पर अकेलापन महसूस होता था… कमला बाई आती थी…काम करके चली जाती फिर उन्हें बहुत बुरा लगता तो उन्होनें उसे बोला कि…कोई ऐसा नहीं है जो मेरे साथ यही रह जायें…मेरे जैसा ही अकेला….मैं तलाश करती हूँ मैडम…!!!!

     पाँच-छः दिन बाद अपने साथ एक पैंतीस साल की एक औरत व बारह साल की लड़की को लेे आयी…बोली मैडम ! ये सीमा है और साथ में इसकी बेटी सुहानी है…आपने बोला था ना कि कोई ऐसा जो आपके साथ रह सकें तो ये आपका काम भी कर देंगी और यहाँ रह जायेगी…!!!! 

    अनामिका जी ने उन्हें बैठने का कहा और फिर कमला से पूछा कि विश्वास कर सकतें हैं ना मैं भी अकेली रहती हूंँ… कुछ सोचने की जरूरत नहीं है मैडम जरूरतमंद भी है और विश्वासपात्र भी है…उन्होंने एक कमरा उनकों दे दिया..!!

   सीमा सुबह जल्दी ही उठ जाती और उन्हें हर चीज समय पर देती…उनका ध्यान भी बहुत रखती थी…उन्होंने भी सुहानी का एडमिशन पास के ही स्कूल में करा दिया था…घर पर वो ही उसको पढ़ाती थी…!!!!

   थोड़े़-थोड़े दिन में वो ही अपने बेटे को फोन लगाती थी… पर बेटे को तो उनसे बात करने की फुर्सत ही कहाँ होती थी…बस हर बार बात वही पर रह जाती कि बहुत दिन हो गये…और फोन कट जाता उनके ये कहने से पहले कि बहुत दिन हो गये..तुमसे मिले एक बार आ जाओ…!!!!

    समय बीतता गया उम्र भी हो चली थी पर सीमा व सुहानी के साथ समय कैसे गुज़रता गया पता ही नहीं चला…एक बहुत प्यारा सा दिल का रिश्ता बन गया था…सुहानी भी पुरस्कार जीतती तो अपनी माँ से पहले अम्मा को दिखाती..जब आयी तब से ही अम्मा बोलती उन्हें भी बहुत अच्छा लगता था…ऐसे लगता जैसे अपनी ही पोती हो और सीमा भी उनका शुक्रिया करते नहीं थकती थी..क्यूँकि माँ-बेटी को जो सहारा यहाँ मिला कही नहीं  मिल सकता था…!!!!


    अनामिका जी की तबीयत अब खराब रहने लगी थी तो उन्होनें वकील को बुलवाकर अपना बंगलें का आधा हिस्सा सुहानी के नाम और आधा ट्रस्ट को दे दिया था उनके बाद के लिये ये वसीयत बनवायी थी…!!!! 

   एक दिन सीमा को बोली सुहानी के लिये लड़का देखना शुरू कर देते है मैं चाहती हूँ मेरे सामने उसकी शादी हो जाये…पर सुहानी कहती नहीं अम्मा मैं तुम्हें छोड़कर कही नहीं जाऊँगी…तो वो उसको कहती कोई ना मैं तेरे लिये घर-जँवाई ले आऊँगी..और दोनो जोर से हँस पड़ी..!!

   सीमा एक बार बोली…मैडम भैया से आपने सलाह नहीं ली वसीयत कराई तो..वो बोली मेरी चीज है मैं कुछ भी करूँ वैसे ही भैया तो कभी ये भी नहीं पूछता कि माँ जिन्दा हो या…सीमा जोर से बोली आप ऐसा मत बोलो…!!

   कुछ समय बाद एक रात अनामिका जी की तबीयत बहुत खराब हो गयी और उनका निधन हो गया….दोनो माँ-बेटी का रो रोकर बुरा हाल था…उन्होनें पहले ही सीमा को बोल दिया था कि मेरे मरने की खबर भी भैया को मत देना और मेरा अंतिम 

  संस्कार सुहानी के हाथों कराना…ऐसा ही हुआ क्यूँकि 

उनकी आखिरी इच्छा थी…आस-पास के कुछ लोग आ गये थे…सब खत्म हो गया…!!!!

   अनामिका जी को गये आज आठ महीनें गुज़र गये थे… सीमा व सुहानी के तो जैसे भगवान चलें गयें थे… उनका फोन सुहानी के पास ही रहता था…!!!!

   एक बार बेटे को माँ की याद आ गई कि बहुत दिन से माँ का फोन नहीं आया तो आज उसने माँ को फोन लगाया…फोन सुहानी ने उठाया बोली …भैया! आज आपको अम्मा की याद कैसे आ गयी वो तो तरसती चली गयी…बहुत दिन हो गये….

#दिल_का_रिश्ता

गुरविंदर टूटेजा

उज्जैन (म.प्र.)

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