बस अब और नहीं – शिव कुमारी शुक्ला : Moral stories in hindi

सात बजने को आये जूही अभी तक नहीं उठी थी घर में कोहराम सा मचा था। साथ ही पुष्पा जी चिल्ला रहीं थीं  कि महारानी की नींद नहीं हुई अभी तक आराम से सोई पड़ी है कब से चाय के लिए बैठे हैं। बच्चे अलग खुसर फुसर कर रहे थे  कि मम्मी अभी तक नहीं उठीं है   कब टिफीन बनेगा नाश्ता  भी नहीं  बना है बस का टाइम हो गया ।कालेज जाते  नन्द एवं देवर भी बोल रहे थे आज भाभी  नहीं उठीं ,कब नाश्ता मिलेगा । सबकी आवाजें सुन जय  जो पेपर पढ़ रहा  था

उठा और सीधा कमरे में गया और जूही को सोते देख गुस्से से चीखा बन्द करो  अपना ये सोने का  नाटक। अब उठ भी जाओ मां-पापा चाय के लिए बैठे हैं नाश्ते का समय हो गया। जूही ने आँखे खोलने की कोशिश की किन्तु वह खुल ही नहीं रहीं थीं। वह वापस बन्द  हो गई। जय को लगा कि यह उठना नहीं चाह रही। जोर से बोला क्या है अब उठ भी जाओ यह कहते  उसने जैसे ही जूही को हाथ पकड कर उठाना चाहा जैसे उसे करंट लग गया। जूही का हाथ धधक रहा था। उसने माथा छुआ उसे तेज बुखार था। वह अर्धमूच्छित सी हो रही थी। तभी बाहर से माँ की तेज आवाज आई अभी तक महारानी का सोने का नाटक  खत्म नहीं हुआ। तभी जय बदहवास सा कमरे से बाहर विकला। 

माँ क्या आज महारानी भांग खाकर  सोई है जो उठने  का नाम ही नहीं ले रही।

 जय एक दम चीख पड़ा चुप हो जाओ मां जूही को तेज बुखार है वह उठ नहीं पा रही है। 

माँ बोली बेटा  कुछ नहीं है काम से बचने के लिए सब नाटक कर रही है।

 माँ बस  भी करो जूही बेहोश है और तुम्हे नाटक लग रहा है।

बहन सीमा से बोला तुम मम्मी के साथ मिलकर नाश्ता बनाओ और भाई विजय से बोला तुम  बच्चों को बस पर छोड़ कर आओ। मैं  जूही को लेकर अस्पताल जा रहा हूं । तभी एम्बुलेंस सायरन बजाती  दरवाजे पर आ गई जय ने पहले ही फोन कर दिया था। मुश्किल से जूही को एम्बुलेंस में लिटाया और रवाना हो गया। 

अस्पताल में पहुँच कर तुरन्त इमर्जेन्सी में एडमिट किया ।डॉक्टर ने जाँच करने के बाद ईलाज चालू कर दिया। 

जय क्या हुआ है डाक्टर साहब कोई खतरा तो नहीं।

 डाक्टर बोले- फिलहाल तो समय पर इलाज मिलने से खतरा टल गया  पर आगे आपको सावधानी रखनी होगी। मरीज बहुत कमजोर है अत्यधिक काम एवं स्ट्रेस की बजह से इनकी यह हालत हो गई। ये अपने खाने पीने  का ध्यान भी नही रखती। आप इनका खाने पीने  का ध्यान रखें पौष्टिक  खाना  खिलायें और कम से कम  एक माह  तक बेड रेस्ट पर रखें। और ध्यान रखें कि इन्हें किसी तरह का स्ट्रैस न हो स्ट्रैस से दिल दौरा भी पड़ सकता है। जय सुन कर अवाक रह गया।

