भाग्य विधाता – माधुरी : Moral Stories in hindi

सुबह से रूपा का तीन बार फ़ोन आ चुका था।पिताजी प्लीज़ कुछ तो मदद कर दीजिए ,ताकि बिज़नेस को फिर से शुरू किया जा सके।।आप मदद नही करेंगे तो फिर कौन करेगा।मेरे परिवार पर इस समय बहुत बड़ी मुसीबत आन पड़ी है।

सेठ जी ने झुंझलाकर सेठानी से कहा कि इसको कह दो यहाँ फ़ोन करना बंद करे,स्वयम् ही अपने परिवार के लिए कुछ सोच विचार करें कि इस संकट की घड़ी से कैसे उबरना है।हरेक को अपनी मदद खुद ही करने की आदत होनी चाहिए न कि दूसरों पर निर्भर रहना चाहिए ।

कीर्ति ने भी तो अपने भाग्य का निर्माण खुद ही किया है बह तो सच में ही अपने भाग्य की विधाता बन गई है वरना मैंने तो उसके साथ कोई कसर नहीं छोड़ी थी उसका घमंड तोड़ने मे।

आज अपने पति से कीर्ति की तारीफ़ सुन कर सेठानी को बहुत ख़ुशी हुई।देखो कीर्ति जो कहती थी न कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता खुद ही होता है फिर भगवान भी उन्हीं की मदद करता है जो खुद अपनी मदद करते है।

देखो न आपने उसकी शादी कैसे घर में की थी और आज बह अपनी मेहनत व भाग्य से फ़ूड बिज़नेस चला रही है और तो और उसने अपनी सूझबूझ से अपने उन निठल्ले देवरों को भी काम करना सिखा दिया है।है। उसका पति व उसके देवर तो उसकी पूजा करते हैं। कहते हैं भाभी आप तो हमारी भाग्य विधाता हो।

सेठ वंसीलाल जीकी दो बेटियां थी।एक था नाम रूपा था तो दूसरी का नाम कीर्ति था।रूपा कीरति से एक साल बड़ी थी।सेठजी के पास अपार धन दौलत थी वे अपनी दोनों बेटियों में से रूपा को अधिक प्यार करते थे क्यों कि रूपा सदा ही अपने पिताजी के आगे पीछे घूमती रहती और जव भी सेठ जी उन दोनों बहनों के लिए कोई तोहफ़ा लाते तो रूपा तुरंत कहने लगती कि पिताजी आप ही मेरे भाग्य विधाता हो तभी तो कितनी अच्छी चीज़ें लाकर देते हो ।उधर कीर्ति सेठजी के द्वारा लाए हुए तोहफ़े को अपना भाग्य मानती कहती यह तो मुझे मेरे भाग्य से मिला है आप तो निमित्त मात्र है। सेठ जी कीर्ति के ऐसा कहने पर नाराज़ हो जाते और मन ही मन विचार करते कि इसकी शादी तो किसी ग़रीब घर में ही करनी पड़ेगी फिर देखता हूँ कि कैसे अपने भाग्य से सुख समृद्धि जुटाती है ।

सेठजी को खुशामद व चापलूसी करने वाले लोग अधिक पसंद थे ,इसी कारण वे रूपा को अधिक पसंद करते थे।उनके लाड़ प्यार ने उसको बिगड़ैल बना दिया था ,उसका मन न पढ़ाई में लगता न घर के काम काज में।

घर में समय समय पर पूजा अर्चना करवाते व इसमें शहर के सभी बड़े बड़े लोगों को आमंत्रित करते । महीने में एक दो बार भंडारे का आयोजन भी होता ।शहर मे सेठजी कीं दरियादिली की लोग खूब तारीफ़ करते। वे अपने आप को अपना भाग्य विधाता समझने लगे थे। इससे उनका स्वभाव कुछ घमंडी हो चला था।यदि कोई कहता कि आपके ऊपर भगवान की असीम किरपा हैं तो वे कहते यह सब तो मेरे भाग्य में था इसीलिए मुझे मिला है इसमें भला ईश्वर का क्या योगदान है।यह सोच उनके घमंडी स्वभाव को दर्शाताी थी।

जब रूपा व कीर्ति बड़ी होकर शादी के लायक़ हो गईं तो रूपा की शादी एक अमीर घराने में तय कर दी, रूपा के ससुराल में धन धान्य की कोई कमी नहीं थी ।रूपा के पति का बड़ा बिज़नेस था। रूपा अपने ससुराल में बहुत खुश थी,,जब भी फोन करती ,कहती पिताजी आप तो सच में मेरे भाग्य विधाता हो।

