नूरी भाभी – संगीता त्रिपाठी : Hindi kahani online

मुझे बचपन की नूरी भाभी याद आ गई। मै सोचती हूँ क्या सच में कोई इतना त्यागशील हो सकता। स्त्री तो त्याग की मूरत होती है पर पुरुष भी कम नहीं होते, बस उनका त्याग दिखता कम है। आइये नूरी भाभी की कहानी की ओर चलते है।

             एक अलसुबह ऑंखें खुली तो पड़ोस का घर कुछ आबाद दिखा। एक पति -पत्नी और दो -तीन साल की एक बेटी,। मन निराशा से भर उठा, मेरे बराबर तो कोई लड़की नहीं है इनके घर।

दस साल की मै यानि सुमन मायूस हो गई। पर तभी महिला की निगाहें मुझ पर पड़ी, एक प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ आवाज आई -क्या नाम है तुम्हारा..। मैंने बेजारी से जवाब दिया -सुमन,

बड़ा प्यारा नाम है तुम्हारा, उन्होंने कहा, पर मेरा बाल मन तो अपना कोई साथी ढ़ूढ़ने का यत्न कर रहा था।”थैंक यू आंटी..। ना तुम मुझे नूरी भाभी कह कर बुलाया करो… उनका आग्रह मैंने स्वीकार कर लिया।

अक्सर वो मुझे बुला लेती थी।कुछ दिनों बाद उन्होंने बताया उनकी एक ननद भी मेरे बराबर है।मै उनके पीछे पड़ गई आप उसको बुलवा लो…।नूरी भाभी घर में रहती थी और भैया एक कॉलेज के ऑफिस में कार्य करते थे।

             एक दिन उन्होंने बताया -सुमन तुम्हारे लिये मै सहेली बुला रही हूँ, मोहल्ले में मै छोटी थी, मेरे बराबर बच्चे ना के बराबर थे। अम्मा खेलने के लिये कहीं दूर जाने नहीं देती थी, अतः मै नूरी भाभी से ये सुनकर बहुत खुश हो गई।प्रतीक्षा करने लगी,

एक सुबह नूरी भाभी का घर, सात -आठ लोगों से भरा दिखा। दो बैडरूम वाले उनके घर में इतने लोगों को देख मै आश्चर्यचकित थी।

अम्मा से पूछा -नूरी भाभी के घर सिर्फ दो कमरे है इतने लोग कैसे रहेंगे। अम्मा हँस कर बोली” दिल में जगह होनी चाहिए,कमरे भले कम हो “। मै उस समय अम्मा की बात का मर्म नहीं समझ पाई थी। पर बाद में उनकी कथन का सार समझ में आया।


           खैर नूरी भाभी ने मुझे बुला कर, मेरी दोस्ती अपनी ननद गुड़िया से करवा दिया। दुनिया से बेखबर हमारी दोस्ती परवान चढ़ती गई,और हम कब बड़े हो गये पता ही नहीं चला।किशोरवस्था वैसे भी बड़ी जिज्ञासु अवस्था होती है।

एक दिन गुड़िया बोली -हमलोग बीच वाले भाई के घर शिफ्ट हो रहे। मै समझ नहीं पाई, जब यहाँ सब ठीक है तो दूसरी जगह जाने की क्या जरूरत है। पर गुड़िया ने बताया नूरी भाभी अच्छी नहीं है, इसलिये हमलोग अब यहाँ नहीं रहेंगे।

जिस नूरी भाभी ने,ससुर के ना रहने पर पांच ननद और देवर को अपने आंचल में पनाह दिया, वही देवर ने पढ़ -लिख कर अच्छी जगह नौकरी लगने पर भाभी की मदद के बजाय अलग घर ले लिया।नूरी भाभी ने सिर्फ अपने छोटे ननद -देवर को ही नहीं बल्कि बड़ी तलाकशुदा नन्द और उनके दो बच्चों को भी पनाह दिया था।

छप्पन भोग नहीं खिला पाती थी पर दाल -रोटी इज्जत के साथ सबको मिलता था। पर सहज रूप से मिलने वाली चीज के पीछे का त्याग हमें नहीं दिखता, वही नूरी भाभी का भी हाल हुआ। सब पढ़ -लिख कर अपने पैरों पर खड़े होते ही अलग हो गये।

