बेटे के त्याग ने माता-पिता को नवजीवन दिया – नीतिका गुप्ता

मां जी,, क्या मैं दिवाली के लिए घर की साफ सफाई कर दूं ?? शांति बाई ने हिचकते हुए पूछा

 

शांति अब किसी साफ सफाई की जरूरत नहीं है,, अब इस घर में कभी दिवाली नहीं मनाई जाएगी , जिस घर का इकलौता चिराग बुझ गया वहां अब दियों से क्या रोशनी हो पाएगी,, तुम जाओ और यह लो कुछ रुपए अपने बच्चों के लिए कपड़े और मिठाईयां खरीद लेना,, उर्मिला जी ने खिड़की के बाहर देखते हुए शांति बाई से कहा और मेज पर रखे हुए पैसों की तरफ इशारा किया।

 

उर्मिला जी और रमाकांत जी का इकलौता बेटा कुछ महीनों पहले कार एक्सीडेंट में भगवान को प्यारा हो गया तब से वे दोनों पति पत्नी अपने जीवन की संध्या की राह देख रहे हैं।

 

दिवाली की रात रमाकांत जी टीवी पर न्यूज़ देख रहे हैं और उर्मिला जी मेज पर खाना लगा रही हैं ,, दरवाजे की घंटी बजती है,,

 

आज कौन आ गया,, कहते हुए रमाकांत जी दरवाजा खोलते हैं और आए हुए मेहमान को देखते ही रह जाते हैं।

 

अरे कौन आया है दरवाजे पर,, आप अंदर क्यों नहीं आ रहे हो,, जवाब ना पाकर उर्मिला जी भी दरवाजे की तरफ जाती हैं और वह भी आए हुए मेहमान को देखकर वहीं ठिठक जाती हैं ।

 

अगर आप लोगों को बुरा ना लगे तो क्या हम अंदर आ सकते हैं,, दरवाजे पर आया हुआ मेहमान अनुज कहता है।

 



हां बेटा आप सब अंदर आओ,, रमाकांत जी अनुज, उसकी पत्नी मोहिनी और उनके ५ साल के बेटे सोहम को अंदर लेकर आते हैं।

उर्मिला जी अनुज को देखे ही जा रहीं हैं,, अनुज वही है जिसे उनके बेटे का दिल दिया गया है,,

उर्मिला जी के बेटे ने अपनी मृत्यु से पहले अपनी आंखें और अपना दिल दान कर दिया था उसके इस अनमोल त्याग के कारण अनुज को नवजीवन मिल गया।

 

बेटा आप लोग यहां कैसे,, रमाकांत जी ने पूछा

 

अंकल मेरे मम्मी पापा की कुछ साल पहले मृत्यु हो चुकी है,, मेरे दिल को माता पिता की जरूरत है इसीलिए मैं अपने परिवार के साथ आपके पास दिवाली मनाने आया हूं,, अगर आप लोगों को कोई आपत्ति ना हो,, अनुज ने हिचकते हुए कहा।

 

अनुज को सुनकर उर्मिला जी को महसूस हुआ उनका बेटा वापस आ गया है,, उन्होंने हाथ बढ़ाकर अनुज की बलाएं लीं और उसके सीने पर हाथ रखा तो जैसे उन्हें सुनाई दिया… मां आज दिवाली है तुमने मेरी पसंदीदा मिठाई नहीं बनाई क्या..?? उर्मिला जी फूट-फूट कर रोने लगीं।

 

आज पहली बार उर्मिला जी इतना रो रही थीं… अनुज ने उन्हें चुप कराना चाहा लेकिन रमाकांत जी ने इशारे से मना कर दिया क्योंकि उर्मिला जी  के दिल का गुबार निकलना जरूरी था।

 

कुछ मिनटों के बाद रमाकांत जी ने कहा ,,अरे बेटे के साथ-साथ बहू और पोता भी तो घर आए हैं उनका स्वागत नहीं करोगी जाओ कुछ अच्छा सा खाना बनाओ सबके लिए।

 

दिवाली की वह रात सभी के लिए खुशियों भरी रात थी क्योंकि एक माता पिता को उनका खोया हुआ बेटा और एक बेटे को माता-पिता मिल गए थे।

 

दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो अपने किसी अंग के खराब होने के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं और उनके परिवार उजड़ जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने अंग दान करके किसी एक का नहीं कई लोगों को जीवन बचा सकते हैं इसीलिए कहा जाता है कि अंग दान महादान है हम सभी को इसके बारे में सोचना चाहिए।

 

#त्याग

 

आपके विचारों की प्रतीक्षा में

         नीतिका गुप्ता

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