शोभा अपनी बेटी निशा के एमबीबीएस करने के बाद एमडी की काउंसिलिंग के लिए कई जगह उसे लेकर जा रही थी। जहां जहां उसने फार्म भरा हुआ था। निशा के पापा नहीं थे इसलिए मां ही उसे हर जगह ले जा रही थी।आल इंडिया काउंसलिंग के लिए मां बेटी नोएडा गईं थीं ।
वहां से वापस लौट कर वो दिल्ली आईं। मां बेटी की शाम को ही वापसी की ट्रेन थी। वहां शोभा अपनी बड़ी बेटी की सहेली के घर रुकीं थीं। दोपहर में निशा ने बताया कि कल ही दिल्ली एम्स की काउंसिलिंग है पर वहां बहुत कम सीट रहती है, इसलिए वह वहां नहीं जाएगी । बेकार में क्यों रुकना और समय बर्बाद करना।
शोभा ने सुना तो उसे बहुत बुरा लगा। निशा बेटा, तुम यहां तक आ गई हो और अभी समय भी तुम्हारे पास है, फिर तुमने बिना अपना कर्म किये बगैर ही कैसे फैसला कर लिया कि तुम नहीं आ सकती हो। बिना कर्म किये अपनी भाग्य विधाता बन गई हो।
तुमने तो गीता पढ़ी है ना, जिसमें श्री कृष्ण जी ने कहा है कि कर्म करो पर फल की चिंता मत करो। तुमने इंटरव्यू नहीं दिया और स्वयं ही परिणाम भी घोषित कर दिया मेरा चयन कदापि नहीं हो सकता है। तुम वापस हरगिज नहीं जाओगी। कल तुम एम्स जाओगी। मैंने आगे अवकाश नहीं लिया है इसलिए मैं अकेले ही वापस जा रहीं हूं।
शोभा तो उसी दिन चली गई और निशा रुक गई। बाद में उसका चयन कई जगह किया गया पर एम्स से उसका रिजल्ट नहीं आया।
निशा ने मां से कहा,देखा मां, मैं कहती थी ना,केवल दस लोगों को ही मेडिसिन विभाग मिला है। मेरा तो किसी विभाग में नाम ही नहीं है। मां ने कहा, कोई बात नहीं बेटा, हमें इस बात का पछतावा तो नहीं रहेगा कि हमने फेल होने के डर से अपना काम नहीं किया। भाग्य तो हमारा विधाता ही लिखते हैं ना।
निशा अमृतसर मेडिकल हास्पिटल ज्वाइन करने ही वाली थी कि उसको फोन आया फौरन एम्स में पहुंचने का। निशा ने कहा, मुझे नहीं जाना मां। कुछ बताया नहीं और तुरंत आने को कह दिया। पता नहीं क्या बात है,? वह बहुत ही निराश लग रही थी। शोभा मुस्कुरा दी उसे अपने भगवान पर बहुत विश्वास था, उन्होंने जरूर कुछ सोचा होगा तभी तो बुलावा आया है। पता नहीं प्रभु के मन में क्या है? हमारे भाग्य विधाता तो वही हैं।
उसने उसका रिजर्वेशन उसी दिन रात का करवा कर टिकट पकड़ा दिया, तैयारी करो और जाओ। चूंकि फोन पर कुछ बताया नहीं गया तो वह मात्र एक सेट कपड़े लेकर चली गई। जब वहां पहुंची तो काउंसलिंग चल रही थी। शाम को चार बज गए पर उसका नाम नहीं पुकारा गया। उसने अपनी मां से कहा। मां मैं वापस आ रहीं हूं। जैसे ही वह चलने को बाहर आई वैसे ही उसका नाम पुकारा गया। वह निर्विकार भाव से अंदर गई तो उसे बिना कुछ कहे सुने ज्वाइनिंग लेटर थमा दिया गया।आप कल से हास्पिटल ज्वाइन कर सकतीं हैं। निशा की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसकी आंखों में आसूं आ गए। मां से माफी मांगी और कृतज्ञता व्यक्त किया। मां आपके ही कारण और आपकी प्रार्थना के कारण ही ये चमत्कार हुआ। मैं तो सपने में भी सोच नहीं सकती थी कि मुझे यहां एडमिशन आखिरी में मिल जाएगा।
इस तरह निशा ने बखूबी अपना कर्तव्य निभाते हुए एम्स से ही एमडी और सुपर स्पेशियलिटी पूरा किया। एक कान्फ्रेंस में लंदन से आये डॉक्टर्स ने निशा का प्रेजेंटेशन देखा तो उसके काबिलियत पर वहां से पूछताछ करने के बाद उसे वहां से कुछ महीनों के बाद ज्वाईनिंग लेटर वहां के सरकारी अस्पताल के लिए भेजा। जिसे पाकर सब अत्यंत प्रसन्न हुए। क्यों कि निशा की मां अकेली होने के कारण अपना सब कुछ बेचकर बड़ी बेटी के पास चली गई थी। बेटी और दामाद ने अकेले रहने से मना कर दिया और अपने साथ ले गए। वहां उनके दो बच्चों के साथ शोभा का समय बहुत बढ़िया व्यतीत हो रहा था पर छोटी बेटी निशा की चिंता सबको लगी रहती थी वह अकेले इंडिया में रह रही थी। पर अब उसके अचानक लंदन आ जाने से सबकी समस्या हल हो गई वहां से दो ढाई घंटे का रास्ता तय करके निशा हर महीने दो तीन दिन के लिए अपनी मां और बहन से मिलने पहुंच जाती। अब पूरा परिवार खुश था।
एक दिन शोभा अपनी बेटी के बालों को सहलाते हुए बोली, निशा बेटा, अगर तुम मेरा कहना मान कर एम्स में नहीं जाती तो बताओ आज लंदन कैसे पहुंच पाती। बेटा हमें अपना कर्म ईमानदारी और मेहनत तथा धैर्य से करना चाहिए। पहले ही से हमें परिणाम की चिंता नहीं करना चाहिए। हमारा भाग्य तो ऊपर वाला लिखता है,वही हमारा “भाग्य विधाता” है पर यदि हम हाथ में हाथ रखे बैठे रहेंगे इस आशा में कि ऊपर वाला हमारी प्रार्थना जरूर सुनेगा या हमारे भाग्य में ही नहीं लिखा है तो बिना प्रयास किये हमें सफलता कैसे प्राप्त होगी। क्यों कि भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं जो स्वयं अपनी मदद करते हैं, ईमानदारी से पूरा प्रयास करते हैं।
सुषमा यादव पेरिस से
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित