बावर्ची – संगीता त्रिपाठी

मालिनी का रो -रो कर बुरा हाल था, मयंक की कुछ खबर नहीं…, कल रात से मयंक गायब था,जाने कहाँ चला गया, किसी को भी कुछ बता कर नहीं गया…सुबह.,उसके दोस्तों से पूछा उनको भी कुछ पता नहीं..।

    मालिनी और अवध जी.. पहली संतान पुत्र मयंक को पाकर फूले ना समाते, उनकी आँखों में बेटे के लिये ढेरों सपने पलने लगे….। अवध जी खुद अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़े थे, और एक सरकारी महकमे में इंजीनियर थे ..। अपनी तरह वे मयंक को भी इंजीनियर बनाना चाहते थे ..। मयंक के ठीक तीन साल बाद मालिनी जी ने एक कन्या माही को जन्म दिया…। बेटा -बेटी पाकर दोनों बहुत खुश थे परिवार सम्पूर्ण हो गया..।

     माही पढ़ने में ज्यादा तेज थी वही मयंक पढ़ाई में थोड़ा कमजोर था..। मैथ्स से बहुत घबराता था। छोटी क्लास में रट कर पास हो गया, मगर बड़ी क्लास में मयंक बहुत परेशान हो जाता था, लाख कोशिश करता मैथ्स के सवालों से जूझने का, पार बड़ी मुश्किल से होता..।हाँ मयंक को खाना बनाने में बहुत दिलचस्पी थी, पर मालिनी जी उसे रसोई में पैर ना रखने देती…।

   जब मालिनी जी घर में नहीं होती तो मयंक नई रेसिपी को यू -ट्यूब देखकर बनाता और माही को खिलता ..।

    “वाओ… भाई . आपके हाथ में क्या स्वाद है…, आप होटल में शेफ बन जाओ… लोग आपके बनाएं खाने के दीवाने हो जायेंगे…”माही चटकारे ले कर खाते हुये भाई का हौंसला- अफजाई करती…।

   ” माही पांच सितारा होटल में शेफ बनना मेरा सपना है…तू जानती है ना, पापा कभी नहीं मानेंगे, वे मुझे इंजीनियर बना कर दम लेंगे, मै उनके सपनें को तोड़ना नहीं चाहता, पर क्या करू, मुझे मैथ ना तो समझ में आती, ना इंट्रेस्ट आता ..”निराश स्वर में मयंक ने बहन से अपना दर्द बांटा…।




    “भाई, आप एक बार माँ से बात करके देखो, वो जरूर आपकी बात समझेंगी, पापा को भी मना लेंगी,”माही ने मयंक को सुझाव दिया..।

 दसवीं करने के बाद मयंक ने बड़ी हिम्मत कर मालिनी जी से बोला, “माँ, मुझे मैथ नहीं पढ़नी,वैसे भी मुझे इंजीनियर नहीं बनना है, मुझे तो होटल मैनेजमेंट करना है, जिससे मै बड़े होटलों में नौकरी पा सकूँ…”

   मयंक के इतना कहते ही पीछे खड़े अवध जी आग बबूला हो उठे, “एक इंजीनियर का बेटा होकर तू बावर्ची बनना चाहता है,…., ख़बरदार जो इन सबके बारे में सोचा..”गुस्से में अवध जी वहाँ से चले गये, मालिनी ने भी मयंक को डांट लगाई…। बुझे मन से मयंक अपने कमरे में आ गया .।

       बारहवीं में ट्यूशन पढ़ने के बावजूद, मयंक फेल हो गया, मालिनी और अवध जी के गुस्से का शिकार बन, चुप रहने लगा…। मालिनी जी को लगा, शायद मयंक को सद्बुद्धि आ गई ..,, मयंक रात दिन मैथ पढता था, मालिनी जी बीच -बीच में जा कर मयंक को देख आती…। पर तूफ़ाँ की आहट वो सुन नहीं पाई ..।

      दो बजे रात जब वे उठ कर मयंक के कमरे में गई तो मयंक कमरे में नहीं था, उन्होंने सोचा शायद बाथरूम गया होगा, वे वही बैठ कर मयंक की प्रतीक्षा करने लगी, एक घंटा… हो गया, मयंक नहीं आया तो बाथरूम जा कर देखी, वहाँ भी कोई नहीं था..। मालिनी घबरा गई,अपने कमरे में जा अवध जी को बताया …, माही को जगा कर पूछा गया पर माही को भी कुछ पता नहीं….।

    घर का हर कोना और कमरा छान मारा, मयंक नहीं मिला ..। मालिनी जी का रो -रो कर बुरा हाल था, अवध जी को कहती “मेरे बच्चे को ढूढ़ कर ले आइये..”




