बेटियों की माँ – वीणा सिंह  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :  बिहार का छोटा सा शहर, जिसे आप कस्बा भी कह सकते हैं… मनोहर लाल जी उनकी पत्नी सुशीला जी और  दो बेटों का परिवार एक साथ रहता था.

    बड़े बेटे के दो बेटे थे लव और कुश और छोटे बेटे की दो बेटियां रुचि और रंजू…

    मनोहर लाल जी का बड़ा बेटा उसी शहर में कपड़े का दुकान किया था और छोटा बेटा कलकत्ता में किसी बड़े होटल में काम करता था.. छुट्टियों में घर आता.. संयुक्त परिवार था.. पर लव कुश की मां को घर में ज्यादा सम्मान मिला था क्योंकि बेटों की मां थी.. इसलिए उनकी गर्दन घमंड से हमेशा ऐंठी रहती.. रुचि और रंजू उन्हें बड़ी अम्मा कहकर बुलाती..

                लव कुश को दादी भी ज्यादा मानती थी.. दूध गाढ़ा कर दोनो को अपने हाथों से देती पर रुचि और रंजू को बर्तन में बचे दूध में पानी मिला खंगाल देती और रंजू की मां को आवाज देकर कहती दोनो का दूध रखा हुआ है.. बेचारी बेटी की मां थी और पति भी दूसरे शहर में थे इसलिए दुःखी होकर सब कुछ बर्दास्त करती.. बड़ी अम्मा के सामने मुहल्ले की औरत रुचि और रंजू की तारीफ कर देती कितनी सुंदर और प्यारी है दोनो तो घमंड से कहती हुंह घी का लड्डू टेढ़ा भला..

                      लव और कुश प्राइवेट स्कूल में बस से पढ़ने जाते, दोनो बहने सरकारी स्कूल में जाने लगी.. लव कुश के मुंह से निकालते उनकी हर फरमाइश पूरी हो जाती.. दादी मक्खन निकालती और अपने हाथों से दोनो को खिलाती.. रुचि और रंजू अगर वहां दिख जाती तो बड़ी अम्मा कहती नजर क्यों लगा रही है.. जा भाग यहां से तुम दोनो खा के क्या करोगी कलक्टर बनना है या बड़का खेत में हल चलाएगी..

                     आसूं भरे दोनो मां के पास आती तो मां छाती से लगा लेती..

                   लव कुश प्लस टू में चले गए थे और रुचि रंजू दसवीं कक्षा में थी.. दोनो को वजीफा मिल रहा था.. स्कूल के शिक्षक शिक्षिका दोनो को स्कूल के बाद या छुट्टी के दिन मुफ्त में पढ़ाते थे..

                     लव कुश कोचिंग और ट्यूशन दोनो कर रहे थे.. पर जैसे तैसे पास हो रहे थे.. बेटा होने का घमंड उन्हें भी बहुत था.. समय समय पर रुचि और रंजू का अपमान करने से बाज नहीं आते.. बड़ी अम्मा कहती कितना पढ़ लो बर्तन चूल्हा चौका हीं करना है.. लव कुश तो कहीं बड़ा अफसर बनेगा नौकर चाकर आगे पीछे घूमते रहेंगे..

           लव कुश को मनमाने पैसे मिलते थे इसलिए कभी पार्टी कभी पिकनिक कभी होटल तो कभी हिल स्टेशन भी घूमने चला जाते..

        समय गुजरता गया.. रुचि का सिलेक्शन मेडिकल में हो गया.. वो पीएमसीएच पटना में पढ़ने लगी और रंजू ग्रेजुएशन कर रही थी.. दादी की बहुत इच्छा थी अमरनाथ जाने की..

                         दादी दादा और लव कुश के पापा  का लौटते समय  एक्सीडेंट हो गया .. विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा..

                     तेरहवीं के बाद रुचि के पापा  बड़ी अम्मा से बोले भाभी आप कहिए तो मैं यहीं रुक जाऊं लव कुश को दुकान संभालने में सहायता करूं अभी बच्चे हैं अनुभव नहीं है.. बड़ी अम्मा ने उसी अकड़ से कहा कोई जरूरत नहीं, लव कुश बेटी नही है जिसे किसी के सहारे की जरूरत पड़े मर्द का बच्चा है सब संभाल लेगा.. बेचारे वापस कलकत्ता चले गए..

                           रंजू हाई स्कूल की शिक्षिका बन गई थी.. रुचि भी हॉस्पिटल ज्वाइन कर ली थी.. लव कुश अपनी पसंद की लड़की से शादी कर लिए थे.. रंजू के साथ उसकी मां दूसरे शहर में रहने लगी थी जहां वो काम करती थी.. दोनो बहनों के लिए रिश्ते आने लगे..

                     लव कुश खूब पीने लगे थे, दुकान कर्जे में जा रहा था.. घर में बहुत क्लेश होता.. बड़ी अम्मा की एंठी गर्दन अब झुक गई थी..

     बहुओं के सामने उनकी बोलती बंद थी..

              एक रात लड़ाई झगडे के बाद बड़ी अम्मा का बीपी हाई हो गया और ब्रेन हेमरेज और पैरालाइसिस का अटैक आया दाहिना तरफ का पूरा हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था..

            बहु बेटे ने सरकारी हॉस्पिटल में लावारिश जैसा भर्ती करा दिया..

                रुचि को पता चला तो खुद एंबुलेंस लेकर आई और बड़ी अम्मा को अपने साथ ले गई..

           बड़ी अम्मा का अकड़ घमंड सब वक्त ने गर्त में मिला दिया था.. रुचि रंजू और उसके मां पापा सब उनके बेड के पास खड़े थे, बड़ी अम्मा के आंखों से अनवरत आसूं गिर रहे थे जिसमें छुपी थी उनकी बेबसी दुःख शर्म और  टूटे हुए घमंड का मिला जुला अवशेष था..

               

    #  स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

        वीणा सिंह 

#गर्दन ऐंठी रहना #

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