भाई चाय वाला – अभिलाषा कक्कड़

जीवन में कभी कभी ऐसे भी क्षण आते हैं जब ज़िन्दगी कुछ देर के लिए अपना पड़ाव सा डाल लेती है । स्मृतियों में एक मधुर याद बनकर वो सदा विराजमान रहते हैं ।रक्षाबंधन बहुत ही प्यारा त्योहार है । भले ही भाई ना होने की वजह से इस त्योहार की मेरे जीवन में कुछ ख़ास तरंग नहीं रही । परन्तु फिर भी माँ हलवा तो उस दिन खिला ही देती थी । 

चार बहनों में मैं सबसे छोटी सभी मुझे प्यार से राज़ी कहते थे । मैंने 10 सेमी पास करके हायर सेकेंडरी में दाख़िला लिया । स्कूल बहुत बड़ा था  विद्यार्थियों से भरा हुआ । स्कूल के बीच में ही कैंटीन थी।मेरे पापा उसी स्कूल में बतौर लेक्चरर काम करते थे । उन्होंने कैंटीन वाले जिसका नाम पूरण सिंह को कह दिया था ये मेरी बेटी है अगर यहाँ से कुछ ले तो मेरे खाते में लिख देना । मेरे तो मज़े थे हर रोज़ का खाना पीना कभी कभी सहेलियों के पास पैसे नहीं होते तो उन्हें भी खिला देती थी। पूरण सिंह  के साथ उसका चौदह बरस का  बेटा भी काम करता था ।

भाग भाग कर हमारे लिए चाय समोसे लेकर आता था ,भले ही हम कैंटीन से कितनी दूर बैठी हो । धीरे-धीरे वो हम लोगों से खूब बातें करने लगा। जब पैसे नहीं होते थे सबके पास तो मैं ही आगे बढ़कर खाने पीने का आर्डर देती थी तो मुझसे उसका स्नेह कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया । मुझे दीदी दीदी कह कर बुलाने लगा । असली नाम तो कभी उसका पूछा ही नहीं सब उसे छोटूराम ही कहते तो हम भी उसे उसी नाम से बुलाने लगी । मुझसे बहुत बातें करने लगा । 

एक दिन मैंने उससे कहा देख हम सब पढ़ रही है तू भी स्कूल ज़ाया कर …. सुनकर बोला दीदी मुझे स्कूल नहीं जाना मैं तो शेफ़ बनूँगा अपना ख़ुद का होटल खोलूँगा । एक दिन वो मेरे पास आकर बोला दीदी मैं आपको बहन मानता हूँ क्या आप मुझे राखी बाँधोगी । मैंने हँसकर उसकी बात टाल दी । मुझसे क्यूँ राखी बँधवानी है तेरी तो दो छोटी बहनें भी है । 




तो कहने लगा तो क्या हुआ मैं तीन बहनों का भाई बन जाऊँगा । बात हंसी में आई गई हो गई । लेकिन सब मेरी दोस्त उसे छोटूराम की बजाय राजी का भाई कहने लगी । ख़ैर पता ही नहीं चला कब साल बीतने को आया । एक सुन्दर सा रिश्ता उस चाय वाले छोटूराम के साथ बन गया । परीक्षा से दो महीने पहले उसका कैंटीन आना बन्द हो गया एक दिन मैंने उसके पिता से पूछा कि छोटू आजकल नज़र नहीं आता कहाँ है?

तो उसके पिता ने बताया वो काँगड़ा मेरे भाई के पास शेफ़ बनने का काम सीखने गया है । ख़ैर साल बीतते स्कूल छूट गया और मैं कालेज चली गई । चार साल के बाद रक्षा बंधन का वो दिन मेरे लिए ख़ास बन कर आया ।बहुत तेज़ तूफ़ान और बारिश और अचानक ज़ोर से दरवाज़े पर खटखटाहट हुई ।जब दरवाज़ा खोला तो  बारिश में भीगा लम्बे क़द का नौजवान लड़का खड़ा था । पापा को देखते ही उसने चरण स्पर्श किये । वो आकर मेरे सामने आकर खड़ा हो गया और बोला दीदी पहचान मुझे ?? मैं अवाक् सी उसे देखती रही ये वो एक दम बदल गया था ।

 चेहरे पर मूँछ दाड़ी भी आ गई थी । फिर कहने लगा दीदी मैं शेफ़ बन गया और सीधा काँगड़ा से आ रहा हूँ । आज रक्षा बंधन का दिन है । मैं सबसे पहले आपसे राखी बँधवा कर अपनी ख़ुशी को बाँटना चाहता था तो सीधा पहले मैं यहाँ आ गया । सभी हैरान थे कि ये कौन है , लेकिन पापा ने पहचान लिया । उसे बड़े प्यार से बिठाया उसका सारा हाल पूछा । चाय पीकर कहने लगा दीदी राखी बांध दो । मेरी बहनें भी मेरा इन्तज़ार कर रही होगी । 

मैं भी असमंजस में पड़ गई ये राखी बांधने की बात कर रहा है । मेरे पास तो राखी है ही नहीं,राखी इस वक़्त कहाँ से लाऊँ ? मेरी दुविधा देखकर उसने मेरे आगे राखी और मिठाई का डिब्बा दोनों बढ़ा दिये । बड़े प्यार से बोला …दीदी मैं आज सब इन्तज़ाम करके लाया हूँ । सच में उस दिन मैं पुरी तरह भावुकता से भर गई।जब पहली बार किसी की कलाई पर राखी बांधी । उसके इस निश्छल प्रेम से मेरा रोम रोम भर गया ।मैं सोच भी नहीं सकती थी जिसे मैं स्कूल ख़त्म होने के साथ ही छोड़ आई थी वो आज भी मेरी बहन कीं छवि को दिल में बसाये हुए हैं । राखी के रिश्ते का ऐसा सम्मान आज भी मेरे दिल को भाव विभोर कर जाता है

स्वरचित रचना

अभिलाषा कक्कड़

 

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