बहू का दर्द नाटक ही लगता है – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

“मम्मी जी, आज मेरा जी मिचला रहा है, और ये रोटी की गंध भी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही है, आप ये रोटियां सेंक दीजिए, मैंने सब्जियां तो बनाकर रख दी है, और सलाद भी तैयार है।” मानसी ने आशा भरी नजरों से अपनी सासू मां को देखकर कहा।

“ओहहह!! फिर से बंद करो अपना ये नाटक, तुम्हें तो रोज कुछ ना कुछ होता ही रहता है, बच्चे मैंने भी पैदा किये है, दस-दस लोगों का सुबह-शाम खाना बनाती थी, पूरे घर का काम करती थी, पर कभी मजाल कि अपनी सास को किसी काम के लिए कहा हो, और तुम हो कि मुझ पर हुकुम चला रही हो, रोटी खाते वक्त तो गंध नहीं आती है, सिर्फ बनाते वक्त ही क्यों आती है।”  चंदा जी ने तेज आवाज में कहा।

मानसी फिर आगे कुछ ना कह सकी और धीरे-धीरे रोटियां बनाती रही, उसने मुंह पर एक सूती रूमाल बांध लिया ताकि वो गंध ना आ सके, अभी उसे पांचवां महीना चल रहा था, दो-तीन दिनों से उसे रोटी की गंध बर्दाश्त नहीं हो रही थी, शारीर का वजन भी बढता जा रहा था, गर्भवती महिलाओं को सिर्फ काम ही करना चाहिए ताकि बच्चा स्वस्थ हो, ऐसा चंदा जी का मानना था, पर वो ये कभी नहीं कहती थी कि थोड़ी थकान महसूस हो तो थोड़ा आराम भी कर लेना चाहिए, यूं तो मानसी घर के सारे काम करती थी बस एक बाई झाड़ू -पौंछे के लिए आती थी, वो सुबह-सुबह कर जाती थी।

उसके अलावा भी घर में सौ काम होते हैं, मानसी के सास-ससुर, पति, देवर के अलावा एक ननद भी है जो अभी कॉलेज की पढ़ाई कर  रही है, चंदा जी उसके लिए भी वर तलाश रही है, कॉलेज पूरा होते ही वो उसकी शादी कर देना चाहती है।

सुबह की चाय, नाश्ते, टिफिन, लंच तक सारा काम मानसी अकेले ही करती थी, फिर कपड़े सुखाने से लेकर उन्हें प्रेस करने की जिम्मेदारी उसी की होती थी, शाम की चाय स्नैक्स से लेकर रात का खाना और बर्तन तक वो खुद ही करती थी।

सारा काम अकेले करके और खड़े रहकर उसके पैरों में सूजन आ गई थी, मानसी की ननद रूचि भी उसकी हमउम्र ही थी, मानसी की मम्मी-पापा की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गई थी तो उसकी चाची ने उसकी जल्दी ही शादी कर दी थी, ताकि ज्यादा पढ़ाई-लिखाई नहीं करवानी पड़े और उनका पैसा भी बच जाएं।

मानसी ऐसी अवस्था में बड़ी ही परेशान रहने लगी थी, पति मोहित को उसकी बात सुनने की फुर्सत नहीं थी, वो अपनी मम्मी के खिलाफ कुछ सुनना भी नहीं चाहता था, वो अपनी परेशानी आखिर किससे कहती, उसकी चाची भी कम ही बात करती थी।

एक दिन  रविवार दोपहर को वो रसोई  में काम कर रही थी, तो थकान और दर्द के मारे उसके आंसू ही निकल गये, जब उसकी ननद रूचि ने देखा तो उसने पूछ लिया, “भाभी आप रो क्यों रहे हो? आपको कोई तकलीफ़ है क्या?’