      तभी माही, मयंक के कमरे से एक पेपर ले कर आई “माँ देखो भाई ने कुछ लिखा है…”

    अवध जी ने पेपर ले कर पढ़ना शुरु किया “मम्मी -पापा, मुझे माफ करियेगा, मै आपका सपना पूरा नहीं कर पा रहा हूँ… मैथ्स मेरे सर के ऊपर से निकल जा रहा, मै लाख कोशिश करता हूँ फिर भी दिमाग में सब गड़बड़ हो जाता है, मै इतना तनाव नहीं झेल पा रहा हूँ, इसलिये जा रहा हूँ… पापा माही की मैथ्स बहुत अच्छी है, वो आपका सपना जरूर पूरा करेंगी ..आपका -मयंक….,पत्र की फैली स्याही बता रही थी मयंक के आँसुओं की कहानी …।

 किसी अनहोनी की आशंका से,अब तक संयम रखें अवध जी भी भरभरा उठे, सर पकड़ कर वही बैठ गये, ये देख मालिनी अपना रोना भूल भाग कर पानी लाई, अवध जी का हाथ पकड़ मालिश करने लगी, थोड़ी देर में अवध जी की चेतना लौटी .. पुलिस स्टेशन गये और मयंक की गुमशुदा होने की रिपोर्ट लिखा आये ..

   सुबह हो गई पर मालिनी जी के घर में एक सन्नाटा था, पड़ोसयों को भी खबर हो गई, सब आते, सहानुभूति जता चले जाते … कुछ लफ्ज हवा में तैरते अवध जी के कानों में भी पड़े…”बेटे को इतना डरा कर रखा था, तभी तो भाग गया, इतने क्रूर पिता के साथ कौन सा बच्चा रहेगा…, अरे बच्चे का भी तो कोई सपना होगा…, पर नहीं पिता है तो अपनी हिटलरबाजी दिखाएंगे ही .. लो भुगतो…..”

     अवध जी के आँखों से आँसू बह निकले ., सच ही तो कहा …।रात हो चली…।

     घंटी की तेज आवाज से उनकी तंद्रा टूटी, शून्य में देखती मालिनी की ओर देख वे दरवाजा खोलने चले गये … अचानक मालिनी भागती हुई आई “मेरा मयंक आया होगा…”उसे पीछे कर अवध जी ने दरवाजा खोला….

    दरवाजे पर पुलिस थी, अनहोनी की आशंका से अवध जी कांप गये, ऑंखें बंद कर ली,इस्पेक्टर ने उनके कंधे पर हाथ रख कहा “ये रेलवे -स्टेशन पर कोने में बैठा हुआ मिला था ..”

    ऑंखें खोल कर देखा, सूखे मुँह और बिखरे बालों में मयंक सामने खड़ा था …। बेटे को सामने सही सलामत पा अवध जी बिलख पड़े, “माफ कर दें बेटा… मै अपने सपने और गुरुर में भूल गया, तेरे अपने सपनें और अपनी क्षमता भी होगी .., नाम कामना हो तो किसी भी क्षेत्र में कमा सकते है… कोई काम छोटा और बड़ा नहीं होता है…”




     “मुझे माफ कर दो पापा…”इतनी देर बाद मयंक के बोल फूटे ..। मालिनी जी उसको पकड़ कर थप्पड़ मारते हुये बोली “तुझे एक बार भी ख्याल नहीं आया, तेरे बिना हम कैसे रहेंगे …”

     सब एक दूसरे को पकड़ रो रहे थे, बाहर अंधेरा घना हो रहा था पर घर के अंदर खुशियों की उजास से रोशनी बिखरी थी …।

       समय बीता .. मयंक होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर एक पांच सितारा होटल में काम कर रहा था, उसकी बनाई डिशेज, देश में ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध हो गई थी।

     बेटे की शोहरत देख मालिनी जी और अवध फुले ना समाते….।अवध जी प्यार से मयंक को बावर्ची बुलाते…।

    दोस्तों, हम माँ -बाप… कभी कहीं गलत हो जाते … अपने सपने बच्चों में देखने में भूल जाते हर बच्चा अलग होता है साथ ही उसकी क्षमता और शौक भी अलग होता है, फिर हम क्यों बच्चे को दबाव में जीने को मजबूर करते है….., बच्चों की क्षमता पहचाने, उसके अनुरूप उनके सपनों को पँख दें…।

                 —=संगीता त्रिपाठी 

               (स्वरचित और मौलिक )

   #माफ़ी 

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