क्या यही प्यार है? – नीरजा कृष्णा

दोपहर की गुनगुनी धूप में वो कुर्सी डलवा कर थोड़ी मस्ती के मूड में आराम कर रही थी, अभी सबको आने में थोड़ी देर थी,उनके होंठों पर अनायास ही गीत मचल उठा था…..जिंदगी प्यार का गीत है, इसको हर दिल को गाना पड़ेगा…..

बहुत ही भावविभोर होकर उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली …ये उनका फ़ुर्सत के समय का प्रिय शगल था…. ये क्या ….ये कौन टपका??

“परनाम मलकिनी जी! ” ये हमारी प्यारी पुष्पा रानी थी। हमारे आउटहाउस में सपरिवार रहती थी, पति दिहाड़ी मजदूर और वो हमारे घर की साजसफाई का काम करती, बहुत अच्छा विश्वासी परिवार….

खुशमिजाज़ तो इतनी कि रोते को हंसा दे,” क्या मलकिनी! आप तो बहुत बढ़िया गातीं हैं! अच्छा अभी सर और दीदीजी को आने में टाइम  है! तनिक देर हम भी  धूप्पा में कमर टिका लें”और धम्म से नीचे घास पर चुपचाप बैठ गई…..

उसकी चुप्पी से वो चौंकी,” अरी पुष्पा! आज कुछ उदास दिख रही है! कुछ बात है, वर्ना तू तो बकर बकर करके जान ही खा जाती है।”

“बात क्या  होगी मलकिनी, वोही पुराना राग!  अब तो हम भी परेशान हो गए हैं।”

“क्या पहेलियां बुझी रही है, साफ़ साफ़ बोल ! क्या हो गया! राधे ने कुछ कह दिया क्या?”

“ना मलकिनी ना! वो क्या कहेगा, वो तो प्यार से सीधे हाथ ही उठा लेता है! आज भी तरकारी में तेल मसाला कम डाला था, पसंद नही आई सो चिढ़ गया।”

वो चिढ़ कर बोलीं ,”और इतनी सी बात पर तू पिट गई! उस दिन ‘थप्पड़’ फ़िल्म दिखाई थी ना।”

” अरे ना मलकिनी! उसी का असर था सो हमारे मुख से निकल गया कि मुँह  से चाहे जितने चाबुक मार ले पर हाथ ना उठाना अब! बस परसी थाली खिसका कर निकल गया।”

“बहुत सही किया तूने! थोड़ी देर में आकर खा लेगा, जाएगा कहाँ?”

‘हम भी यही सोच लिए थे पर मलकिनी उसे चीनी वाली बीमारी है ना,बहुत जानलेवा होती है! बाहर गुमटी पर चीनी वाली चाय सुड़क रहा होगा।”

फिर वो भड़भड़ा कर उठ कर भागी,” जाकर पकड़ कर लाती हूँ! इधर उधर खा लेगा, उसकी तबीयत खराब हो जाएगी।”

“अरी पगली! क्यों इतनी फिक्र करती है उसकी?”

“हमारे सिवा कौन उसका ख्याल करेगा? कभीकभी गुस्से से हाथ उठा देता है पर फिर प्यार भी तो वोही करता है ना।”

नीरजा कृष्णा

पटना

 

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