जूहि कब से इतनी बीमार है, उसने मुझे कभी क्यों नहीं बताया। या कभी मेरे पास उसकी बात सुनने का समय ही नहीं था। में तो सोचता था कि वह अपनी घर गृहस्थी में मस्त है मुझे क्या  पता वह क्या-क्या झेल रही थी। गलती तो मेरी ही है जो मैने उसे ऐसे एकदम अकेला छोड दिया। माँ तो कितना परेशान करती हैं। पर मैंने कभी नहीं पूछा,  न जानना चाहा कि उसकी परेशानी क्या है। जो हुआ सो हुआ पर अब मैं अपनी जूही का पूरा ध्यान रखूंगा। पांच दिन अस्पताल में रह कर जूही घर आगई सास, नन्द, देवर सब तैयार बैठे थे कि कब जूही आये और उन्हें घर के कामों से छुट्टी मिले। पर ये क्या भैया ने तो भाभी को उनके कमरे में जाकर लेटा दिया।

सीमा चाय बनाओ जूही को दवा देनी है। सीमा मुँह बनाती चाय बनाने चली गई। चाय – विस्किट लेकर आई, पर उसने एक बार भी नहीं पूछा कि तबियत कैसी है।

ये लोग अभी भी सोच रहे थे कि दवा खाकर वह नाश्ता बनाने आ जाएगी। जय कमरे से बाहर आकर  बोला मां नाश्ता बनाओ बच्चों का टिफीन भी तैयार करो देर हो जाएगी।

तभी सीमा बोली हम से नहीं होता ये सब भाभी को बोलो बनाने को।

यह सुन जय गुस्से से उबल पडा बोला जूही नहीं  उठेगी। उसे डाक्टर ने एक माह का बेड रेस्ट बताया हे सो वह काम नहीं करेगी।

माँ- क्या एक माह तक काम नही करेगी कौन सम्हलेगा उसे काम भी करो और बहू की सेवा भी करो।

विजय बोला वाह भैया भाभी की जरा सी तवियत क्या खराब हो गई आपने तो उन्हें आराम से लिटा दिया अब हम सब कब तक काम करेंगे।

सीमा बोली कुछ नहीं हुआ है यह तो भाभी को काम से बचने के लिए नाटक कर रही है,भैया बन्द करवाओ यह सब नाटक     आप बोलो,देखें कैसे काम नहीं करती हैं। 

भाई-बहन की बात  सुनकर जय सन्न रह गया ,और माँ भी उन्हें नहीं रोक रही थी। अब वह चुप नहीं रहा बोला अब मेरी समझ में आ गया जूही की यह हालत क्यों हुई जब तुम मेरे से इतना बोल सकते हो तो उसे तो कितना परेशान करते होगे, तुम्हीं लोगों ने उसे मौत के मुंह में पहुँचा दिया। अब वह तुम लोगों का काम नहीं करेगी ।सब बडे हो अपने अपने काम खुद करोगे। माँ आप भी सुबह अपनी और पापा की चाय खुद बनायेंगीं अभी इतनी भी बूढी नहीं हुई हैं आप।

तभी ससुर  जी जो चुपचाप बैठे-बैठे सुन रहे थे बोले आठ-आठ आदमियों का काम वेचारी उस बच्ची पर अकेले पर डाल दिया तो यह तो होना ही था में हमेशा तुम्हारी माँ से कहता था चाय तुम बनालो, बहू की किचन में कुछ मादद कर दो, बच्चों को ही तैयार कर दो किन्तु नहीं, उन्हें तो  रौबदार सास बनने का भूत सवार था। तुम नहीं जाती तो सीमा को ही कह दो किन्तु नहीं  बच्चों को भी उस पर निर्भर कर दिया वह भी इंसान है कितना सहन करती। 

पापा जो हुआ सो हुआ अब से मैं उसकी मदद करुंगा। अभी बह बहुत कमजोर है उठ भी नही पा रही सो वह कोई काम नहीं करेगी । मैंने छुट्टी ले ली है में  खुद उसकी देखभाल करूंगा अन्यथा मैं उसे खो दूंगा और मैं उसे खोना नहीं चाहता। घर में मुझे किसी पर विश्वास नहीं है।

शिव कुमारी शुक्ला

3 thoughts on “बस अब और नहीं – शिव कुमारी शुक्ला : Moral stories in hindi”

  1. देर आई दुरुस्त आई।चल शुरू कर दे पढ़ाई।कभी दूरदर्शन पर बुजुर्गों की शिक्षा पर ये एक एड देखा था।वही यहां भी।बात समय पर समझ आ गई । वरना वो तो चली जाती।मगर इन साहब का जीवन नर्क हो जाता

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