कीर्ति की शादी एक साधारण नौकरी पेशा जिसका नाम राजेश था ,से करदी,राजेश एक किराये के घर में अपने दो छोटे भाइयों के साथ रहता था।उसके दोनों भाई कुछ काम नहीं करते थे,सारा दिन निठल्ले से घूमते रहते। हां उन दोनों में बढ़िया खाना पकाने का हुनर जरूर था। कीर्ति जब शादी के बाद उस घर में पहुंची तो उन दोनों भाइयों ने ही खूब स्वादिष्ट खाना बना कर कीर्ति को खिलाया था। कीर्ति ने सोचा यदि घर में कोई औरत नही है तो शायद खाना जरूर किसी होटल से ही मंगाया होगा। दूसरे दिन राजेश के नौकरी पर जाने पर कीर्ति ने उन दोनों से पूछा कि तुम लोग काम पर क्यों नही गए,तो दोनो ने कहा हम तो काम पर जाते ही नही है। हमें कोई काम आता ही नहीं है।,सिबाय खाना पकाने के।बस कीर्ति ने उसीपल एक निर्णय लिया कि क्या तुम लोग खाना पकाने में मेरी मदद करोगे ,तुम लोगों को अंदाज भी नहीं है कि तुम लोग कितने हुनर बाज हो।आजकल खाना बनाने के हुनर से काफी पैसा कमाया जा सकता है। अब में जो कहती हूं ध्यान से सुनो,बिनोद तुम मार्केट से खरीदारी का काम करोगे, नरेन खाना पकाने में मेरी मदद करेगा। हम अपने आसपास के घरों में व राजेश के ऑफिस में टिफिन सप्लाई का काम करेंगे। उनकी मेहनत रंग लाई और कुछ ही दिनों में उनके टिफिन सप्लाई की संख्या काफ़ी बढ़ गई।खूब पैसा आने लगा तो सबसे पहले उन लोगों ने एक अच्छा सा घर खरीदा।

काम अधिक बढ जाने से राजेश भी अपना नौकरी छोड़ कर इसी काम में मदद करने लगा। अब वे लोग खूब ठाट-बाट की जिंदगी जी रहे थे।

काफ़ी दिन बीतने के बाद सेठानी ने एक दिन सेठजी से कहा कि कि कीर्ति की शादी को काफी समय बीत गया है एक बार जाकर आप उसका हाल तो देख कर आओ कि बह ठीक भी है या उसे किसी चीज की जरूरत तो नहीं है।

सेठजी ने कहा तुम कहती हो तो जाकर मिल आता हूं उसको रही जरूरत की बात से उसे तो बहुत घमंड था न अपने ऊपर व अपने भाग्य पर।जाकर देखता हूं कि अपने भाग्य के भरोसे किस हाल में है।

सेठजी जिस किराए के घर में कीर्ति को छोड़कर गये थे,बहांपहुच कर देखा कि वहां तो ताला लगा था। अड़ोस पड़ोस पूछने पर पता चला कि जो लोग यहां रहते थे किराया पर वे लोग तो अव बहुत बड़े लोग होगया हैं।उनका फूड बिजनेस है जो खूब फल-फूल रहा है।

सेठजी पता पूछते हुए जब कीर्ति के घर पहुंचे तो उसके ठाट-बाट देखकर दंग रह गए।साथ ही उसको गले लगा कर फूट फूट कर रोने लगे।बेटा तू सच ही कहती थी कि हर कोई अपनी किस्मत का भाग्य विधाता स्वयंम ही होता है बस जरूरत है अच्छे काम व मेहनत की। तुझे फलते फूलते देख कर मैं बहुत खुश हूं ।

जब घर बापिस जाकर सेठानी को कीर्ति के बैभवकी बात वताया तो सेठानी तुरंत कहने लगी,कि मुझे आज मेरी सासू जी की कही हुई क़हाबत याद आरही है ।अम्माजी हमेशा कहा करती थी कि रूप की रोबै करम की खाबै।अपनी कीर्ति ने यह पूरी तरह सिद्ध कर दिखाया है।

दोस्तों कोई किसी का भाग्य विधाता नही होता ।किसी के अच्छे कर्म और लगन व मेहनत ही उसे अपना भाग्य विधाता बनाती है। अतः स्वयम ही अपने भाग्य विधाता बने।

# भाग्यविधाता शब्द पर कहानी

स्व रचित व मौलिक

माधुरी

2 thoughts on “भाग्य विधाता – माधुरी : Moral Stories in hindi”

  1. बात रूपा के ऊपर आई संकट की है।कहां कीर्ति के गुण का बखान लेकर बैठ गए रूपा के साथ भी तो कुछ न्याय करिए।जब जरूरत थी तब तो इसे सिर्फ हवाई किले बनाने दिए।और अब जब वो विपदा में पड़ी है तो कीर्ति की कहानी सुना रहे हैं।कैसे मदद को जा सकती है की इसके परिवार वाले बिना एहसान के बोझ तले दबे संकट से बाहर निकल सकें

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