रह गई अपनी असंख्य अधूरी ख्वाईशो के साथ नूरी भाभी..।नूरी भाभी ने कम आय में भी सबको साथ लेकर चली पर बाकी लोग ज्यादा आय होने पर भी उनको छोड़ दिये, जिन्होंने उन सब को खड़े होने की जमीन दी।उन्ही लोगों ने उन्हें ही अपशब्द कहा।

       अब तक मै बड़ी हो गई थी, भाभी की तीन लड़कियाँ हो गई थी।भाभी की उम्र ढल रही थी, बालों में सफेदी नजर आने लगी, फिर भी भाभी मुझे और मेरे घर के लोगों को बहुत खूबसूरत लगती थी।

एक बार मेरे बहुत पूछने पर, आपके मायके से कोई नहीं आता क्यों…? भाभी उदास हो गई। जो बताया मै हैरान रह गई। नूरी भाभी ने अजहर भैया से प्रेम विवाह किया। आर्थिक स्थिति का अंतर होने से नूरी भाभी के परिवार वाले अजहर भैया के साथ शादी के लिये तैयार नहीं थे। नूरी भाभी ने अजहर भैया से भाग कर शादी की थी।

कहाँ शहर के रईस परिवार की नूरी भाभी और कहाँ एक निम्न मध्ययवर्गीय परिवार के अजहर भैया…. पर त्याग की मूरत नूरी भाभी ने अपने प्यार के लिये ऐशो -आराम की जिंदगी और नाते -रिश्ते का त्याग कर अपने प्रेम का साथ दिया।

कितनी भी आर्थिक कष्ट आये पर नूरी भाभी ने उफ़्फ़ भी नहीं किया। उनकी प्रेम की पराकाष्ठा थी कि अजहर भैया के परिवार को भी सँभालने में पीछे नहीं हटी।भले ही सबने अपना मुकाम पाने के बाद उन्हें भुला दिया।



           भैया से उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, तीन लड़कियों के बाद, उनकी सेहत अच्छी नहीं रह गई थी।

घरवालों के लिये चौथी बार भी माँ बनने को तैयार हो गई, जबकि उनकी सेहत, अच्छे खानपान के बिना कमजोर हो चुका था पर अपने मजबूत आत्मशक्ति की वजह से चौथी बार बेटे की माँ बन गई थी, पर सेहत काफी गिर गई थी।फिर भी उनकी मुस्कान में कोई अंतर नहीं आया।

हाँ अजहर भैया को कभी -कभी बहुत दुख होता है, उनकी वजह से नूरी भाभी को इतना कष्ट झेलना पड़ रहा।

          यथा समय मेरी भी शादी हो गई, मै जब मायके आती तो नूरी भाभी से जरूर मिलती। उनकी सेहत और धन दोनों ही दिन प्रतिदिन उनका साथ छोड़ रहे थे पर हौसलों का साथ उन्होंने नहीं छोड़ा।

     पिछली बार जब मै मायके आई तो माँ से नूरी भाभी के घर जाने को कहा, माँ की आँखों में आँसू झिलमिला उठे, मेरा मन आशंका से कांप गया। माँ ने बताया कुछ महीने पहले नूरी भाभी नहीं रही, आखिर जिंदगी की कठिनाइयों से संघर्ष करते -करते वो जिंदगी से हार गई।

भैया से मिलने गई तो वे बेहद खामोश हो गये। रसोई में बड़ी बेटी मोना बैठी रोटी बना रही थी, वही मोना जिसे मैंने दो -तीन साल का देखा था, आज शादी के इंतजार में बैठी है।घर में पसरे सन्नाटे ने मुझे विचलित कर दिया।

       मै घर लौट आई, क्या त्याग करने वाले का महत्व कोई नहीं समझ पाता। मन में निर्णय ले, मैंने नूरी भाभी की दोनों लड़कियों को प्रोफेशनल कोर्स करा, एक को बुटीक दूसरे को ब्यूटी -पार्लर खुलवा आत्मनिर्भर बनवा दिया।

जिस दिन नूरी भाभी की छोटी बेटी के ब्यूटी पार्लर का उद्घाटन था। लगा ऊपर से नूरी भाभी हँसते हुये देख रही थी। सबकुछ का त्याग हो गया था उनके जीवन में पर अपनी जीवंत मुस्कुराहट नहीं त्याग पाई थी।

#त्याग 

                    …. संगीता त्रिपाठी 

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