विरह – अनामिका मिश्रा

कौशल एक पढ़ा-लिखा लड़का था।शहर में उसकी नौकरी लग गई।उसी गांव में एक गांव की लड़की से उसकी शादी हो गई।जिसका नाम था रानी।वो पढ़ी-लिखी नहीं थी और एक साधारण सी लड़की थी। कौशल को वो पसंद नहीं थी, पर पिताजी के दबाव में आकर उसने ये शादी कर ली। कौशल ने उसे अपनाया नहीं था।कुछ दिन बाद वो  शहर चला गया।दो-तीन महीनों में जब वो वापस लौटा तो रानी बहुत खुश हुई। रात को सज संवर कर कमरे में बैठी कौशल की प्रतीक्षा करने लगी।

तभी दरवाज़ा खुला कौशल अंदर आया,रानी मन में उत्साह और व्याकुल हो उसे पीछे से पकड़ लेती है।

पर कौशल ने उसे झिड़क दिया और कहा,”देखो मैं तुम्हें पसंद नहीं करता हूं,पर पिताजी के दबाव में आकर तुमसे शादी किया हूं,मैं जा रहा हूं छत में सोने!”कहकर वो अपना तकिया और चादर लेकर आगे बढ़ने लगा।

तो रानी ने कहा, “ऐसा कब तक चलेगा?”

कौशल ने कहा, “मुझे नहीं पता!”

कह कर वो कमरे से बाहर निकल गया।

रानी रात भर रोती रही, सो ना सकी विरह की आग में तड़पती रही। कौशल के वापस शहर लौटने के बाद,एक दिन रानी अपना सामान ले वापस मायके चली गई,बिना किसी से कुछ कहे। वहां भी वह दुखी रहने लगी।वो अपनी सारी तकलीफ अपनी सहेली को बताती है।

गांव में एक स्कूल खुला था जहां अनपढ़ महिलाओं और पुरुषों को शिक्षित किया जाता था।उसकी सहेली उसे वहां ले गई और उसने वहां अपना नाम लिखा लिया।

रानी दिन रात मेहनत कर पढ़ना लिखना सीख गई थी। फिर मेहनत और लगन से उसने परीक्षाएं पास की।




छह-सात साल की मेहनत और लगन ने उसे शिक्षित बना दिया था। गांव की स्कूल में वो शिक्षिका बन गई। शहर में पढ़ाने के लिए उसने प्रयास किया और शहर में एक विद्यालय में उसे शिक्षिका की नौकरी मिल भी गई । इत्तेफाक से वह वहीं शहर था,जहां कौशल भी नौकरी करता था। वो वहीं रहने लगी,अब वो रानी जो अनपढ़ और साधारण सी थी,काफी बदल गई थी।

एक दिन अचानक उसे प्रधानाध्यापक ने ऑफिस में बुलाया। वो गई तो कौशल को एक बच्चे के साथ देख चौंक गई।

प्रधानाध्यापक ने कहा, “इस बच्चे का दाखिला आपकी कक्षा में हुआ है,आप इसे ले जाकर इसे अपनी कक्षा दिखा दें और सबसे परिचय करवा दें।”

कौशल भी रानी को देख कर चौंक गया,पहले तो पहचानने में उसे लगा,क्या ये वही रानी है,जो गांव में रहती थी, पर उसे यकीन हो गया कि,हां ये वही रानी है।

पर वो रानी और इस रानी में अंतर था।

रानी बच्चे को ले जाने लगी तो,प्रधानाध्यापक ने कहा, “इनके पिता को भी ले जाइए,कौन-कौन सी किताबें चाहिए उनके नाम इन्हें दे दीजिए।”

रानी तो हक्की बक्की सी प्रधानाध्यापक को देख रही थी और उसने आंसू को रोक, खुद को संभाल लिया।

दोनों को साथ ले जाते हुए बस यही सोच रही थी कि, “किस जन्म की उसे ये सजा मिली,विरह की आग में तड़प कर 15 वर्ष बिता दिए।”

कौशल ने कुछ कहना चाह पर,रानी ने हाथ जोड़ लिया और सिर्फ अपना काम कर कौशल और उसके बच्चे को विदा किया।

पर कहते हैं ना भगवान एक द्वार बंद करते हैं,तो दूसरी खोल भी देते हैं,वहां कोई था,जो रानी को दिल से चाहने लगा था, और उसे अपनाने को तैयार था,वो भी वहीं पर शिक्षक था,रानी भी तैयार थी उसे अपनाने के लिए,अब सब बदल चुका था और नए रास्ते बन चुके थे रानी के लिए।

स्वरचित अनामिका मिश्रा

झारखंड जमशेदपुर

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