बड़ी मां – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : संभ्रांत परिवार की बड़ी मां थीं,सुलोचना जी। पुश्तैनी हवेली,खानदानी रईस और समाज में ऊंचा रुतबा।चौधरी खानदान की बहू रानी अब बड़ी मां के नाम से जानी जातीं थीं।पति के गुज़र जाने के बाद से ,पूरे घर व आम के पुश्तैनी व्यापार की देखभाल मनोयोग से करतीं थीं वह।बेटे और बेटी की शादी धूमधाम से की उन्होंने।

अब पूजा-पाठ में ही अधिकतर समय बितातीं थीं।कभी -कभार अपने आम के बागों का निरीक्षण करने जाया करतीं थीं।अपने उसूलों से कभी समझौता ना करने वाली सुलोचना जी की गर्दन हमेशा अकड़ी(ऐंठी)रहती थी।बनारस के गंगा घाट में नित्य गंगा स्नान व विश्वनाथ जी की पूजा उनका नियम था।

बड़ी सी गाड़ी में बैठकर आतीं थीं वो रोज भोर पांच बजे।साथ में होता था ड्राइवर और एक ठकुराइन। ठकुराइन के हांथों में पूजा की थाली,फूल और दान सामग्री रहती थी।सुलोचना जी जात-पात बहुत मानतीं थीं।मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों को दान तो रोज देतीं थीं,पर उन्हें स्पर्श नहीं करती थीं।

सावन लग चुका था,देवालय में अत्यधिक भीड़ होने लगी थी।सावन के पहले सोमवार भोलेनाथ की विशेष पूजा का अनुष्ठान था। मंदिर में प्रवेश करते समय उचटती हुई नजर डालकर गर्दन ऐंठें उन्होंने मंदिर में प्रवेश किया।पूजा समाप्ति पर हर बार की तरह भिखारियों को अन्न व वस्त्र वितरित किए जा रहे थे,सुलोचना जी के द्वारा।यह नेक काम ठकुराइन ही करतीं थीं।

आसमान में काले बादल आते देख ड्राइवर ने चेताया “बड़ी मां जी, जल्दी निकलिए यहां से।बारिश होगी बहुत तेज।तभी एक भिखारी ने आज थोड़ा ज्यादा प्रसाद मांगा।सुलोचना जी की साड़ी के आंचल में धोखे से उसका हांथ छू गया।सुलोचना जी ने हेय दृष्टि से उस भिखारी को देखकर कहा”यही बात पसंद नहीं है हमें।

थोड़ी सी उंगली पकड़ा दो,तो तुम लोग तो सर पर ही चढ़ जाते हो।हमें फिर नहाना पड़ेगा। धर्म भ्रष्ट कर दिया हमारा।”वो बड़बड़ाते हुए अपनी गाड़ी की तरफ मुड़ी ही थीं कि ना जाने कहां से एक बड़ा सा सांड़ आ गया,जो गाड़ी और सुलोचना जी के ठीक बीच में खड़ा हो गया था।

ड्राइवर गाड़ी के अंदर ही था,जैसे ही उसने दरवाजा खोलने की कोशिश की,सांड़ भड़क कर सुलोचना जी के पीछे भागने लगा।देखने वाले लोगों में इतनी हिम्मत किसी के पास नहीं थी कि सांड़ से सुलोचना जी को बचाते।शोर सुनकर आसपास के दुकानदार और अन्य भक्त भी आ गए।सुलोचना जी को लगा कि आज वे नहीं बच पाएंगी उस सांडों से।

तभी वह भिखारी जिसे सुलोचना जी ने इतनी बातें सुनाईं थीं,दौड़ता हुआ आया और सुलोचना जी को धक्का देकर दूसरी दिशा में गिरा दिया।अब सांड़ उस भिखारी के पीछे दौड़ने लगा था।

सामने एक दुकान की दीवार आ जाने से सांड़ ने भिखारी को जमीन में गिराया और लहूलुहान कर दिया।लंबे समय तक दोनों में लड़ाई चलती रही।बड़ी मुश्किल से लोगों ने उस भिखारी को सांड़ के चंगुल से बचाया।

भिखारी मूर्छित हो चुका था। प्रत्यक्षदर्शियों ने सुलोचना जी की गाड़ी में उसे अस्पताल पहुंचाया।खून देना पड़ा उसे,जान बचाने के लिए।सुलोचना जी रुकीं थीं,होश आने तक।जब वह भिखारी को कुछ इनाम देनें गईं ,तो वह भिखारी हंसकर बोला”मां,मुझे ईनाम नहीं चाहिए।बस रोज़ मुझे थोड़ा प्रसाद ज्यादा दे दिया करो।”सुलोचना जी हतप्रभ थीं। उन्होंने आखिरी में पूछा”तुमने मेरी जान बचाने के लिए अपने जान की भी परवाह नहीं की।मैंने तुम्हें कितना सुनाया।”

भिखारी हंसकर बोला”मां,हमारे पास इस जान के सिवाय और कुछ भी नहीं।आप जैसे बड़े लोग ज़िंदा रहेंगे,मंदिर में आते रहेंगे,तो हमारे बच्चों का पेट पलता रहेगा।”

सुलोचना जी ने फिर पूछा”कहीं काम क्यों नहीं करते तुम लोग?”

“मां ,काम पर रखने से पहले पूछ्ते हैं,अनुभव कितना है काम का?हम बता नहीं पाते।ग़रीबी में यह मंदिर और आप जैसे बड़े आदमी ही हमारा सहारा हैं।”

सुलोचना जी को अहसास हो रहा था कि जिस भिखारी से उन्होंने कभी सीधे मुंह बात भी नहीं कि, वही आज उसका रक्षक बन गया।हम अपनी अमीरी पर जीवन भर गर्दन ऐंठी कर इतराते रहे,आज एक भिखारी ने हमारी जान बचाई और वो भी बिना पैसे लिए।भोलेबाबा की लीला अपार है।आज मानो सांड़ भेजकर उन्होंने मेरी मति सुधार दी।

अब ऐंठी गर्दन स्वयं ही झुक गई।भगवान के सम्मुख सभी एक हैं।कोई ना बड़ा और ना ही कोई छोटा।जय भोलेनाथ।

शुभ्रा बैनर्जी

 #गर्दन ऐंठी रखना

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