Moral stories in hindi : रीमा को अपने अंग्रेज़ी ज्ञान पर बहुत अहंकार था। इसी कारण वह किसी का भी अपमान कर देती थी। हिंदी-भाषियों के लिए उसके मन में बहुत कटुता थी। इसी कारण जब उसके देवर समीर ने हिंदी की प्रोफ़ेसर सौम्या से विवाह करने की इच्छा जताई तो घमंड से वह बोल पड़ी-
“उस गँवार और जाहिल से शादी। आखिर उसमें ऐसा क्या देखा, जो उससे विवाह करना चाहते हो”
“बहु! क्या बात कर रही हो। आखिर वो तुम्हारी देवरानी बनने वाली है”। समीर की माँ ने गुस्से से कहा”।
“माँजी! मैं तो उसे अपनी सेविका भी न रखूं, रीमा ने तेज़ आवाज़ में कहा। आखिर क्या कमी है, हमारे समीर में। बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता है। महीने में दो लाख कमा लेता है। उसके लिए तो लड़कियों की लाइन लग जाएगी। आपको तो समीर को समझाना चाहिए, न कि उसे शह देनी चाहिए”।
“भाभी! बिना देखे आप सौम्या के बारे में ऐसा कैसे कह सकती हैं। भले ही सौम्या हिंदी की प्रोफ़ेसर है। उसकी पढ़ाई भी हिंदी माध्यम से हुई है, लेकिन संस्कारों में वह अंग्रेज़ी का ज्ञान बखारने वालों से बहुत आगे है। वह मेरे बचपन के सहपाठी अंकुश की छोटी बहन है। उससे मैं कई बार मिला हूँ। बहुत ही विनीत है। इसी कारण मैंने यह निर्णय किया है। प्रोफ़ेसर होते हुए भी अहंकार उसे छू भी नहीं गया है। और तो और वह गृहकार्य में भी निपुण है। मुझे अंग्रेज़ी में गिटपिट करने वाली नहीं पत्नी नहीं, सबके साथ सहजभाव से बात करनेवाली पत्नी चाहिए”। समीर ने कटाक्ष से कहा।
“अभी तो देवर जी आप समझ नहीं रहे हो। बाद में जब तुम्हारे दोस्त तुम्हारा मज़ाक उड़ाएंगे तो तुम्हें पता चलेगा, कहकर रीमा पाँव पटकती हुई वहाँ से चली गई”।
आखिर रीमा के नानुकुर के बावजूद भी सौम्या समीर की दुलहन बनकर आ गई। सौम्या बिलकुल वैसी ही थी, जैसा समीर ने कहा था। अपने अच्छे व्यवहार से सौम्या ने शीघ्र ही सभी को अपना बना लिया, लेकिन रीमा अपने गरूर में उससे सीधे मुँह बात ही नहीं करती थी। उसके अनुसार हिंदी बोलनेवाले या हिंदी में काम करने वाले गँवार होते हैं। हमेशा अपनी सहेलियों के सामने भी उसे अपमानित करती रहती।
सौम्या मन में सोचती, शायद अंग्रेज़ी के मोह में फँसे इसी तरह के लोगों के कारण ही हिंदी आजतक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। तभी आजतक वह राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई।
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पर एक दिन जब रीमा ने उसकी परवरिश पर सवाल उठाया तो सौम्या से सहन नहीं हुआ। कोई लड़की सब कुछ सहन कर सकती है, पर अपने जन्मदाता का अपमान नहीं सह सकती।
सौम्या ने शालीनता से रीमा से कहा, “जेठानी जी। आपको किसने हक दिया, मेरी परवरिश पर सवाल उठाने का। हमारी राजभाषा हिंदी का अपमान करने का। राजभाषा हिंदी का अपमान देश का अपमान है। आगे से ध्यान रखें। मैं नहीं चाहती कि घर लड़ाई का अखाड़ा बने, नहीं तो मैं भूल जाऊँगी, आप मेरी जेठानी है। आखिर हमें इसी घर में रहना है”, कहकर सौम्या चली गई।
इस बात का जिक्र न सौम्या ने किसी को किया और न ही रीमा ने। रीमा शुरू से ही कान्वेंट में पढ़ी थी, इसी कारण वह हिंदी-भाषियों को हेय दृष्टि से देखती थी, लेकिन कहते हैं न कभी न कभी अहंकार टूटता है। ऐसा ही रीमा के साथ
भी हुआ।
कुछ दिनों बाद की बात है। रीमा अपनी प्रिय सहेली के विवाह में बाहर गई थी। वापसी में ड्राइवर की लापरवाही से बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। कुछ लोगों को कम तो किसी को ज्यादा चोटें लगीं। रीमा को गहरी चोट लगी। पैर में भी फ्रैक्चर हुआ। रीमा की सहेलियाँ, जिसका वह दम भरती थी, केवल हालचाल पूछकर चलती बनी।
सौम्या ने रीमा की देखभाल के लिए कॉलेज से
दस दिन की छुट्टी ले ली। आकाश उस समय ऑफिस के काम से बाहर गया था। तीन दिन बाद आना था। घरवालों ने सूचना देनी चाही, पर कभी इंटरनेट की समस्या तो कभी किसी और कारणवश बात नहीं हो सकी। मैसेज भी किया, पर शायद काम में व्यस्त होने के कारण आकाश ने देखा नहीं।
रीमा की देखभाल में सौम्या ने दिन-रात एक कर दिया। डॉक्टरों के परामर्श अनुसार उनके खाने- पीने का पूरा ध्यान रखा। तीन दिन बाद आकाश भी आ गया। उसने ऑफिस में बात करके रीमा के सही होने तक घर से ही काम करने का निवेदन किया। सौम्या से उसने सारी दवाइयाँ कब देनी है, समझ ली।
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दस दिन बाद सौम्या ने कॉलेज ज्वाइन कर लिया। कॉलेज जाने के बाद भी वह फोन कर-करके हाल चाल लेती। दवाई-खाना समय पर करने को कहती। घर कॉलेज के साथ साथ रीमा का भी उसने पूरा ध्यान रखा। इसी सेवा का नतीजा था, दो महीने बाद वह कुछ-कुछ चलने लगी।
सौम्या की सेवा से रीमा का अहंकार पिघलने लगा था। उसे अपने किए पर ग्लानि हो रही थी, मैंने सौम्या का इतना अपमान किया, फिर भी उसने मेरा कितना ध्यान रखा। हमें किसी की काबिलियत को भाषा के आधार पर नहीं आँकना चाहिए।
पुरानी बातों को याद करके उसकी आँखों से नीर बहने लगे कि तभी सौम्या ने कमरे में नाश्ता करके प्रवेश किया। उसे देखकर रीमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली-
“मुझे माफ कर दे सौम्या। अपने अहंकार में मैंने कितनी बार तुम्हारा अपमान किया, फिर भी तुमने मेरी सेवा की”।
“बड़े-छोटों से माफी मांगते अच्छे नहीं लगते। अब आप पुरानी बातें भूल जाइए। जल्दी से आप सही हो जाइए। फिर हम खूब मस्ती करेंगे, उसके लिए पहले समय पर नाश्ता करना ज़रूरी है”, कहते हुए जेठानी रीमा के मुँह में सौम्या ने एक निवाला डाल दिया।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
स्वरचित और मौलिक रचना