उस दिन मानसी का सारा गुबार फूट गया, उसने अपनी सारी तकलीफें रूचि को बता दी, रूचि को ये सब सुनकर बहुत दुख हुआ, वो ज्यादातर अपनी पढ़ाई और सहेलियों में व्यस्त रहती थी, और जब भी घर पर रहती तो चंदा जी मानसी के साथ प्यार से बात करती थी।

अगले दिन रूचि कॉलेज नहीं गई, और सिर दर्द का बहाना लेकर लेट गई, चंदा जी ने पूरा घर सिर पर उठा लिया क्योंकि उनकी बेटी के सिर में दर्द जो हो रहा था।

“मम्मी, आप इतनी क्यों परेशान हो रही हो? आखिर सिर दर्द ही तो हो रहा है, मुझे लैपटॉप पर काम करके कॉलेज के असाइनमेंट पूरे करके देने है, वरना मैम मुझे बहुत डांटेगी और अगर मैंने बताया कि मैं सिर दर्द होने की वजह से अपना असाइनमेंट पूरा नहीं कर पाई तो उन्हें लगेगा कि मै दर्द का नाटक कर रही हूं, काम से जी चुरा रही हूं।”

“अरे! तेरी मैम के अंदर जरा सा भी दिल नहीं है क्या? काम कल की जगह परसों जमा करवा देना, कोई इतने दर्द में कैसे काम कर सकता है?” मैम के क्या बच्चे नहीं हैं जो उन्हें बच्चों का दर्द महसूस नहीं होता है।”

तभी मानसी अदरक वाली चाय लेकर आ जाती है, रूचि चाय का घुंट पीकर कहती हैं, “मम्मी, जब भाभी इतने दर्द में अकेले काम कर सकती है तो मेरा तो ये मामूली सिर दर्द है, हमारी मैम के पास तो दिल नहीं है, पर आपके पास तो दिल है जो मेरी छोटी सी बीमारी में पिघल गया, आप तो मां हो आपने तो बच्चों को जन्म दिया है, वो दर्द सिर्फ अपनी ही संतान के प्रति है, आपकी संतान की संतान को जो जन्म देने वाली है, उनके प्रति आपकी ममता और भावनाएं क्यों सो गई है? आप इतनी कठोर कैसे हो सकती है? आज आप मेरे दर्द में मेरी साथी है, पर भाभी के तो मां भी नहीं है, वो अपना दर्द किससे कहें? भाभी का दर्द आपको नाटक ही क्यों लगता है?”

बेटी का दर्द कलेजे में उतरता है और बहू का दर्द नाटक लगता है।”

“आप मुझे तो सिरदर्द में भी इतना आराम करवा रही हो, और भाभी से इतनी तकलीफ़ और दर्द में भी आप काम करवाती हो, उनकी जरा सी भी मदद नहीं करती हो, कल को मेरी सास भी मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार करेगी तो आपको कितना दुःख होगा, भाभी की मम्मी को भी वहां ऊपर दुख हो रहा होगा।”

अपनी बेटी रूचि की बातें सुनकर चंदा जी शर्म से जमीन में गड़ गई, उनकी बेटी ने उनकी आंखें खोल दी, उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया।

“बस कर रूचि, मै इतनी उम्र होने पर भी ये सब नहीं सोच पाई, बहू का दर्द मुझे कभी नजर नहीं आया, पर मै अब ऐसा नहीं करूंगी, मुझसे जितनी मदद हो पायेगी, मै मानसी की मदद करूंगी और उसका दर्द एक बेटी का दर्द समझकर महसूस करूंगी।” मानसी ने अपनी ननद को बहुत धन्यवाद दिया आखिर उसने सगी बहन जैसा फर्ज अदा किया था।

धन्यवाद

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

2 thoughts on “बहू का दर्द नाटक ही लगता है – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi”

  1. अच्छी कहानी है।
    काश ये सब सच में हो। क्यों नहीं हम ये समझ पाते की भगवान ने सब को अलग बनाया है। सब की अलग अलग परेशानी या अनुभव हो सकते हैं। हमारा अनुभव ही हर दूसरे का हो ये संभव नहीं।

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